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Wednesday, 6 January 2021

बंटी की वापसी (लघुकथा) - शुभा/रजनी शुक्ला

  

बंटी की वापसी 
(लघुकथा)
बंटी आजकल बड़ा गुमसुम सा रहता था दोस्तो के साथ भी वह नहीं खेलता था आज उसके मम्मी पापा को टीचर ने मिलने स्कूल बुलाया था | उसके मम्मी पापा जो दोनों जॉब करते थे और दोनों ही हर रोज अपना तनाव अपना गुस्सा एक दूसरे पर घर पहुंचते ही निकालने लग जाते थे । दोनों उसे रास्ते भर डांटे जा रहे थे कि तुमने ऐसा क्या कर दिया जो टीचर ने बुला लिया पर बंटी एकदम शांत |
पर टीचर ने जो  कहा उसे सुनकर दोनों के पैरो तले की जमीन खिसक गई टीचर ने कहा बंटी आजकल एकदम चुपचाप रहता है किसी से बात नहीं करता सवालों के जवाब भी नहीं देता है आप लोग बताए क्या बात है क्या उसे घर पर कोई परेशानी है तब नेहा और राज को एहसास हुआ कि कुछ दिनों से उन दोनों के बीच लगातार तकरार हो रही थी उनकी तू तू मै मै में उन्होंने बंटी की तरफ ध्यान ही नहीं दिया था | उन्हें अपनी गलती समझ आ गई थी दोनों उसे प्यार से घर लेकर आए और उसके साथ बहुत ही सामान्य व्यवहार करने लगे अब वे उसके सामने सोच समझ कर बात करते,परिणाम ये हुआ कि उन्होंने अपना पुराना बंटी जल्द ही वापस पा लिया और वे दोनों भी एक हो गए ।
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शुभा/रजनी शुक्ला
रायपुर (छत्तीसगढ)

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माँ की गोद (बालकथा) - कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

   

माँ की गोद 
(बालकथा)

रोजी दादी की गोदी में सिर रखे रखे ही सो गई थी, उसकी दादी उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहानी सुना रहीं थीं । रोजी को अपनी दादी से कहानी सुनना बहुत अच्छा लगता था । रात को अपना होमवर्क पूरा कर वह दादी की गोदी में आकर लेट जाती और दादी उसे कहानी सुनाने लगतीं । माॅ उसे अपनी गोदी में लेना भी चाहें तो वह अपनी माॅ की गोद में नहीं सोती थी ‘‘नहीं मुझे दादी की गोद में ही सोना है.......’’ कहकर रोने लगती । माॅ अपना मन मसोस कर रह जाती । जब रोजी सो जाती तो दादी उसे अपने साथ अपने बिस्तर में जतन से सुला देतीं । रोजी अभी केजी वन में ही पढ़ रही थी याने वह बहुत छोटी थी केवल तीन साल की । वैसे तो उसकी दादी नहीं चाहतीं थीं कि उसे इतनी कम उम्र में ही स्कूल भेजा जाये पर रोजी खुद ही स्कूल जाने को उत्सुके थी । उसे पढ़ना और सीखना बहुत अच्छा लगता था । इस कारण से ही रोजी स्कूल में भी सभी की चहेती थी । वह थी बहुत खूबसूरत उसकी माॅ उसे ‘‘परी’’ कह कर ही बुलाती थीं ।
            दादी ने रोजी को परियों वली कहानी सुनाई थी कि कैसे एक परि हमेशा दूसरों की बहुत मदद करती है । वह दूसरों की मदद करती है इसलिये भगवान जी भी उसे बहुत स्नेह करते हैं । कहानी सुनते सुनते रोजी को नींद आ जाती है । नींद में रोजी अपने आपको आसमान में उछ़ते हुए देखती है । वह परि बन गई है । वह अपने पंख फड़फड़ाते हुए चारों ओर घूम रही है । वह आसमान से देखती है कि एक गाय कीचड़ में फसी हुई है । गाय जितना भी बाहर निकलने का प्रयास करती वह उतने ही गहरे धंसती जा रही है । परि आसमान से नीचे गाय के पास आकर खड़ी हो गई । उसे गाय के प्रति दुख का अनुभव हुआ । वह गाय को बचा लेना चाह रही है उसने अपने हाथ में रखी छड़ी को चारों ओर घुमाया और गाय हवा में तैरते हुउए बाहर आ गई । परि बहुत प्रसन्न हुई । गाय ने कृतज्ञता से छुआ । परि बनी रोजी फिर आसमान में उड़ गई थी । परि ने सड़क के किनारे बैठे एक छोटे से बालक को बैठे देखा । उसके चेहरे पर उदासी थी । रात के अंधकार में एक छोटा सा बालक यूं ही उदास बैठा देख परि चैंक गई । बच्चों को रात में अपने घरों में होना चाहिये परि ने सोचा । परि नीचे उतर आई । उसे नीचे उतरता देख वह बालक घबरा गया ।
‘‘तुम भयभीत मत होना मैं तुम्हारी मदद करने आई हूॅ.....’’
परि ने कहा । बालक अभी भी भय से कांप रहा था । परि हौले से उसका हाथ छुआ । उसका हाथ गर्म था ।
‘‘अरे तुम्हें तो बुखार है.......फिर तुम रात में बाहर क्यों बैठे हो......’’
परि के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे । हिम्मत कर बालक बोला
‘‘आप.....कौन हैं......भूत तो नहीं हैं न.......’’
‘‘मैं भूत नहीं हूॅ मैं तो परि हूॅ......’’
‘‘ये परि क्या होती है........’’
‘‘परि हमेशा दूसरों की मदद करती है.....’’
‘‘क्या तुम मेरी मदद करोगी........’’
‘‘हां बताओ.......तुम्हें मेरी क्या मदद चाहिए.....’’
‘‘मेरी माॅ बहुत बीमार हैं........उन्हें दवा की जरूरत हे और मेरे पास तो पैसे हैं ही नहीं मैं माॅ के लिये कहां से दवा लाऊंगा.’’
उसकी आंखों से आंसू बह निकले थे ।
‘‘तुम्हें भी तो बुखार है........’’
‘‘हां.....पर माॅ का बुखार दूर होना ज्यादा जरूरी है....आप मेरी माॅ को दवा ला दो न....’’
परि ने यहां वहां नजर दौड़ाई पर उसे उसकी माॅ दिखाई नहीं दी
‘‘मेरी माॅ को ढूंढ़ रहीं हैं...वो तो वहां झोपड़ी में लेटी हैं...’’ बालक ने एक झोपड़ी की ओर ईशारा कर बताया ।
परि ने बालक का हाथ पकड़ा और उसके झोपड़े में चली गई । वहां उसने देखा कि उस बालक की माॅ बुखार से तड़फ रही हैं । परि को बहुत दुख हुआ ।
परि ने अपनी जादू की झड़ी को घुमाया पल भर में उसकी माॅ ठीक हो गई । बालकके चहरे पर प्रसन्नता के भाव आ गये ।
‘‘बैठो तुम्हें भी ठीक किये देती हूॅ...’’ परि ने कहा
‘‘नहीं.....मेरी माॅ ठीक हो गई....अब मैं माॅ की गोद में सिर रख लूंगा न तो मैं ऐसे ही ठीक हो जाउंगा......परि दीदी आप जानती नहीं हैं माॅ की गोद में भी आपके जैसा जादू है...आप अपनी छड़ी से ठीक करती हैं और मेरी माॅ अपने हाथाों से ........है न माॅ...’’
कहते हुए बालक अपनी माॅ की गोद में लेट गया था ।
               रोजी की आंख सुबह ही खुली थी । उसकी माॅ ने उसे जगाया था । स्कूल जाना था । अलसाई रोजी झटपट तैयार होकर स्कूल पहुंच गई थी । पर आंखों के सामने कल के ही दृश्य दिखाई दे रहे थे । रात को होमवर्क करने के बाद उसने अपनी माॅ से कहा
‘‘माॅ.....मैं आज आपकी गोद में सोना चहती हूॅ....’’
माॅ ने उसे जोर से अपने गले से लगा लिया ।
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पता:
कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)
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अधूरे ख्वाब (लघुकथा) - शिवशंकर लोध राजपूत

 

अधूरे ख्वाब
(लघुकथा)
रोशन अपने दोस्त शंकर के साथ ढावे पर बैठ कर चाय की चुस्की ले रहे थे सर्दी कर महीना था हल्की हल्की बूंदा बांदी हो रही थी आपस मे बातचीत हो रही थी कि हम दोनों बचपन से ही अजीज़ दोस्त थे साथ साथ स्कूल मे पढ़े लिखे और खेल कूद कर बड़े भी हुए यार तुमने तो कारोना काल 
मे कमाल ही कर दिया तुमने बचपन मे अधूरा ख्वाब जो देखा था वे अब पूरा हो रहा है तुम तो एक चित्रकार व साथ साथ मे कवि भी हो गए तुम्हारी कविताएं तो बेहतरीन, संदेश पूर्ण, होती है चित्रकारी तो गजब की पोर्ट्रेट स्कैच के तो क्या कहने
स्कूल के समय मे तुम्हें चित्रकारी का जो शौक था, लगन व आस्था, और जो विश्वास था, यह उसी का नतीजा है तुमने बहुत मेहनत की श्री गुलशन जी जो की स्कूल के समय ड्राइंग टीचर थे तुमसे बहुत खुश रहते थे ड्राइंग प्रतियोगिता मे हर बार सर्व प्रथम आते थे सम्मान समारोह मे जब तुम सम्मान पत्र ग्रहण करते स्टेज पर तो तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हाल गूंज जाता था तुम्हारी कला और कविता दोनों को नमन  करता हूँ
धन्यवाद दोस्त तुमने सही कहा इस लॉक डाउन मे मुझे भरपूर समय मिला उसका मैंने सदुपयोग किया दिन न देखा रात बस ऐसी लगन लगी कि सम्मान पर सम्मान पत्र की लड़ी ही लग गई इस दौरान मुझे राजस्थान से बच्चों की ड्राइंग प्रतियोगिता मे आपने देश के भिन्न राज्यों से 95 बच्चों ने प्रतिभाग किया मुझे मुख्य समीक्षक की भूमिका अदा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसमे 5 बच्चों को सम्मान के लिए चुना गया और मुझे समाज गौरव सम्मान से नवाज़ा गया 
मेरी एक कलाकार चित्र संग्रह हरियाणा से मेरी चौपाल से छपा मुझे साहित्य संगम संस्थान दिल्ली इकाई से नायाब कलाकार की उपाधि से नवाज़ा गया माँ शारदे की अनुकम्पा से ही जो मेने ख्वाब देखे थे अधूरे थे वो पूर्ण हूए चाय कब समाप्त हो गई पता ही ना चला अच्छा दोस्त नमस्ते, चलता हूँ फिर मिलेगें बॉय बॉय 
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पता:
शिवशंकर लोध राजपूत
दिल्ली

 
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मानसिक शान्ति (आलेख) - सुनील कुमार माथुर

 

मानसिक शान्ति 
(आलेख)
आज हर इंसान तनावपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा हैं । चूंकि भले ही उसकी कोई व्यक्तिगत समस्या न हो , कोई परेशानी न हो , लेकिन वह दूसरों की प्रगति  , उन्नति  , सेवा विस्तार, धन सम्पदा देखकर परेशान है  , चिन्तित है  , हैरान परेशान है  , दुखी हैं । अब वह मानसिक शांति चाहता हैं जो उसे कदापि नहीं मिल सकती । 

मानसिक परेशानी आपने स्वंय पैदा की हैं । अतः उसका समाधान भी आपको ही ढूंढना होगा चूंकि मानसिक शान्ति पाने के लिए आप भले ही किसी डाॅक्टर के पास चले जाईये वह आपको मानसिक शांति नहीं दे सकता । इस बीमारी का कोई भी टिका या दवाई नहीं है । अगर आप मानसिक शांति चाहते हैं तो अपने मन में दया , करूणा  , ममता  , वात्सल्य, प्रेम व विश्वास, स्नेह  , भाईचारे की भावना, पीडित व दुखीजन की निस्वार्थ भाव से सेवा करना जैसे भाव लाने होंगे जब तक आप ऐसे विचारों को मन में उत्पन्न कर उनको स्वंय अमल में नहीं लायेगे तब तक मानसिक शांति हासिल करना असम्भव ही हैं । 

मानसिक शान्ति कहीं बाजार में नहीं मिलती हैं । इसे तो प्रेम व स्नेह से ही मन मे लाया जा सकता हैं । हम समाज में सुधार तभी ला सकते हैं जब पहले हम अपने मन में सकारात्मक सोच विकसित करे । सकारात्मक सोच के साथ आगें बढें तभी दूसरों को वैसा करनें की सीख दे सकते हैं । आज हम दूसरों की प्रगति देखकर दुखी हो रहे है जो उचित नहीं है ।

हर इंसान में प्रतिभा छिपी होती हैं बस जरूरत है तो उस प्रतिभाव हुनर को निखारने की  । मगर हमें दूसरों की प्रगति देखकर जलन होती हैं जो उचित नहीं है । हमें हमारे मन में प्रेम  , करूणा, ममता व वात्सल्य का भाव हर वक्त जगाये रखना होगा । अगर हम किसी का भला न कर सके तो कोई बात नहीं लेकिन हमें किसी का बुरा नहीं करना चाहिए । मानसिक शान्ति और कहीं नहीं है वह हमारे मन में ही हैं लेकिन हम उसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहें है ।

अगर हम किसी का भला करेंगे तभी हमें अपार शांति का अनुभव होगा । अतः प्यासे को पानी पिलायें, भूखे को भोजन करायें  , पीडित  , बीमार की सेवा करें  , पशु-पक्षी की सेवा करें  , उन्हें चारा व दाना डाले फिर देखिये कितनी मानसिक शान्ति मिलती है । अपना नजरिया बदले फिर देखिये चारों ओर शान्ति ही शान्ति है ।

हर फैसलें शांति के साथ लेने चाहिए चूंकि जल्दबाजी में लिए गये फैसलें कई बार गलत साबित होते हैं । अपनी सोच सकारात्मक रखें तो सदैव लाभ ही लाभ हैं । सभी के लिए सदैव अच्छा ही सोचे , कभी भी किसी के लिए बुरा न सोचें । हर कार्य मन लगाकर करें सफलता अवश्य ही मिलेगी । जो भी कार्य करना चाहें जरूर करें लेकिन फालतू समय कभी भी बर्बाद न करें । 

बिना मांगे कभी भी किसी को कोई भी राय न दें अन्यथा दूसरों को सीख देने के चक्कर में खुद का नुकसान कर बैठेंगे समय सदैव शुभ फल देने वाला ही होता है बस आप अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें । अपने कॅरियर के प्रति हमेशा गंभीर निर्णय लें । कभी भी अपने आत्मविश्वास में कमी नहीं आने दे । सदैव स्वस्थ रहें  , मस्त रहें व व्यर्थ की चिन्ता छोड़ दें । चूंकि मानसिक शान्ति तो प्रेम  , करूणा  , ममता व वात्सल्य से ही प्राप्त की जा सकती हैं । 

इंसान कपडों से नहीं बनता है दिल से बनता है । मदद एक ऐसा इत्र हैं जो आप दूसरों पर जितना छिटकेगे , आप उतना ही अधिक  म हकेगे । इंसान भक्ति करके शक्ति पाता हैं और फिर वह शक्ति के आधिन हो जाता है और यही से व्यक्ति का विनाश शुरू हो जाता हैं । अतः कभी भी अपनी शक्ति का दुरूपयोग न करें । हमेशा अच्छे कार्य करें । व्यक्ति को अपने जीवन में सकारात्मक सोच रखते हुए अंतिम क्षण तक कुछ न कुछ नया सीखते रहना चाहिए ताकि आने वाली पीढी आप से कुछ जानना चाहे तो आप उसे आसानी से कुछ समझा सकें ।
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सुनील कुमार माथुर ©®
जोधपुर (राजस्थान)

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