माँ की गोद
(बालकथा)
रोजी दादी की गोदी में सिर रखे रखे ही सो गई थी, उसकी दादी उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहानी सुना रहीं थीं । रोजी को अपनी दादी से कहानी सुनना बहुत अच्छा लगता था । रात को अपना होमवर्क पूरा कर वह दादी की गोदी में आकर लेट जाती और दादी उसे कहानी सुनाने लगतीं । माॅ उसे अपनी गोदी में लेना भी चाहें तो वह अपनी माॅ की गोद में नहीं सोती थी ‘‘नहीं मुझे दादी की गोद में ही सोना है.......’’ कहकर रोने लगती । माॅ अपना मन मसोस कर रह जाती । जब रोजी सो जाती तो दादी उसे अपने साथ अपने बिस्तर में जतन से सुला देतीं । रोजी अभी केजी वन में ही पढ़ रही थी याने वह बहुत छोटी थी केवल तीन साल की । वैसे तो उसकी दादी नहीं चाहतीं थीं कि उसे इतनी कम उम्र में ही स्कूल भेजा जाये पर रोजी खुद ही स्कूल जाने को उत्सुके थी । उसे पढ़ना और सीखना बहुत अच्छा लगता था । इस कारण से ही रोजी स्कूल में भी सभी की चहेती थी । वह थी बहुत खूबसूरत उसकी माॅ उसे ‘‘परी’’ कह कर ही बुलाती थीं ।
दादी ने रोजी को परियों वली कहानी सुनाई थी कि कैसे एक परि हमेशा दूसरों की बहुत मदद करती है । वह दूसरों की मदद करती है इसलिये भगवान जी भी उसे बहुत स्नेह करते हैं । कहानी सुनते सुनते रोजी को नींद आ जाती है । नींद में रोजी अपने आपको आसमान में उछ़ते हुए देखती है । वह परि बन गई है । वह अपने पंख फड़फड़ाते हुए चारों ओर घूम रही है । वह आसमान से देखती है कि एक गाय कीचड़ में फसी हुई है । गाय जितना भी बाहर निकलने का प्रयास करती वह उतने ही गहरे धंसती जा रही है । परि आसमान से नीचे गाय के पास आकर खड़ी हो गई । उसे गाय के प्रति दुख का अनुभव हुआ । वह गाय को बचा लेना चाह रही है उसने अपने हाथ में रखी छड़ी को चारों ओर घुमाया और गाय हवा में तैरते हुउए बाहर आ गई । परि बहुत प्रसन्न हुई । गाय ने कृतज्ञता से छुआ । परि बनी रोजी फिर आसमान में उड़ गई थी । परि ने सड़क के किनारे बैठे एक छोटे से बालक को बैठे देखा । उसके चेहरे पर उदासी थी । रात के अंधकार में एक छोटा सा बालक यूं ही उदास बैठा देख परि चैंक गई । बच्चों को रात में अपने घरों में होना चाहिये परि ने सोचा । परि नीचे उतर आई । उसे नीचे उतरता देख वह बालक घबरा गया ।
‘‘तुम भयभीत मत होना मैं तुम्हारी मदद करने आई हूॅ.....’’
परि ने कहा । बालक अभी भी भय से कांप रहा था । परि हौले से उसका हाथ छुआ । उसका हाथ गर्म था ।
‘‘अरे तुम्हें तो बुखार है.......फिर तुम रात में बाहर क्यों बैठे हो......’’
परि के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे । हिम्मत कर बालक बोला
‘‘आप.....कौन हैं......भूत तो नहीं हैं न.......’’
‘‘मैं भूत नहीं हूॅ मैं तो परि हूॅ......’’
‘‘ये परि क्या होती है........’’
‘‘परि हमेशा दूसरों की मदद करती है.....’’
‘‘क्या तुम मेरी मदद करोगी........’’
‘‘हां बताओ.......तुम्हें मेरी क्या मदद चाहिए.....’’
‘‘मेरी माॅ बहुत बीमार हैं........उन्हें दवा की जरूरत हे और मेरे पास तो पैसे हैं ही नहीं मैं माॅ के लिये कहां से दवा लाऊंगा.’’
उसकी आंखों से आंसू बह निकले थे ।
‘‘तुम्हें भी तो बुखार है........’’
‘‘हां.....पर माॅ का बुखार दूर होना ज्यादा जरूरी है....आप मेरी माॅ को दवा ला दो न....’’
परि ने यहां वहां नजर दौड़ाई पर उसे उसकी माॅ दिखाई नहीं दी
‘‘मेरी माॅ को ढूंढ़ रहीं हैं...वो तो वहां झोपड़ी में लेटी हैं...’’ बालक ने एक झोपड़ी की ओर ईशारा कर बताया ।
परि ने बालक का हाथ पकड़ा और उसके झोपड़े में चली गई । वहां उसने देखा कि उस बालक की माॅ बुखार से तड़फ रही हैं । परि को बहुत दुख हुआ ।
परि ने अपनी जादू की झड़ी को घुमाया पल भर में उसकी माॅ ठीक हो गई । बालकके चहरे पर प्रसन्नता के भाव आ गये ।
‘‘बैठो तुम्हें भी ठीक किये देती हूॅ...’’ परि ने कहा
‘‘नहीं.....मेरी माॅ ठीक हो गई....अब मैं माॅ की गोद में सिर रख लूंगा न तो मैं ऐसे ही ठीक हो जाउंगा......परि दीदी आप जानती नहीं हैं माॅ की गोद में भी आपके जैसा जादू है...आप अपनी छड़ी से ठीक करती हैं और मेरी माॅ अपने हाथाों से ........है न माॅ...’’
कहते हुए बालक अपनी माॅ की गोद में लेट गया था ।
रोजी की आंख सुबह ही खुली थी । उसकी माॅ ने उसे जगाया था । स्कूल जाना था । अलसाई रोजी झटपट तैयार होकर स्कूल पहुंच गई थी । पर आंखों के सामने कल के ही दृश्य दिखाई दे रहे थे । रात को होमवर्क करने के बाद उसने अपनी माॅ से कहा
‘‘माॅ.....मैं आज आपकी गोद में सोना चहती हूॅ....’’
माॅ ने उसे जोर से अपने गले से लगा लिया ।
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पता:
कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)
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