अधूरे ख्वाब
(लघुकथा)
रोशन अपने दोस्त शंकर के साथ ढावे पर बैठ कर चाय की चुस्की ले रहे थे सर्दी कर महीना था हल्की हल्की बूंदा बांदी हो रही थी आपस मे बातचीत हो रही थी कि हम दोनों बचपन से ही अजीज़ दोस्त थे साथ साथ स्कूल मे पढ़े लिखे और खेल कूद कर बड़े भी हुए यार तुमने तो कारोना काल
मे कमाल ही कर दिया तुमने बचपन मे अधूरा ख्वाब जो देखा था वे अब पूरा हो रहा है तुम तो एक चित्रकार व साथ साथ मे कवि भी हो गए तुम्हारी कविताएं तो बेहतरीन, संदेश पूर्ण, होती है चित्रकारी तो गजब की पोर्ट्रेट स्कैच के तो क्या कहने
स्कूल के समय मे तुम्हें चित्रकारी का जो शौक था, लगन व आस्था, और जो विश्वास था, यह उसी का नतीजा है तुमने बहुत मेहनत की श्री गुलशन जी जो की स्कूल के समय ड्राइंग टीचर थे तुमसे बहुत खुश रहते थे ड्राइंग प्रतियोगिता मे हर बार सर्व प्रथम आते थे सम्मान समारोह मे जब तुम सम्मान पत्र ग्रहण करते स्टेज पर तो तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हाल गूंज जाता था तुम्हारी कला और कविता दोनों को नमन करता हूँ
धन्यवाद दोस्त तुमने सही कहा इस लॉक डाउन मे मुझे भरपूर समय मिला उसका मैंने सदुपयोग किया दिन न देखा रात बस ऐसी लगन लगी कि सम्मान पर सम्मान पत्र की लड़ी ही लग गई इस दौरान मुझे राजस्थान से बच्चों की ड्राइंग प्रतियोगिता मे आपने देश के भिन्न राज्यों से 95 बच्चों ने प्रतिभाग किया मुझे मुख्य समीक्षक की भूमिका अदा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसमे 5 बच्चों को सम्मान के लिए चुना गया और मुझे समाज गौरव सम्मान से नवाज़ा गया
मेरी एक कलाकार चित्र संग्रह हरियाणा से मेरी चौपाल से छपा मुझे साहित्य संगम संस्थान दिल्ली इकाई से नायाब कलाकार की उपाधि से नवाज़ा गया माँ शारदे की अनुकम्पा से ही जो मेने ख्वाब देखे थे अधूरे थे वो पूर्ण हूए चाय कब समाप्त हो गई पता ही ना चला अच्छा दोस्त नमस्ते, चलता हूँ फिर मिलेगें बॉय बॉय
-०-
No comments:
Post a Comment