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Monday 3 February 2020

हे माँ शारदा (प्रार्थना) - डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया


हे माँ शारदा
      (कविता)
 हे माँ शारदा...!धवल हंस वाहिनी ।
श्वेताम्बर धारिणी, वीणा वादिनि ।
कर स्फटिक माला, ज्ञान विद्या दायिनी ।
भाल ज्योति चंद्रमा, सुख वर दायिनी ।।
कोटि-कोटि प्रणाम माँ,
स्वीकारो ज्ञान दायिनी ।।

जग अज्ञान-अंधकार नाशक ।
ज्ञान-प्रकाश दान दायक ।
कटु दिलों में मधु पोषक ।
जीवन रोशनी प्रदायक ।।
वारंवार नमन माँ
स्वीकारो स्नेहिल स्नेह दायक ।।

हरो उर- मन के तम को
मधु प्रेम पेय तेज भर दो ।
गूँगे - बहरे, गाये - सुने
वीणा को ऐसी झंकृत कर दो ।
सोये आलसी आत्मा में
आत्म चेतना जगा दो ।
अंधे-भटके लोगों के
अनंत लोचन खोल दो ।
करबद्ध प्रार्थना है माँ
बसंत का वैभव बरसा दो
बसंत का वैभव बरसा दो ।।
-०-
पता:
डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया
सौराष्ट्र (गुजरात)

-०-

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मेरा अभिमान (कविता) - दीपिका कटरे

मेरा अभिमान
(कविता)
मेरे विद्यार्थी ,मेरा अभिमान,
इस बात से न था, कोई अनजान
कि विद्यार्थी ही मेरा अभिमान,
विद्यार्थी ही मेरी जान ।

मेरे प्यारो, मेरे दुलारों,
तुम जाओ, किसी भी जहाँन,
बढ़ाना अपने देश का मान ,
अपने प्यारे, भारत देश का मान ,
तब देगी दुनिया ,तुम्हे भी सम्मान ,
और हमें भी सम्मान।
मेरे विद्यार्थी ,मेरा अभिमान,
इस बात से न था, कोई अनजान।

मेरे प्यारो, मेरे दुलारों,
बस एक बात का रखना ,
हरदम ध्यान ,
चाहे रूकावट बनकर ,
मंज़िल में आए कोई तूफ़ान,
न मिटने देना अपने ,
और अपनों के अरमान ,
तुम बढ़ाना अपने प्यारे ,
भारत देश की शान,
अपने प्यारे भारत देश की शान,
तब देगी दुनिया,
तुम्हें भी सम्मान ,
और हमें भी सम्मान
मेरे विद्यार्थी, मेरा अभिमान ,
इस बात से न था कोई अनजान।

मेरे बच्चों , मेरे सच्चों ,
तुम ही तो हमारी जान ,
हमारी सही पहचान,
पढ़ -लिखकर के तुम लेना,
खूब सारा ज्ञान ,
तब तुम कहलाओगे विद्वान,
जी जान से करना मेहनत ,
होकर तुम बलवान,
तब तुम बन जाओगे ,
खूब बड़े धनवान,
फिर दुनिया देंगी ,
तुम्हे भी सम्मान ,
और हमें भी सम्मान,
फिर हम भी, सीना तानकर ,
गर्व से कहेंगे कि ,
मेरे विद्यार्थी , मेरा अभिमान ,
और यही है मेरी शान ,
यही है मेरी शान ।
-०-
पता:
दीपिका कटरे 
पुणे (महाराष्ट्र)

-०-

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ठण्ड की रात (कविता) - जगदीश 'गुप्त'


ठण्ड की रात
(कविता)
अभी शरद का मनभावन सौंदर्य बिखरना शुरू हुआ था ,
अलसाई सी ठण्ड ने भी अपने डैने नहीं फैलाये थे ,

येन भोर के उजाले में अभी मुर्गों के दबड़े भी सन्नाटे में डूबे थे ।
एकाएक सुबह की शीतलता को बाँहों में समेट लेने को जी चाहा ।

गले में मफलर पावों में पाँवपोश और नरमई स्वेटर का साथ ले ,
ऋतु श्रृंगार को छंदबद्ध करने का अरमान जागा ।

कि कल्पना का तार झनझनाया !
तीखे कररर स्वर के बेसुरे शब्दों से रोम रोम सनसनाया ।

चार जोड़ी नन्हें हाथ दिन भर के फेंके कूड़े को जतन से समेट रहे थे ,
और आने वाली भयानक ठण्ड की सोच को अपने जेहन में लपेट रहे थे ।

जनाब कविता छोड़िये , नन्हें मजदूरों की कानाफूसी पर ध्यान दीजिये -
अभी जैसे तैसे फटे चिथड़ों में तन ढँक जाता है ,

पैर नंगे सही काम तो चल जाता है ,
धूप भी साथ देती है , रात बोरे में गुजर जाती है ।

दिन पूरा मिलता है , रद्दी पन्नी भी ज्यादा मिल जाती है ।
फिर जानलेवा ठण्ड आ जाएगी , हमारी तो घिग्गी बांध जाएगी !

सारा कुसूर तो इसी शरद का है ,
जो शिशिर की अगवानी में आ पसरा है ।
लोग जाने कैसे लिख लेते हैं ,
शरद के मौसम का पूरा लुत्फ़ लेते हैं ।

हमें तो इसकी चांदनी भी नहीं भाती है ,
हलकी सिहरन में कड़ाके की ठण्ड नजर आती है ।
-०-
जगदीश 'गुप्त'
कटनी (मध्यप्रदेश)

-०-


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तेरे बगैर (कविता) - मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'

तेरे बगैर
(कविता)
तेरे बगैर ऐ मेरे सनम
जिंदगी मेरी अधूरी रही

मर गयीं ख़्वाहिशें सारी
प्यास मेरी अधूरी रही

भटकता रहता हूँ रात-दिन
ठहरने की चाहत अधूरी रही

तेरे वादों की निशानी
हृदय में दफन ही रही

कहो कैसे उठाऊंगा बोझ तन्हाई का
क्यों मुझपे तेरी मेहरबानियाँ नहीं रही

अब महफिलें लगती हैं बीरानी सी
टूटे हुए दिल में तेरी यादें जो रही

तेरे बगैर ऐ मेरे सनम
जिंदगी मेरी अधूरी रही
-०-
मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'
फतेहाबाद-आगरा. 
-०-

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स्वच्छ भारत अभियान (कविता) - राजीव कपिल

स्वच्छ भारत अभियान
(कविता)
स्वच्छ भारत अभियान हमारा हमको सफल बनाना है
कूड़ा फेंको कूड़ेदान में सबको हमे बताना है।

शौच खुले में करना तो रोगाणु को आमंत्रण है
नित्य शौचालय का करो प्रयोग सबको हमें बताना है ।

गंदगी और बीमारी का साथ-साथ का नाता है
साफ सफाई करके अपना सुंदर शहर बचाना है ।

पार्क सड़क और गाड़ी में कूड़ा नहीं फैलायेंगे
थोड़ा कठिन है रास्ता फिर भी हम सब को अपनाना है।

काम नहीं केवल सरकारों का सबको यही बताना है
जिम्मेदारी सबकी मिलकर सबको भार उठाना है।

प्लास्टिक का ना करे प्रयोग जन जन को बतलाना है
औरो को ना भाषण दे खुद को भी अपनाना है।

ताजा ढका हुआ खाना ही हमको सबको खाना है
खुले में रखे कटे फलों को मुँह को नहीं लगाना है।
-०-
पता:
राजीव कपिल
हरिद्वार (उत्तराखंड)

-०-

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