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Monday, 3 February 2020

मेरा अभिमान (कविता) - दीपिका कटरे

मेरा अभिमान
(कविता)
मेरे विद्यार्थी ,मेरा अभिमान,
इस बात से न था, कोई अनजान
कि विद्यार्थी ही मेरा अभिमान,
विद्यार्थी ही मेरी जान ।

मेरे प्यारो, मेरे दुलारों,
तुम जाओ, किसी भी जहाँन,
बढ़ाना अपने देश का मान ,
अपने प्यारे, भारत देश का मान ,
तब देगी दुनिया ,तुम्हे भी सम्मान ,
और हमें भी सम्मान।
मेरे विद्यार्थी ,मेरा अभिमान,
इस बात से न था, कोई अनजान।

मेरे प्यारो, मेरे दुलारों,
बस एक बात का रखना ,
हरदम ध्यान ,
चाहे रूकावट बनकर ,
मंज़िल में आए कोई तूफ़ान,
न मिटने देना अपने ,
और अपनों के अरमान ,
तुम बढ़ाना अपने प्यारे ,
भारत देश की शान,
अपने प्यारे भारत देश की शान,
तब देगी दुनिया,
तुम्हें भी सम्मान ,
और हमें भी सम्मान
मेरे विद्यार्थी, मेरा अभिमान ,
इस बात से न था कोई अनजान।

मेरे बच्चों , मेरे सच्चों ,
तुम ही तो हमारी जान ,
हमारी सही पहचान,
पढ़ -लिखकर के तुम लेना,
खूब सारा ज्ञान ,
तब तुम कहलाओगे विद्वान,
जी जान से करना मेहनत ,
होकर तुम बलवान,
तब तुम बन जाओगे ,
खूब बड़े धनवान,
फिर दुनिया देंगी ,
तुम्हे भी सम्मान ,
और हमें भी सम्मान,
फिर हम भी, सीना तानकर ,
गर्व से कहेंगे कि ,
मेरे विद्यार्थी , मेरा अभिमान ,
और यही है मेरी शान ,
यही है मेरी शान ।
-०-
पता:
दीपिका कटरे 
पुणे (महाराष्ट्र)

-०-

***
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2 comments:

  1. अति सुन्दर रचना के लिये आपको बहुत बहुत बधाई है।

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