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Monday 3 February 2020

तेरे बगैर (कविता) - मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'

तेरे बगैर
(कविता)
तेरे बगैर ऐ मेरे सनम
जिंदगी मेरी अधूरी रही

मर गयीं ख़्वाहिशें सारी
प्यास मेरी अधूरी रही

भटकता रहता हूँ रात-दिन
ठहरने की चाहत अधूरी रही

तेरे वादों की निशानी
हृदय में दफन ही रही

कहो कैसे उठाऊंगा बोझ तन्हाई का
क्यों मुझपे तेरी मेहरबानियाँ नहीं रही

अब महफिलें लगती हैं बीरानी सी
टूटे हुए दिल में तेरी यादें जो रही

तेरे बगैर ऐ मेरे सनम
जिंदगी मेरी अधूरी रही
-०-
मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'
फतेहाबाद-आगरा. 
-०-

***
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