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Sunday, 16 February 2020

भाग्य का खेल (कहानी) - रश्मि शर्मा

भाग्य का खेल
(कहानी)
शहर मे रहने वाली भाग्यशाली कभी कभी छुटियो मे अपने दादा दादी के पास गाँव जाती फूलो की तरह नाजुक वह सुन्दर थी वो पढने मे काफी होशियार दादाजी गर्व करते अपनी पोती पर थैले को कन्धे पर लटका कर दादी को चिड़ाते एक दिन ऐसे ही मेरी भाग्यशाली मास्टर नी बनेगी और बैग टाग कर पढ़ाने जायेगी। वो तेरी तरह चूल्हा थोडी फूकेगी।
दादी ने मेरे कहने पर कड़ी चूल्हे पर चढ़ा रखी थी दादी कुछ काम से बहार गई । कड़ी चूल्हे पर फैलने लगी और चूल्हे की आग बुझ गई।भाग्यशाली ने फूकनी उठाई और फूकने लगी ताकि आग जल जाये जैसे वो दादी को करते हुये देखती थी उसने फूक तो दे कर आग लगा दी लेकिन फूकनी से सांस उलटी मुँह मे ले ली उसे काफी खांसी उठने लगी।दादा ,दादी दौड़ते हुये आये दादाजी ने पोती की हालत देखकर दादी को बहुत डाटा की इसे चूल्हे पर क्यो बैठाया। पोती ने कहा मे खुद आई थी दादी की कोई गलती नही लेकिन दादाजी बहुत नाराज हुये दादी पर। कहने लगे मेरी पोती नाम के अनुकुल भाग्यशाली है वो अपने पैरो पर खड़ी होगी हमारा और अपने ससुराल का नाम रोशन करेगी तुम्हारी तरह गाँव वह चूल्हा चाकी नही संभालना है उसे उस बात को भाग्यशाली ने अपने दिल में बसा लिया।
समय बितने लगा भाग्यशाली बड़ी हो गई उसकी पढ़ाई भी खत्म हो गई वो टीचर बन गई। दादाजी की पहचान से ही बहुत बड़े धराने मे भाग्यशाली का विवाह संम्पन्न हुआ।दादाजी को भरोसा था कि गाँव है तो क्या हुआ मेरी भाग्यशाली तो नौकरी करेगी और शहर मे रहेगी क्योकि उसके पति टीचर है पोती भी टीचर है।दोनो शहर मे ही मकान बना लगे क्योकि भाग्यशाली बचपन से शहर मे ही रही है उसे गाँव के काम व तौर तरीके नही मालूम लेकिन संस्कारी है इसलिए सब कुछ निभा लेगी।
ससुराल वालो ने भाग्यशाली को नौकरी करने से मना कर दिया।क्या कमी है हमे पैसो की।
दादाजी को बात पता चली तो उन्हे सदमा लग गया मैने अपनी पोती व अपने सपनो पर पानी फेर दिया।
मेरी पोती का कही जीवन खराब तो नही कर दिया यह सोच कर वह बिमार पड़ गये।पोती के पग फेरे की रस्म पर पोती आई ।दादाजी उसकी तरफ देखते हुये हाथो मे हाथ थामे रोने लगे रोते-रोते न जाने कब सो गये न अपने दिल की कुछ कही न पोती की कुछ सुनी।
भाग्यशाली के भाग्य ने ऐसी करवट ली जिन्दगी के इक्कीस साल शहर मे बिताये अब वह गाँव की हो कर रह गई। गाँव के काम देखती वह सीखती उसने समझ लिया मुझे गॉव मे रहना है तो काम सीखने व करने होगे।
चूल्हे पर खाना बनाती सोचने लगी एक खाँसी आने पर दादाजी ने दादी को कितना डाटा था कि मेरी पोती चूल्हे पर काम थोड़ी करेगी आज मै पूरा खाना चूल्हे पर बना रही हूँ हर काम करते वक्त भाग्यशाली सोचती इसमे किसी का दोष नही है।सब मेरे भाग्य का खेल है। कब कैसा वक्त आपके सामने आ जाये।यह भाग्य का खेल है इसे जो अच्छी तरह खेल ले व खिलाड़ी जो न खेल पाये वह अनाड़ी।
-०-
पता:
रश्मि शर्मा
आगरा(उत्तरप्रदेश)

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फेल (लघुकथा) - बजरंगी लाल यादव

फेल
(लघुकथा)
आज तान्या का रिजल्ट आया था, जो अपने पूरे क्लास में फर्स्ट डिवीजन से पास हुई थी। हालांकि उसके छोटा भाई मोहित के मार्कशीट में सिर्फ लाल स्याहियों का कब्जा था। जिसकी वजह से घर में मातम का माहौल पसरा था। तान्या के रिज़ल्ट को घर में ना किसी ने देखा, ना किसी ने उसके बारे में कुछ पूछा। क्योंकि घरवालों की सारी उम्मीदें सिर्फ मोहित से लगी थी,जो पढ़ाई में औसत था और शरारत में अव्वल दर्जे का शैतान।
तान्या ने जब अपने नामांकन के लिए सातवीं क्लास का नाम लिया तो रूपा मैम अवाक् होकर बोली-" तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब है? तुम पूरे क्लास में फर्स्ट आई हो... फर्स्ट..!तुम्हारा दाखिला आठवीं के बाद नौवीं कक्षा में होगा और तुम सातवीं क्लास की बेतुकी बातें कर रही हो.... कहीं आज तुमने भांँग तो नहीं खा-ली है?"
" दरअसल, मैम! पापा चाहते हैं कि मैं मोहित के ही क्लास में इस बार रहूं ,ताकि वह मेरे सहारे आगे बढ़ सके... और मांँ का भी कहना है कि बेटियां ज्यादा पढ़-लिख कर क्या करेंगी...? चूल्हा चौका ही तो देखना है..?" कहते हुए तान्या की आँखें भींग गई, मगर आंँसुओं को दुपट्टे में उसने छुपा लिया।
"ठीक है जाओ! कल तुम अपने पापा को लेकर आना, मैं उनसे बात करूंगी.."
" मैम! अब बात करने से कोई फायदा नहीं... क्योंकि जून में मेरी शादी तय हो चुकी है"।इस बार तान्या ने अपने आँखों से आंँसुओं को बहने दिया और वह फफक-फफक कर रो-पड़ी। क्योंकि इस समाज के दक़ियानूसी सोच के आगे तान्या पास होकर भी फेल हो गई थी।तान्या का होने वाला पति एक अधेड़ उम्र का विधुर व्यक्ति था।

-०-
पता:
बजरंगी लाल यादव
बक्सर (बिहार)
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भूख सबको लगती है (कविता) - सत्यम भारती

भूख सबको लगती है
(कविता)
अगली सुबह
फेंक गया कोई
पार्टी में बचे
सड़े-गले, जूठे भोजन के जख़ीरे को;
कुछ ही क्षण बाद
बीनने लगे उसे
खाने को कुछ
' छोटे-छोटे पाँव ';
बचपन, गटर के पास
मृत्यु का इंतजार कर रही थी ।
सामने गुर्रा रहा था 'कुत्ता'
फुटपाथ पर-
जैसे वह भी हिस्सेदार हो
' त्यज्य सामंती जलसे का '
भूख, गरीबी से भी भयावह होती है,
भूख सबको लगती है । "

-०-
पता-
सत्यम भारती
नई दिल्ली
-०-

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मायका (कविता) - शुभा/रजनी शुक्ला





मायका
                (कविता)
मायके की दहलीज लांघ कर 
आज के दिन ससुराल आई 
माता पिता के संस्कार ले कर 
नए परिवार को अपनाने आई

मा बाबा के प्यार भरे मन को 
हंसते रोते तोड़ आई 
भाईयो संग  लड़ने झगड़ने की 
परंपरा पीछे छोड़ आई 

सखियों के संग घूमना फिरना 
अमराई से आम चुराना
स्कूल कॉलेज की धमाचौकड़ी
वो सबकुछ मै भूल आई 

सप्तपदी के सात फेरों से 
मेरी सारी दुनिया ही बदल गई 
मायके की प्यारी रजनी बिटिया 
सासरे की बहु शुभा शुक्ला बन गई 

मां का ममता से भरा आंचल
पिता की उंगली का वो सहारा
भैया के बाग की सोन  चिरैया
मायके से उड़ ससुराल पहुंच गई

शादी को हो गये पच्चीस साल
जिंदगी के बीते साल बेमिसाल
मायके वालों का बहुत शुक्रिया
जिनसे मेरा जीवन है खुशहाल
-०-
शुभा/रजनी शुक्ला
रायपुर (छत्तीसगढ)

-०-

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अभी मौका है (नज्म) - अनवर हुसैन

अभी मौका है 
(नज्म)
खुले आकाश में उड़ने से हमें किसने रोका है
हौसलो के पंख लगाने का अब भी मौका है

कोशिशें नहीं करने का के बहाने हजारों हैं
कोशिश ही ना करें यह खुद से धोखा है

नाकामी सबब है खुद को न झोंक पाने का
मंजिलें मकसूद पे जाने से किसने रोका है

ऐसा नहीं है कि वह तुमसे ज्यादा नायाब है
बस काम का ढंग उनका तुमसे अनोखा है

वक्त को जान लो,संग तुम उसके चलो
बहते दरिया मे पास तुम्हारे नोका है

मुश्किलें आजमाती है, सिखाती है हमें
उठता जुनून कामयाबी का झोंका है

वह भी तुम जैसा ही इंसान है मगर
उसने राह में मुश्किलों को बहुत भोगा है

पेट की भूख रात भर पानी से गुजार दी जिसने
मगर जेहन में उसने मकसद को पाला पोसा है

ख्वाब देख कर जिसने मकसद बनाया अपना
वही कामयाबी का सेहरा अपने सर संजोता है

थोड़ी दूर चलकर जो मुसाफिर लौट आया है
समझ ले वह उसका अभी जुनून बहुत छोटा है

गिरना,संभलना,उठना यह चलने की उसूल हैं
चलते चले जाना मंजिलों पर जिन्हें खोजा है
-०-
पता :- 
अनवर हुसैन 
अजमेर (राजस्थान)

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