भाग्य का खेल
(कहानी)
शहर मे रहने वाली भाग्यशाली कभी कभी छुटियो मे अपने दादा दादी के पास गाँव जाती फूलो की तरह नाजुक वह सुन्दर थी वो पढने मे काफी होशियार दादाजी गर्व करते अपनी पोती पर थैले को कन्धे पर लटका कर दादी को चिड़ाते एक दिन ऐसे ही मेरी भाग्यशाली मास्टर नी बनेगी और बैग टाग कर पढ़ाने जायेगी। वो तेरी तरह चूल्हा थोडी फूकेगी।
दादी ने मेरे कहने पर कड़ी चूल्हे पर चढ़ा रखी थी दादी कुछ काम से बहार गई । कड़ी चूल्हे पर फैलने लगी और चूल्हे की आग बुझ गई।भाग्यशाली ने फूकनी उठाई और फूकने लगी ताकि आग जल जाये जैसे वो दादी को करते हुये देखती थी उसने फूक तो दे कर आग लगा दी लेकिन फूकनी से सांस उलटी मुँह मे ले ली उसे काफी खांसी उठने लगी।दादा ,दादी दौड़ते हुये आये दादाजी ने पोती की हालत देखकर दादी को बहुत डाटा की इसे चूल्हे पर क्यो बैठाया। पोती ने कहा मे खुद आई थी दादी की कोई गलती नही लेकिन दादाजी बहुत नाराज हुये दादी पर। कहने लगे मेरी पोती नाम के अनुकुल भाग्यशाली है वो अपने पैरो पर खड़ी होगी हमारा और अपने ससुराल का नाम रोशन करेगी तुम्हारी तरह गाँव वह चूल्हा चाकी नही संभालना है उसे उस बात को भाग्यशाली ने अपने दिल में बसा लिया।
समय बितने लगा भाग्यशाली बड़ी हो गई उसकी पढ़ाई भी खत्म हो गई वो टीचर बन गई। दादाजी की पहचान से ही बहुत बड़े धराने मे भाग्यशाली का विवाह संम्पन्न हुआ।दादाजी को भरोसा था कि गाँव है तो क्या हुआ मेरी भाग्यशाली तो नौकरी करेगी और शहर मे रहेगी क्योकि उसके पति टीचर है पोती भी टीचर है।दोनो शहर मे ही मकान बना लगे क्योकि भाग्यशाली बचपन से शहर मे ही रही है उसे गाँव के काम व तौर तरीके नही मालूम लेकिन संस्कारी है इसलिए सब कुछ निभा लेगी।
ससुराल वालो ने भाग्यशाली को नौकरी करने से मना कर दिया।क्या कमी है हमे पैसो की।
दादाजी को बात पता चली तो उन्हे सदमा लग गया मैने अपनी पोती व अपने सपनो पर पानी फेर दिया।
मेरी पोती का कही जीवन खराब तो नही कर दिया यह सोच कर वह बिमार पड़ गये।पोती के पग फेरे की रस्म पर पोती आई ।दादाजी उसकी तरफ देखते हुये हाथो मे हाथ थामे रोने लगे रोते-रोते न जाने कब सो गये न अपने दिल की कुछ कही न पोती की कुछ सुनी।
भाग्यशाली के भाग्य ने ऐसी करवट ली जिन्दगी के इक्कीस साल शहर मे बिताये अब वह गाँव की हो कर रह गई। गाँव के काम देखती वह सीखती उसने समझ लिया मुझे गॉव मे रहना है तो काम सीखने व करने होगे।
चूल्हे पर खाना बनाती सोचने लगी एक खाँसी आने पर दादाजी ने दादी को कितना डाटा था कि मेरी पोती चूल्हे पर काम थोड़ी करेगी आज मै पूरा खाना चूल्हे पर बना रही हूँ हर काम करते वक्त भाग्यशाली सोचती इसमे किसी का दोष नही है।सब मेरे भाग्य का खेल है। कब कैसा वक्त आपके सामने आ जाये।यह भाग्य का खेल है इसे जो अच्छी तरह खेल ले व खिलाड़ी जो न खेल पाये वह अनाड़ी।