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Sunday, 16 February 2020

मायका (कविता) - शुभा/रजनी शुक्ला





मायका
                (कविता)
मायके की दहलीज लांघ कर 
आज के दिन ससुराल आई 
माता पिता के संस्कार ले कर 
नए परिवार को अपनाने आई

मा बाबा के प्यार भरे मन को 
हंसते रोते तोड़ आई 
भाईयो संग  लड़ने झगड़ने की 
परंपरा पीछे छोड़ आई 

सखियों के संग घूमना फिरना 
अमराई से आम चुराना
स्कूल कॉलेज की धमाचौकड़ी
वो सबकुछ मै भूल आई 

सप्तपदी के सात फेरों से 
मेरी सारी दुनिया ही बदल गई 
मायके की प्यारी रजनी बिटिया 
सासरे की बहु शुभा शुक्ला बन गई 

मां का ममता से भरा आंचल
पिता की उंगली का वो सहारा
भैया के बाग की सोन  चिरैया
मायके से उड़ ससुराल पहुंच गई

शादी को हो गये पच्चीस साल
जिंदगी के बीते साल बेमिसाल
मायके वालों का बहुत शुक्रिया
जिनसे मेरा जीवन है खुशहाल
-०-
शुभा/रजनी शुक्ला
रायपुर (छत्तीसगढ)

-०-

***
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1 comment:

  1. अति सुन्दर है कविता जीवन का यथार्थ कविता मे बदलने के लिये आँप को बहुत बहुत बधाई है आदरणीय !

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