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Saturday, 14 November 2020

है दीया जलाना माटी का (कविता) - अनवर हुसैन

  

है दीया जलाना माटी का
(कविता)
सारा दिखावा छोड़ के अबके
है   दीया   जलाना  माटी का.........
तम को हरते दीप सा हमको,
है  साथ   बंटाना  साथी  का .........
ये देश भी  अपना,
 है घर भी अपना
ये गांव भी अपना,
शहर  भी  अपना
कोई नहीं  अनजाना यहां पे
है  प्यार  बांटना   माटी  का........
माटी   की   कोमल ता  से
ये  दीप  निखरता  जाएगा
जब  होगा  रोशन  दीपक,
प्रकाश   बिखरता जाएगा 
इस  माटी  से निर्मित  दीप में,
अबके दीया जलाना बाती का ........
माटी के कण-कण का ऋण
अभी  तो  चुकाना  बाकी  है
देशप्रेम के संस्कारों को अब,
विश्व  में   दिखाना  बाकी  है
"पहले देश और पहले माटी",
है  नारा  लगाना  ख्याति का........
विश्व पटल का भाल हमीं है
राष्ट्रवाद  का  ज्वाल  हमीं है
दीप हमीं है ,  गुलाल हमीं है
आजादी की मिसाल हमीं है
ज्ञान पुंज ज्योतिर्मय है , सब
को,ये ज्ञान कराना माटी का...........
जिसका सरस नीर है , सरस हवाएं
सरल , सहज  है  रेशमी  कनिकाएं
चहु ओर   कल - कल    ध्वनि   से
मधुर गुंजनायुक्त ,अरूणाई दिशाएं
है पावन , पवित्र , सौभाग्य  हमारा
सर , माथे  पे   लगाना   माटी  का.......

-०-
पता :- 
अनवर हुसैन 
अजमेर (राजस्थान)

***
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दीपावली (बुन्देली हाइकु) - राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’


दीपावली
(बुन्देली हाइकु)
दीपावली
(बुन्देली हाइकु)

1
दिवारी आई,
दियल उजयार।
लच्छमी आई।।

2
बुन्देली गीत,
सेरे,फागे,दिवारीं।
नोरता गारी।।

3
नृत्य दिवारी,
मौनिया औ बधाई।
बरेदी राई।।

5
भूखे मरत,
मंहगाई डायन।
खाय है जात।।
-०-
राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ 
नई चर्च के पीछे,शिवनगर कालौनी,कुंवरपुरा रोड,
टीकमगढ़ (म.प्र.)

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आओ हम सब दीप जलाएँ (कविता) - श्रीमती पूनम दीपक शिंदे

 

आओ हम सब दीप जलाएँ
(ग़ज़ल)

आओ हम सब दीप जलाएँ,
जग से तम को दूर भगाएँ।
मन से मन का भेद मिटाएँ,
जीवन में उजियारा लाएँ।

आओ हम सब दीप जलाएँ,
जग से तम को दूर भगाएँ।

कोई रहे न भूखा - प्यासा,
पूरी हो हर मन की आशा।
मन से मन की बात हो न्यारी,
जग में हम उजियारा लाएँ।

आओ हम सब दीप जलाएँ,
जग से तम को दूर भगाएँ।

सागर - सी गहराई हो मन में,
हिम - सा हो अभिमान सभी में।
तन - सा स्वच्छ रखें हम मन को,
सबमें भातृ - भाव फैलाएँ।

आओ हम सब दीप जलाएँ,
जग से तम को दूर भगाएँ।

हिल - मिल हम सब एक बनें,
भारत की अनुपम शान बनें।
सीमा पर लड़ रहे सिपाही,
उनकी खातिर कुछ कर जाएँ।

आओ हम सब दीप जलाएँ,
जग से तम को दूर भगाएँ।

अपनी धरती अपना अंबर,
सागर अपना अपना पर्वत।
अपनेपन का भाव हो सब में,
ऐसा हम विस्वास जगाएँ।

आओ हम सब दीप जलाएँ,
जग से तम को दूर भगाएँ।

भेद भाव के तम को मन से,
दूर करें हम जन गण मन से।
एक रहे हैं एक रहेंगे,
ऐसा हम उत्साह जगाएँ।

आओ हम सब दीप जलाएँ,
जग से तम को दूर भगाएँ।
-०-
श्रीमती पूनम दीपक शिंदे
मुंबई (महाराष्ट्र)

-०-

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आशाओं का दीप (कविता) - प्रशान्त कुमार 'पी.के.'



आशाओं का दीप
(कविता) 
आशाओं का दीप जलाकर
निराशाओं के तम को मिटाकर
विश्वास का प्रकाश फैलायेंगे।
कोरोना  के  अंधकार  को,
भारत   भू   से   मिटायेंगे।।
एक " दीप " निवाले के नाम।
पेट आग को जलाने के काम।
एक  "दीप "बेसहारे का।
डूबते को तिनके के सहारे का।।
एक " दीप " उस किनारे का।
जीवन की नाव फँसी मझधारे का।
एक दीप इंसानियत के नाम।
जन जन की खैरियत के नाम।।
एक "दीप " भगवान के नाम।
जिसने खुद किया खुदा का काम।
एक "दीप " उन करवीरों को।
इंसानियत के धर्मवीरो को।
एक "दीप " उस महापुरुष को।
बीसवीं सदी के युगपुरुष को।
समग्र देश माला में गूँथा,
ऐसे आज के उस पौरुष को।।
एक दीप उस देश समर्पित।
अखण्ड एकता को करते समर्थित।
एक दीप जन जन की आवाज।
"कोरोना" से जंग - ए - आगाज।
एक " दीप "जन-जन की वाणी का।
महासदी के इस युगवाणी का।।
एक  "दीप " इस मानवता का।
चीन के अंत के उस दानवता का।
एक "दीप" जन गण मन का।
समाजसेवियों के परिजन का।
आओ मिल आवाज लगाएँ।
उम्मीदों का दीप जलाएं।
निराशाओं के घोर तिमिर को,
भारत भू से जड़ से मिटायें....
आओ मिलकर दीप जलाएं।।
-०-
पता -
प्रशान्त कुमार 'पी.के.'
हरदोई (उत्तर प्रदेश)
-०-

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जंगल में दीवाली (कविया) - नरेन्द्र श्रीवास्तव




जंगल में दीवाली
(कविता )
जंगल में पशुपक्षियों ने मिल
दीवाली का पर्व मनाया।
खेले-कूदे, झूमे-नाचे
हँसते-गाते हर्ष मनाया।।

चूहे, बिल्ली, लोमड़, बंदर
कचरा सारा ले गए ढोकर।
कौए, गलगल लीप-पोतकर
थककर लेटे बिछौने पर।।

चिड़ियों, तोतों ने पंखों से
मिलकर बढ़िया चौक बनाया।
जंगल मेंं पशुपक्षियों ने मिल
दीवाली का पर्व मनाया।।

घोड़े, भैंसे शहर से आए
मिठाई और फटाके लाए।
हाथी अपनी सूँड़ में लिए
लक्ष्मीजी की फोटो लाए।।

कछुए, खरगोशों ने मिल
फिर पूजा का थाल सजाया।
जंगल में पशु पक्षियों ने मिल
दीवाली का पर्व मनाया।।

जब जंगल के राजा आए
पूजन कर फिर दीप जलाए।
गधेलाल जी बाजा लाए
सबने मिलकर गाना गाए।।

पक्षियों ने फुलझड़ी चलायी,
पशुओं ने मिल बम चलाया।
जंगल में पशुपक्षियों ने मिल
दीवाली का पर्व मनाया।।
-०-
पता:
नरेन्द्र श्रीवास्तव
नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश)  
-०-
 
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'नव उजाले की बरसात करें' (कविता) - रजनीश मिश्र 'दीपक'


  

'कितना समय गँवाते हैं!'
(कविता)
दीवाली पर फूटें पटाखे,नये ढंग से करें धमाके।              
सेल सजे नये आइटमों के,होड़ करें सब दाम बढ़ाके।        
खिलखिलाते खील बताशे,खरीददार के होश उड़ाते।        
मुस्काती मिठाइयों के दाम तो,आसमान को छूते जाते।    
घी तेल राशन सब इतराये,सबने ही अपने भाव बढाये। 
सब्जियां अपना गुमान दिखातीं,कैसेकोई दीवाली मनाये। 
कैसे कोई ठहाके लगाये,                                        
खुशी में अनार फुलझड़ियां छुड़ाये।                               
प्रेम उपहारों को देकर,एक दूजे को देख मुस्काये।           
चारों तरफ बस शोर है,दिखावे का अजब दौर है।             
प्रेम सद्भाव का त्याग कर,यह जन बढ़ रहा किस ओर है। 
याद आता है बचपन अपना,तब दीवाली जब आती थी।  
सब ह्रदय खिले से दिखते थे,मन में खुशियाँ लहराती थीं।
आओ वे अच्छी चीजें याद करें,                                
उन्हें फिर से हम आप करें।                                          
सुख शांति सादगी प्रेम के,नव उजाले की बरसात करें।
-०-

पता 

रजनीश मिश्र 'दीपक'
शाहजहांपुर (उत्तरप्रदेश)

-०-



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दीपोत्सव (कविता) - सूर्य प्रताप राठौर

 

दीपोत्सव
(कविता)
दीप से दीप जलाकर दीपोत्सव का
मन में आशा एक ज्योति जगाओ।
गुम हुए जो अंधियारी गलियों के बंधन में
चीर उसे उजाले की नव-किरण फैलाओ।।
भूल हुई आवेश में तुमसे मन था किंचित चंचल
बुझते दीपक- सा आतुर था फिर दुखी अंतर्मन।
हृदय से त्यागो भय, स्वार्थ और लालच के अवगुण
नवप्रभात किरणों से छू लो सब का हृदय तन- मन।।
छंट जाएंगे दुख के मेघ तुम्हारे द्रवित ह्रदय -पटल से
बैर का बंधन तोड़ो अपने स्नेह पल्लवित पुष्पों से।
स्वागत करो नई सुबह की चंचल ,पुलकित रश्मियों का
जगमग दीप हरेंगे शंका द्रवित हृदय धरातल से।।
जलते दीपक मिलकर धरा से हैं अंधकार मिटाते
काली घनी धुंध को अपने तीव्र ज्योति से दूर भगाते।
बीत गई वह सारी बातें व्यथित किया था जिसने
संघर्षों का दीप क्यों नहीं तुम अपने मन में जलाते।।
जन-जन के सहयोग से फिर अपनी धरती मां
झूमेगी अपने उन्नति, प्रगति व विकास से।
दीप से दीप सजाकर पुष्प पंखुड़ी-सा जगमग
प्रकाशमान हो वर्तमान सीखे इस दमकते दीपक से।।
-०-
सूर्य प्रताप राठौर
सांगली (महाराष्ट्र)

-०-



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कैसा होगा बाल दिवस (कविता) - सुरजीत मान जलईया सिंह


कैसा होगा बाल दिवस
(कविता)
इसी तरह प्रगति के पथ पर
चले अगर हम मस्ताने।
आने वाले कुछ वर्षों में
कैसा बाल दिवस होगा?

काट रहे हो पेड़ निरन्तर
जाने किस अभिलाषा में।
पाट रहे हो ज़मीं निरन्तर
पक्के घर की आशा में?
बच्चे हमसे प्रश्न करेंगे
खेती में कुछ न होगा।
आने वाले कुछ वर्षों में
कैसा बाल दिवस होगा?

मीठा पानी नहीं मिलेगा
ताजा हवा नहीं होगी।
रोग पनप जायेंगे ऐसे
जिनकी दवा नहीं होगी।
ए. सी. बंगला इन कारों का
बच्चों के बिन क्या होगा?
आने वाले कुछ वर्षों में
कैसा बाल दिवस होगा?

आने वाली सभी पीढ़ियाँ
रोयेंगी इस उन्नति को।
भर भर झोली देंगी गाली
मानव की इस संगति को।
आसमान में उड़ने वाले
कैसा तेरा कल होगा?
आने वाले कुछ वर्षों में
कैसा बाल दिवस होगा?
-०-
सुरजीत मान जलईया सिंह
दुलियाजान (असम)
-०-
***
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दिवाली आई (कविता) - प्रेम बजाज

 


दिवाली आई

(कविता)
दिवाली आई- दिवाली आई , खुशियों भरी दिवाली आई ।
जगमग - जगमग दीप जले हैं , कितनी सुन्दर, कितनी प्यारी ,लगती ये रात सुहानी ।
झिलमिल- झिलमिल करती देखो अमावस की रात लगे प्यारी ।
बुढ़ा- बच्चा हर कोई देखो , सब को है आज खुशी निराली ।
देख धरा का प्रजवल्लित नज़ारा , चांदनी भी हो गई पानी - पानी ।
हर सु पटाखे और मिठाई , मिल रहे गले सब ग़ैर और भाई - भाई ।
दियों की सुन्दर पंक्तियों ने कैसी प्यारी धरा सजाई , खुशियों की बौछार लाई , जीवन में उपहार लाई ।
रंग- बिरंगे रंगों से सजी देखो हर सु  रंगोली लाई , छत - मुंडेर, आंगन देखो सब ओर है ज्योति जगमगाई ।
नील- गगन के तारे सारे , धरती पर हो जैसे बिछे प्यारे ।
दिवाली तो है त्योहार रईसों  का , गरीब की कहां मनती दिवाली , जिस रोज़ भूखे पेट ना सोना पड़े , उस रोज़ ही हो जाती ग़रीब की दिवाली ।
काश एक चिराग़ हर घर की देहरी पर जलता रहे , इस - उम्मीद की रोशनी करता रहे , अपनी चमक से निराशा के तम को भरता रहे ।
मां लक्ष्मी से सब अरदास करें , सब के भरपूर वो भंडार भरे ।
हर गांव और हर नगर में कैसी देखो खुशहाली छाई ।
दिवाली आई - दिवाली आई , खुशियों भरी दिवाली आई ।
-०-

पता 

प्रेम बजाज
जगाधरी, यमुनानगर (हरियाणा)


-०-



***
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बचपन (कविता) - श्रीमती कमलेश शर्मा

बचपन 
(कविता)
कभी किसी शहर के चौराहे पर,
रंग बिरंगे ग़ुब्बारे हाथ में लिए,
लाल बत्ती पर,
तन के चीथड़े ,
पसीने से लथपथ,
चमचमाती गाड़ियों के पीछे,
चार पैसे कमाने की आस लिए,
दौड़ लगाता बचपन.....।
उसी चौराहे पर,
चमचमाती ए.सी गाड़ी में बैठा,
इतवार की छुट्टी में,
मोज मस्तीके लिए,
सिनमा देखने के बाद,
बड़े बड़े होटलों में,
लज़ीज़ खाने का लुत्फ़ उठाता बचपन...।
उसी होटल के बाहर,
कटोरा हाथ में लिए ,
बचपन में बचपन को गोद में लिए,
पेट की भूख से लड़ता,
रोटी के एक टुकड़े को तरसता
आने जाने वालों के आगे ,
हाथ फैलाता बचपन...।
कहीं किसी शादी के पंडाल में,
चमचमाते सूट में,अहंकार भरे,
अपनी अमीरी का अभिमान लिए,
छप्पन भोज से भरी प्लेट में,
आधी जूठन छोड़ता ,
हाथ फैलाते बचपन को
दुतकारता बचपन...।
पंडाल के बाहर ,
ग़ुब्बारे हाथ में लिए,
पेट भरने की आस में,
कुछ कमाई की उम्मीद लगाता बचपन...।
कहीं पीठ पर बोरा लादे,
गली गली रद्दी बीनता,
पूरे परिवार का भार लिए,
अभावों में जीता,
माटी से अठखेलियाँ करता,
दीपावली जैसे त्योहारों पर,
माटी के दिए बना, बाज़ार सज़ाता
अगले दिन दूसरों के दीयों से ,
बचा तेल इकट्ठा कर,
अपने घर को रोशन कर,
त्योहार मना ,
खिलखिलाता बचपन...।
बचपन तो बचपन है,
फिर क्यों कहीं सुबह
किसी का शाम सा बचपन ?
कोई साहूकार ,
तो कोई ग़ुलाम सा बचपन।
जादू की झप्पी दें तो,
मुस्कुराने लगेगा,
मासूम सा बचपन ,
खिलखिलाने लगेगा।-०-
पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)

-0-


***
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"शहीद आज भी जिन्दा हैं" (कविता) - मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'


वीर चक्र ग्रेनेडियर रफ़ीक़ खान की शहादत को सलाम व श्रधांजलि

"शहीद आज भी जिन्दा हैं"
१४ नवंबर
(कविता)
सरहद पर शहीद होने वाले शहीदों को सलाम ।
रफ़ीक़ की शहादत से समाज आज भी जिन्दा है ।।

शहीदों की कुर्बानियों को हम भुला सकते नहीं ।
शहीद मरते नहीं वे तो आज भी जिन्दा हैं ।।

इतिहास भरा पड़ा है शहादत की कहानियों से ।
शहीदों की शहादत के किस्से आज भी जिन्दा है ।।

मरने को तो मरते हैं जो आए हैं दुनिया में ।
"रफ़ीक़ " जैसे हजारों शहीद आज भी जिन्दा हैं ।।

हंसते-हंसते फांसी के फन्दे पे झूले हैं शहीद ।
वतन पर मर मिटने वाले आज भी जिन्दा हैं ।।

वतन की राह में वतन पर कुर्बान होने वाले जाँबाज ।
वतन परस्त वतन के जाँबाज आज भी जिन्दा हैं ।।

धन्य है , शहीदों को जन्म देने वाली वो माँ ।
बेटों की शहादत से वो माँ आज भी जिन्दा है ।।

कौम व् वतन को नाज़ है "रफ़ीक़" की शहादत पर ।
ए "नाचीज़ " वतन पे जां लुटाने वाले आज भी जिन्दा हैं ।।
-०-

मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'
मोहल्ला कोहरियांन, बीकानेर

-०-

***
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बाल दिवस मनायेंगे (बाल गीत) - डॉ. प्रमोद सोनवानी

बाल दिवस मनायेंगे
(बाल गीत)
जन्म दिवस चाचा नेहरू का ,
उसको अमर बनायेंगे ।
मिल-जुलकर हम सारे बच्चे ,
बाल दिवस मनायेंगे ।।

जो बच्चे पढ़नें-लिखनें को ,
हरदम तरसा करते हैं ।
दीन-हीन निर्बल हैं बच्चे ,
पीड़ा कितना सहते हैं ।।
उन बच्चों को ढूंढ़-ढूंढ़ कर ।
हम तो खूब पढ़ायेंगे ।।1।।

इस दुनिया में हैं बहुतेरे ,
ऐसे मासूम बच्चे ।
भटक रहे हैं गाँव-गली में ,
भूखे -प्यासे बच्चे ।।
उन मासूम बच्चों को हम तो,
अपनापन दिखलायेंगे ।।2।।

नन्हें-मुन्नें हैं जो लाचार ,
जिनका क्या कसूर ।
दो रोटी के लिये जो हरपल ,
बोझ उठानें को मजबूर ।।
चलो-चले हम उन बच्चों को ।
मिलकर न्याय दिलायेंगे ।।3।।

मैले-कुचले कपड़े पहनें ,
आँखों में बहता है पानी ।
ढूंढ़ते हैं कचरे में बचपन ,
उनकी यही कहानी ।।
ऐसे प्यारे बच्चों पर हम ।
प्यार -दुलार लुटायेंगे ।।4।।
-०-
डॉ. प्रमोद सोनवानी
रायगढ़ (छ.ग.)


***
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सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ