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Saturday, 14 November 2020

'नव उजाले की बरसात करें' (कविता) - रजनीश मिश्र 'दीपक'


  

'कितना समय गँवाते हैं!'
(कविता)
दीवाली पर फूटें पटाखे,नये ढंग से करें धमाके।              
सेल सजे नये आइटमों के,होड़ करें सब दाम बढ़ाके।        
खिलखिलाते खील बताशे,खरीददार के होश उड़ाते।        
मुस्काती मिठाइयों के दाम तो,आसमान को छूते जाते।    
घी तेल राशन सब इतराये,सबने ही अपने भाव बढाये। 
सब्जियां अपना गुमान दिखातीं,कैसेकोई दीवाली मनाये। 
कैसे कोई ठहाके लगाये,                                        
खुशी में अनार फुलझड़ियां छुड़ाये।                               
प्रेम उपहारों को देकर,एक दूजे को देख मुस्काये।           
चारों तरफ बस शोर है,दिखावे का अजब दौर है।             
प्रेम सद्भाव का त्याग कर,यह जन बढ़ रहा किस ओर है। 
याद आता है बचपन अपना,तब दीवाली जब आती थी।  
सब ह्रदय खिले से दिखते थे,मन में खुशियाँ लहराती थीं।
आओ वे अच्छी चीजें याद करें,                                
उन्हें फिर से हम आप करें।                                          
सुख शांति सादगी प्रेम के,नव उजाले की बरसात करें।
-०-

पता 

रजनीश मिश्र 'दीपक'
शाहजहांपुर (उत्तरप्रदेश)

-०-



***
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