*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

Friday, 27 December 2019

स्वागतम् नूतन वर्ष (कविता) - मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'


स्वागतम् नूतन वर्ष 
(कविता)
कुदरत ने रंग दिखाया |
प्यारा नूतन वर्ष आया ||
फैल गयी घर-घर में,
स्नेह-मुहब्बत की लहर |
छाई उमंग हर गाँव-शहर ||
महक रहे सरसों जैसे मन |
चहक रहे जन-जन के तन ||
नये साल में अच्छाई का
हम सब मिलके प्रण करें |
निबलों-विकलों के दु:ख हरें ||
मजबूत बने विश्वास हमारा |
मिले खुशिओं भरा पिटारा ||
राष्ट्र हमारा नित करे विकास
निश्चय हर दिन हो त्यौहार |
मधुर रहे आपसी व्यवहार ||
आओ सब साथी गले मिलें |
मिलकर मंजिल की ओर चलें ||
स्वागतम् नूतन वर्ष तुम्हारा,
सुख-शांति सद् भावना |
लेकर हर घर में आना ||
-०-
मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'
फतेहाबाद-आगरा. 
-०-

***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

उन्नति का साल (कविता) - प्रतीक प्रभाकर

उन्नति का साल
(कविता)
हो सिर्फ उत्थान चहुं ओर
न दिखे पतन कोई हाल
हर दिन आशा से लिप्त
हर पल हो बड़ा कमाल

साथ छोड़ आलस्य भागे
तज दें अवनति-जंजाल
पा जाएं हर चाह सभी ही
न रहे किसी को मलाल

साकार स्वप्न,अग्रणी कदम
बाधा से जीतें,ले ढाल
हर दिन पर-स्व की मदद हो
निर्मल रहे सदा ख्याल

हे अग्रज, बंधु,मित्र शुभेक्छु
गले हो जीत का माल
मैं प्रतीक देता शुभकामनाएं
मंगलमय हो यह साल
-०-
प्रतीक प्रभाकर
गयाजी (बिहार)

-०-
***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

संधी प्रस्ताव से पूर्व (आलेख) - श्रीमती प्रभा पारीक

संधी प्रस्ताव से पूर्व (आलेख)
(आलेख)
       कृष्ण का हस्तिनापुर में पांण्डवों का दूत बन कर आगमन हुआ। भीष्म अपने आप को वर्तमान परिस्थितियों में बिल्कुल लाचार महसूस कर रहे थे। जब बाढ़ का पानी सिर की सीमा को छूने का आतुर हो तब बचाव का संर्धष ही केवल एक मार्ग बच जाता है। पितामह की राष्ट्र्र के प्रति प्रतिबद्धता निष्ठा का दिया हुआ वचन, जिसके कारण आज उनके विचारों के द्वार के सारे कपाटो पर ताले जड़ दिये थे। ऐसे में समाचार आया कृष्ण पांण्डवों के दूत बनकर आ रहे हैं क्या! कैसे? कब! कब! जैसे प्रश्नों का सामना करता हस्तिनापुर का राज परिवार। सब अपना अपना दिमाग अपनी अपनी सोच के अनुसार दौड़ाने लगे थे और जैसा कि विदित था दुर्योधन अपनी सोचने की शक्ति को मामा शकुनि को सौप कर निश्फिक्र बैठा हो ऐसा नहीं था। यदा कदा वह कर्ण की भ्ां सुन लिया करता था। कर्ण उसकी सोच का एक मजबूत पासा था और कर्ण के लिये दुर्योधन उसके व्यक्त्वि का एक मजबूर थंब था।
      कृष्ण के आगमन का समाचार पाकर कर्ण सोचने विचारने तो लगा था। मामा शकुनि मन ही मन भयभीत थे। शकुनि भी चालाबाज था और कृष्ण चतुर थे। दौनों की चाले अचूक थी पर एक की चाल लोक हितकारी थी और दुसरे की लोक विनाशकारी। बस यही फर्क था। शकुनि को रात भर का समय मिला जब उसे दुर्योधन व अपने अन्य भानजों को समझाया था कि कृष्ण के संम्मोहन में आये बिना सिर्फ अपने हित के बारे में ही विचार करते रहें। पहले दिन सबसे मिलने के बाद आज सब से पहले कृष्ण उषा काल के समय गांधारी के कक्ष में अचानक चले आये,माता गांधारी उषापान करने अपने कक्ष की खिड़की तक ही पहुँची थी हल्के ताप को अपने में महसूस करती देवी गांधारी बैठने का विचार कर ही रही थी कि उसे मधुर सम्मोहित कर देने वाला स्वर जो उसकी रग-रग को झकझोर गया सुनाई दिया.... बुआ.....मै आ गया..... 
      गांधारी कभी कृष्ण से नहीं मिल पाई थी। विवाह से पहले देखा भी नहीं था बालपन में भी उसने बस सुना भर था, यशोदा का लाड़ला, द्वारिकाघीश,कैन्हैया गिरधारी, मुरारी बिहारी गेपाल ना जाने कितने नाम धारी बालक की अदभुत बातें पर वह तो कृष्ण के बचपन का समय था.... सब बातें कौतुक भरी लगती हैं पर आज इस प्रौढता को पाकर उन बातों की सार्थकता समझ पा रही थी ं.....
           कृष्ण का ‘बुआ‘ शब्द रंग रंग को झंकृत कर उसके अन्तर में उतर गया । वासुदेव कृष्ण ने गांधारी के चरणों को स्पर्श मात्र ही किया था। न जाने कौनसी ताकत होती है कुछ लोगों के दर्शन मात्र में कि बात करते हैं तो लगता है दिल को अपना बना लेते है। याद आ रहा है गांधारी को, उस दिन आर्शिवाद के वचन निकले भी... पर क्या ..........नहीं मालूम कृष्ण खड़ा हैं गांधारी के दौनों कंधे थामें, दो सशक्त बाहें मुझे निहारती आदर से कुछ कह रहीं थी.... लगा जैसे वह कपटी मेरे रोम-रोम में समाता चला गया। उसका वह सात्विक अहसास जो मेरे अन्तर को झकझोर रहा था.....गांधारी चाहते हुये भीं अपने हाथों को रोक न पाई केशव के सिर पर स्नेह वर्षा कर उनके पिताम्बर को महसूस करती गांधारी का अनायास प्रश्न‘‘ सुना हैं तु पितांम्बर धारी है...केशव.. .....’’.सही सुना है बुआ’’ पर आपको क्या लगता है? गांधारी ने स्नेह से कहा मुझे.....? मुझे तो अब सूर्य की आभा सा सब पीत ही महसूस हो रहा है ’’क्या बात है बुआ तुम में रंगों को बंद आखों से परख लेने की अदभुत शक्ति है.’’.......फिर तो बुआ तुम मानव मन को भ्ां पढ लेती होगी? सकपकाई गांधारी ने कहा... अरे कहॉ...... पर सुना है मोर पंख है तेरे सिर पर कृष्ण ने अपनी मोहनी चितवन से कहा था ’’हॉ बचपन में माता यशोदा अपने लाल पर ठांना करने के लिये लगाती थी अब आदत हो गई, मोर पंख की....’’ अरे सुना तो यह भी है पहचान है तेरी ’’...हँसते हुये कृष्ण ने कहा नहीं बुआ पहचान तो इंसान की उसके अपने कर्मो से होती है’’पर सच है बुआ कहते कहते कृष्ण ने अति आदर भरे स्नेह से गांधारी की बांह पकड़ कर उसे कक्ष में रखे आसन पर बिठा दिया और स्वयं उनके चरणों के पास स्नेह से बैठ गया। पहले तो गांधारी कुछ नहीं समझी फिर तत्काल उसने सेवको को आवाज देनी चाही कृष्ण के बैठने के लिये कुछ......गांधारी को तुरन्त रोका था। कृष्ण ने ना ना रहने दो बुआ, आज वर्षो बाद तुम्हारे पास इस तरह बैठना अच्छा लग रहा है। बात को आगे बढाते हुये कृष्ण ने कहा था’’ यह मोर पंख भी अनोख है बुआ सभी रंगों को अपने में समाहित अनेक भागो में विभक्त फिर भी एक ही नजर आता है मुलायम ,सुखकारी... इस लिये ही तो मैने इसे अपने सिर पर घारण किया है!...वर्तमान में लौट आई गांधारी.... हाँ... केशव....गांधारी कृष्ण को इस तरह अपने चरणों में बैठा देख कर प्रसन्न भी थी और असहज भी थी। 
          ना जाने इस छलिये का क्या प्रयोजन हो। कुछ विचार प्रवाह में बहते हुये गांधारी ने कहा ’’मोर पखों के कोमल रंगो सा तुम्हारा मन बदलते परिवेश के विषय में क्या सोच रहा है .....और अपनी ही बात का रूख बदलते हुये कहा ’’कितनी बातें करनी थी केशव.....तुम कल से आये हो अब मिले हो आकर......!’’ गांधारी ने उलाहना दिया था। कृष्ण ने अपनी जानी पहचानी उन्मुक्त हंसी से कहा था। ’’ दूत हूँ ना बुआ अपना कर्तव्य पूरा करने में लगा रहा। पर प्रातः सर्वप्रथम आपके दर्शनों को ही आया हूॅ ’’सत्य सत्य...... ना !ना! केशव तुम और असत्य...! अपना उलाहना जैसे गांधारी को ही कोचने लगा था। संधी प्रस्ताव के लिये आये कृष्ण से गांधरी ने अनेक पारिवारीक और औपचारिक बातों के साथ कहा था कि मैने सुना है कि पाण्डव अज्ञातवास पूरा होने की अवधी के पूर्व ही पहचान लिये गये हैं शर्त के अनुसार तो उन्हें पुनःबारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास में रहना चाहिये’’ तब कृष्ण ने कहा था ’’ आप इतनी चिन्ता क्यों करती हैं बुआजी आप तो वास्तविकता जानती है।’’ चलिये बाकी सारी समझ मैं आपके ऊपर छोडता हुं आप जो भी निर्णय दे देंगे मुझे स्वीकार्य होगा मै उतने पर ही पाण्डवों को मना लूंगा। जानती थी गंधारी की कृष्ण को तर्को से हराना कठिन ही नहीं असंभव है जैसे ही वैचारिक विवाद होगा कृष्ण यही कहेगा औरों की बात छोडिये आप अपनी आत्मा की आवाज सुनिये। सहज मातृत्व मुखर हुआ और एक मां की आवाज निकल आई दूसरे पुत्र के सामने। दुर्योधन को समझाओ केशव......! बुआ’’ परिस्थितियाँ समझने और समझाने की सीमा पार कर चुकी है’’ ..... अब तो बस इतना ही कहूंगा बुआ कि सबके पास खूबीयाँ और कमियाँ दौनों है बुआ अब लोग क्या देखतें है ये लोगों पर निर्भर करता है ......युं तो इस परिवार में पांण्डवों के सभी तो... अपने हैं अपनापन तो सभी दिखाते है पर अपना कौन है यह तो समय ही बताता है। म्ें तो आज दूत बन कर आया हू। निश्चय ही आपका जो संदेश होगा उनसे जाकर कह दूंगा, जो मेरा कर्तव्य है। वातसल्य से भरकर कहा भी था ’’जो मैं कह दुंगी तु मान जायेगा कृष्ण!’’ अवश्य मान जाऊँगा बुआ क्यों कि मैं जानता हुं आपका ह्रदय निर्मल है आप भले मां कौरवों की हैं पर अभी तक आपने अपने कदम अर्धम की और नहीं रखे।’’
       गांधारी सुन तो रही थी पर दिमाग में अनेक झंझावत उठ रहे थे। कृष्ण की सम्मोहित करती वाणी का प्रभाव ही तो था या मन का अर्न्तद्वन्द था। कुछ पल के लिये गांधारी को लगा भी कि कहीं यह मुझे लुभा कर अपनी और तो नहीं कर लेगा फिर तुरन्त अपने संशय से बाहर निकलकर कह ही दिया ’’तुम तो हमारी बात बात सुन लोगे कन्हैया पर हस्तिनापुर की राजसभा में हम नारियों की बात ही कहाँ सुनी जाती हैं ’’और कृष्ण ने एक आह सी भरते हुये स्वीकृति दी थी ’’यही है आर्यावर्त का दुर्भाग्य कि नारियाँ उपेक्षित हैं उनकी वेचारिक अस्मिता स्वीकार्य ही नहीं कि जाती। कृष्ण ने बात का संम्पादन करते हुये स्वीकृति दिखाई और अचानक किसी आहट को सुनकर गांधारी के चरण छु कर कृष्ण तुरन्त कक्ष के बाहर निकल गये। क्यों कि अचानक उन्हे लगने लगा था कि चारो तरफ कुछ अप्रकट है। कृष्ण ’’महामानव’’ उनकी खूबी यही थी कि वह जब भी किसी से मिले, किसी भी रिश्ते से मिले, किसी भी अवसर पर मिले, एक नये अनोखे रूप में मिल,े रिश्तों में पूरी ताजगी लिये .... उनका गांधारी के साथ इस तरह मिलना व्यवहारिक तो था ही एक सुन्दर संस्कार भी था। याद कर रही थी गांधारी क्या कहती किसे समझाये चारों तरफ से ही तो घिरी थी। दुर्योधन के कारण आज कृष्ण के साथ मिलन जैसे पवित्र अवसर पर भी वह अशांत थी। कहिं भावनाओं का ज्वार था तो कहीं महत्वकांक्षाओं का उबाल । कृष्ण जब जाने का उध्घत थे बस जाते समय इतना ही कह पाये थे ’’कभी कभी भगवान् भी मात्र कर्तव्य पालन में आस्था रख भविष्य से अनजान बने रहने को बाध्य होते हैं’’। 
        कृष्ण के जाने के बाद बहुत समय लगा गांधरी को कृष्ण के सम्मोहन से बाहर आने में उसका मधुर स्पर्श उसका सम्मोहित करने वाला स्वर और दिल तक भेद कर उतर जाने वाली गहरी आवाज। 
          गांधारी ने महसूस किया सच है वह जो महसूस करती है कि राजभवन में महिलाओं की कोई सुनता नहीं है आज कृष्ण ने भी यही महसूस किया है और उसी समय गांधारी ने निर्णय लिया कि अब जो राज सभा होगी वह उसका हिस्सा अवश्य बनेगी। मन में तो उथल पुथल थी ही कि उसका वहाँ जाना उचित होगा अथवा नहीं? उसे आमंत्रित भी तो नहीं किया गया था क्यों की वह काल जिसमें राजनिति को स्त्रियों की पहुँच से बाहर गिना जाता है गांधारी यह भी जानती थी कि कुछ सभायें ऐतिहासिक होती हैं उसे भी सूचना मिल गई थी।
-0-
श्रीमती   प्रभा   पारीक
भरूच  (मध्यप्रदेश )

-०-


***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

मेरी माँ (कविता) - रश्मि शर्मा


मेरी माँ
(कविता)
वो चार साल पहले की रात मानो आज की ही बात है।
घर बैठी मन बैचेन था मेरा मानो, मुसीबत मे कोई अपना ही है।।

फोन की घंटी बजी मां हॉस्पीटल मे बिमार वैन्टीलेटर पर है।
सब कहते रहे ठीक है मानो, तसल्ली दे रहे है।।

आँखो से आंसू रूकने का नाम नही ले रहे है।
मन बैचेन है मानो, कह रहा हो कुछ ठीक नही है।।

बिन मौसम बरसात होने लगी मानो आंसूओ का साथ दे रही है।
मेरे आंसूओ के साथ मानो, बरसात भी रो रही है।।

रोते रोते आँख लग गयी हमारी सपने मे देखा माँ ही है।
मानो, कहने लगी तू सो जा हमने कहाँ माँ कहाँ जा रही है।।

कड़कड़ाती बिजली ने नींद हमारी खोल दी है।
मानो ,आखिरी बार माँ मिलने आई है।।

आधी रात होने को थी फोन आया मां नही रही है।
मानो,होश उड़ गये हमारे ये क्या हुआ है।।

आँख बन्द करते ही मां यही है।
मानो,आँख खोलते ही माँ नही है।।

मां बेटी की आत्मा मिली होती है।
मानो, मां आखिरी बार मुझसे मिलने आई है।।

आज भी वो रात याद आती है आत्मा काँप जाती है।
मानो, दिल से याद करू तो आज भी सपने मे मां आ जाती है।।-०-
रश्मि शर्मा
आगरा(उत्तरप्रदेश)

-०-


***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

चुनाव जीतने के बाद बताएंगे (कविता) - राम नारायण साहू 'राज'


चुनाव जीतने के बाद बताएंगे
(हास्य व्यंग्य कविता)
चुनाव के समय एक नेता जी, सुबह सुबह घर में आये |
अपने चुनाव चिन्ह के बारे में, बटन दबाने की बात बताये |
मैंने कहाँ नेता जी बात तो आपकी ठीक है |
लेकिन पिछले साल का काम अभी तक क्यो नही करवाये |
नेता जी हड़बड़ाए अपने चेलों की ओर इशारा करते हुए बताये |
इस बार चुनाव जीतने के बाद, पूरा काम करवाऊंगा।
और काम पूरा होने पर समीक्षा करने खुद मैं जाऊँगा।
मैंने कहा ये तो बताइए क्या क्या काम करवाएंगे।
या चुनाव जीतते ही सारे किये वादे भूल जाएंगे।
नेता जी तपाक से पहली बार अपनी बात बोले।
इस बार काम नही होगा तो अगली बार मत जिताना।
लेकिन इस बार मेरे चुनाव चिन्ह पर मुहर जरूर लगाना।
राशन कार्ड, आधार कार्ड, वोटर कार्ड, फ्री में बनवाऊंगा।
स्मार्ट कार्ड के साथ सब कार्ड हर घर में पहुँचाऊँगा।
बिजली, पानी, नल कनेक्शन का बिल भी माफ करवाऊंगा।
नाली के साथ चमकती सड़के, पुल, ब्रेकर की भी जिम्मेदारी मैं लेता हूँ।
कोई बनाने नही आएगा तो मैं खुद बनाऊंगा।
साथ साथ स्कूल, धर्मशाला, गौशाला बनाने की भी योजना है।
मैं अपने शहर को शहर नही, स्मार्ट सिटी बनाऊंगा।
मंदिर , मस्जिद और गिरजाघर भी बनवाऊंगा |
जैन मंदिर से साथ साथ कई मंदिरो की निर्माण भी कराऊंगा |
किसान भाइयों के लिए पेंशन की सुविधा करवाऊंगा |
कर्जमाफी और फ्री में खाद और बीज दिलवाऊंगा।
और अब धान मंडी में लाने की जरूरत नही है।
मैं खुद किलोवॉट लेकर, धान खरीदने के घर जाऊँगा।
राज साहब आपसे भी वादा करता हूँ, और करूँगा भी।
एक शानदार चमकती लाइब्रेरी आपके लिए भी बनाऊंगा।
मैंने कहाँ नेता जी इन वादों में कितने वादे निभाएंगे।
नेता जी बोले अभी क्या बताये, जीतने के बाद सब बताएंगे।-०-
राम नारायण साहू 'राज'
रायपुर (छत्तीसगढ़)

-०-



***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

फैसला (लघुकथा) - अर्विना



फैसला
(लघुकथा)
गाड़ियों का काफिला गाँव में घुसा तो धूल का गुबार आसमान पर छा गया । खट-खट गाड़ियों के दरवाजे खुले भका भक सफेदी की चमकार लिए कुरता पायजामा धारी बहुत से लोग उतरे और किसना के घर की और मुड़ गए । माटी को पैरों से गूंथता किसना अपनी तरफ आती भीड़ को देखने लगा पैर अपनी गति से चल रहे थे । 
सरपंच जी आगे आगे भागते हुए किसना के पास आकर ही दम लिया । फूली हुई सांसों पर काबू करते हुए बोले ।
किसना ! नेताजी के लिए है चल जल्दी से झोपड़ी में से खटिया लाकर बिछा अपनी महरारु को बोल बाजरे की रोटी बनाले नेता जी खायेंगे ।
किसना ने माटी से निकल कर पैर धो आया ।
किसना जे ले आटा और हरी मिर्च , चूल्हे में बैंगन भूंज के बन जाएगा बूँद भर तेल में , तू चार दिन सिर में मत डालियों कड़वा तेल । 
किसना ने अंदर जा कर पत्नी को सारा सामान पकड़ा दिया रनिया साबुत सी थाली में खाना देना टेड़ी भेड़ी में मत देना । 
तुम दारु पी कर थाली फैंकना बंद करदो सब थाली दारु की भेंट चढ़ गई एक बची है। 
ठीक है ! ज्यादा मत बोल काम कर ।
किसना का मन तो ना कर रहा था पर संस्कार आड़े आ गए । बड़ों ने घर आए मेहमान की इज्जत करना जो सिखाया है । 
झोंपड़ी से खटिया निकाला लाया और अदब से नेताजी को बैठा दिया उनके चारों तरफ लोगों का हुजूम उमड पड़ा था ।केमरे लिए लोगों में फोटू खींचने की होड़ लगी थी । किसना को किसी की बात पल्ले नहीं पड़ रही थी बस इतना पता था चुनाव आ गया है । 
सरपंच ने सुत संन्न खड़े किसना को झकझोर कर कहा किसना नेताजी के लिए खाना तैयार हो तो ले आ जल्दी ।
किसना भीतर जाकर खाना ले आया और नेताजी को दे दिया और खुद हाथ जोड़कर खड़ा हो गया ।
नेताजी ने केमरे में देखकर खाना खाया सभी ने नेताजी की तारीफ की कितने महान हैं हमारे नेता जी मिट्टी के बर्तन बनाने वाले के घर खाना खा रहे हैं। नेता जी ने चलते हुए किसना से कहा वोट हमें ही देना ।
साहब छोटा मुँह बड़ी बात कुछ फैसले हम पर ही छोड़ दें तो अच्छा है ।
-०-
अर्विना
प्रयागराज (उत्तरप्रदेश)
-०-

***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

दूषित हवा (कविता) - सुरजीत मान जलईया सिंह


दूषित हवा
(कविता)
दूषित हवा पराली करती
होता है जय घोष।
ये पंजाब हरियाणा वाले
जला रहे हैं खेत।
दिल्ली वाले भर-भर मुट्ठी
लील रहे हैं रेत।
जिसने अपना पेट काटकर
भरा हमारा पेट।
आज उसी की खातिर देखो
जनता में है रोष।
दूषित हवा पराली करती
होता है जय घोष।

ए. सी. से ऑक्सीजन निकले
घर होता है ठंडा।
कारखानों के धुआँ नीचे
चला रहे हो डंडा।
सब कुछ गलती खेतिहार की
गेहूं धान उगाता।
वाह क्या है कानून हमारा
सब किसान का दोष।
दूषित हवा पराली करती
होता है जय घोष।

पढ़े लिखे भी अनपढ़ जैसी
अब करते हैं बात।
मोटर वाहन जिनके चलते
दिनभर सारी रात।
रोज हवा जहरीली करते
खुद के कारोबार।
एक हफ़्ते जब जली पराली
मिले नहीं संतोष।
दूषित हवा पराली करती
होता है जय घोष।
-०-
सुरजीत मान जलईया सिंह
दुलियाजान (असम)
-०-
***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ