फैसला
(लघुकथा)
गाड़ियों का काफिला गाँव में घुसा तो धूल का गुबार आसमान पर छा गया । खट-खट गाड़ियों के दरवाजे खुले भका भक सफेदी की चमकार लिए कुरता पायजामा धारी बहुत से लोग उतरे और किसना के घर की और मुड़ गए । माटी को पैरों से गूंथता किसना अपनी तरफ आती भीड़ को देखने लगा पैर अपनी गति से चल रहे थे ।
सरपंच जी आगे आगे भागते हुए किसना के पास आकर ही दम लिया । फूली हुई सांसों पर काबू करते हुए बोले ।
किसना ! नेताजी के लिए है चल जल्दी से झोपड़ी में से खटिया लाकर बिछा अपनी महरारु को बोल बाजरे की रोटी बनाले नेता जी खायेंगे ।
किसना ने माटी से निकल कर पैर धो आया ।
किसना जे ले आटा और हरी मिर्च , चूल्हे में बैंगन भूंज के बन जाएगा बूँद भर तेल में , तू चार दिन सिर में मत डालियों कड़वा तेल ।
किसना ने अंदर जा कर पत्नी को सारा सामान पकड़ा दिया रनिया साबुत सी थाली में खाना देना टेड़ी भेड़ी में मत देना ।
तुम दारु पी कर थाली फैंकना बंद करदो सब थाली दारु की भेंट चढ़ गई एक बची है।
ठीक है ! ज्यादा मत बोल काम कर ।
किसना का मन तो ना कर रहा था पर संस्कार आड़े आ गए । बड़ों ने घर आए मेहमान की इज्जत करना जो सिखाया है ।
झोंपड़ी से खटिया निकाला लाया और अदब से नेताजी को बैठा दिया उनके चारों तरफ लोगों का हुजूम उमड पड़ा था ।केमरे लिए लोगों में फोटू खींचने की होड़ लगी थी । किसना को किसी की बात पल्ले नहीं पड़ रही थी बस इतना पता था चुनाव आ गया है ।
सरपंच ने सुत संन्न खड़े किसना को झकझोर कर कहा किसना नेताजी के लिए खाना तैयार हो तो ले आ जल्दी ।
किसना भीतर जाकर खाना ले आया और नेताजी को दे दिया और खुद हाथ जोड़कर खड़ा हो गया ।
नेताजी ने केमरे में देखकर खाना खाया सभी ने नेताजी की तारीफ की कितने महान हैं हमारे नेता जी मिट्टी के बर्तन बनाने वाले के घर खाना खा रहे हैं। नेता जी ने चलते हुए किसना से कहा वोट हमें ही देना ।
साहब छोटा मुँह बड़ी बात कुछ फैसले हम पर ही छोड़ दें तो अच्छा है ।
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सुन्दर लघुकथा
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