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Friday, 27 December 2019

मेरी माँ (कविता) - रश्मि शर्मा


मेरी माँ
(कविता)
वो चार साल पहले की रात मानो आज की ही बात है।
घर बैठी मन बैचेन था मेरा मानो, मुसीबत मे कोई अपना ही है।।

फोन की घंटी बजी मां हॉस्पीटल मे बिमार वैन्टीलेटर पर है।
सब कहते रहे ठीक है मानो, तसल्ली दे रहे है।।

आँखो से आंसू रूकने का नाम नही ले रहे है।
मन बैचेन है मानो, कह रहा हो कुछ ठीक नही है।।

बिन मौसम बरसात होने लगी मानो आंसूओ का साथ दे रही है।
मेरे आंसूओ के साथ मानो, बरसात भी रो रही है।।

रोते रोते आँख लग गयी हमारी सपने मे देखा माँ ही है।
मानो, कहने लगी तू सो जा हमने कहाँ माँ कहाँ जा रही है।।

कड़कड़ाती बिजली ने नींद हमारी खोल दी है।
मानो ,आखिरी बार माँ मिलने आई है।।

आधी रात होने को थी फोन आया मां नही रही है।
मानो,होश उड़ गये हमारे ये क्या हुआ है।।

आँख बन्द करते ही मां यही है।
मानो,आँख खोलते ही माँ नही है।।

मां बेटी की आत्मा मिली होती है।
मानो, मां आखिरी बार मुझसे मिलने आई है।।

आज भी वो रात याद आती है आत्मा काँप जाती है।
मानो, दिल से याद करू तो आज भी सपने मे मां आ जाती है।।-०-
रश्मि शर्मा
आगरा(उत्तरप्रदेश)

-०-


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