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Friday 27 December 2019

दूषित हवा (कविता) - सुरजीत मान जलईया सिंह


दूषित हवा
(कविता)
दूषित हवा पराली करती
होता है जय घोष।
ये पंजाब हरियाणा वाले
जला रहे हैं खेत।
दिल्ली वाले भर-भर मुट्ठी
लील रहे हैं रेत।
जिसने अपना पेट काटकर
भरा हमारा पेट।
आज उसी की खातिर देखो
जनता में है रोष।
दूषित हवा पराली करती
होता है जय घोष।

ए. सी. से ऑक्सीजन निकले
घर होता है ठंडा।
कारखानों के धुआँ नीचे
चला रहे हो डंडा।
सब कुछ गलती खेतिहार की
गेहूं धान उगाता।
वाह क्या है कानून हमारा
सब किसान का दोष।
दूषित हवा पराली करती
होता है जय घोष।

पढ़े लिखे भी अनपढ़ जैसी
अब करते हैं बात।
मोटर वाहन जिनके चलते
दिनभर सारी रात।
रोज हवा जहरीली करते
खुद के कारोबार।
एक हफ़्ते जब जली पराली
मिले नहीं संतोष।
दूषित हवा पराली करती
होता है जय घोष।
-०-
सुरजीत मान जलईया सिंह
दुलियाजान (असम)
-०-
***
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