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Saturday 3 July 2021

बारिश की रूमानी फुहार (कविता) - अतुल पाठक 'धैर्य'


बारिश की रूमानी फुहार
(कविता)
बारिश की आई रूमानी फुहार,
हुआ है मदहोश दिल बेकरार।

प्रेमी संग प्रेमिका गाए प्रेमगीत मल्हार,
आसमां भी हो रहा खूब गुलज़ार।

मौसम अंगड़ाई लेता आती बहार,
वो पगली मुस्कुराती बार बार।

प्रेमप्रसून खिल रहे हृदय में,
सावन में बरसे बेशुमार प्यार ही प्यार।

अरमान~ए~गुल खिले दिल लगा महकने
प्यार की रौनक है प्यार ही उपहार
-०-
पता: 
अतुल पाठक  'धैर्य'
जनपद हाथरस (उत्तरप्रदेश)

-०-

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Thursday 1 July 2021

वर्षा गीत (गीत) - शाहाना परवीन

 

वर्षा गीत

(गीत)

घुमड़- घुमड़ कर बदरा आये,
मेरे घर- आँगन में छाए।
मेरी अंखियन तक- तक जाए।
तुम कब आओगे सजनवा?

अब तो आ जाओ सजना,
बागों में पड़ गए झूले।
अँबुआ की डाल पर कोयल,
मतवाली होकर बोले।

मेरी अंखियन तक- तक जाए।
तुम कब आओगे सजनवा?

सखियन से करूँ ना मै बात,
लागे ना मोरा जिया सजना आए याद।
बदरा भी अब तो घिर आए,
पवन मंद- मंद मुसकाएं।

मेरी अंखियन तक- तक जाए।
तुम कब आओगे सजनवा?
-0-
पता -
शाहाना परवीन
मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)
-०-


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Saturday 8 May 2021

सामना मौत से (कविता) - श्रीमती कमलेश शर्मा


सामना मौत से 
(कविता)
*8 मई २०२ ,महाराष्ट्र में रेल हादसे में प्रवासी मज़दूरों की मौत पर”*
तपती गर्मी में...
छोटे छोटे बच्चों को गोदी में दबाए,
घर पहुँचने की आस लगाए,
ज़िंदगी की गठरी सिर पर उठाए,
ये मज़दूर..पैदल चलने को मजबूर।
गाँव से आए थे शहर..,
ढाया करोंना ने क़हर..,
जब टूटने लगा हौसला,
किया घर जाने का फ़ैसला।
हालात ने छीन लिए मुँह के निवाले,
ज़िंदगी कर रब के हवाले।
चल दिए मौत से बच कर,
पसीने से लथपथ.
खा कर सूखी रोटी..चटनी से लथपथ
ललचा गया मन,आराम करने को,
हालात से थक कर।
सो गए रेल की पटरी को..
तकिया समझ कर।
शायद रोजी रोटी का सफ़र ,
था यही तक...।
यूँ तो बसें ट्रेनें सब बंद थी,
पर ज़िंदगी बदनसीब थी।
दौड़ती ट्रेन...जिससे ..
घर पहुँचने की उम्मीद थी,
सकूँन का सबब थी..इतने क़रीब थी।
समेट लिया पलक झपकते ही मौत ने,
गाँव पहुँचने से पहले ही...
गहरी नींद..सुला दिया इस सौत ने।
कैसी आइ ये भौर..?
पसरा ख़ामोशी का शोर..।
बिखरी रोटियाँ..इंसानी बोटियाँ।
मर्घट बनी पटरियाँ।
मिल गए मिट्टी में..
मंज़िल तय करते करते ।
सो गए चिर निद्रा में..
ज़िंदगी से लड़ते लड़ते।
ना कोई चीख़ा,ना चिल्लाया..
ज़िंदगी ने मौत से मिलाया।
सुबह बस रेल की पटरियाँ थी,
बिखरी रोटियाँ थी,
चिथडो में बंटी जिंदगियाँ थी।
परिवार इंतज़ार करता रहा..
पिता सोचता रहा..
बेटा आएगा..कमा के लाएगा,
बुढ़ापा कुछ आसान हो जाएगा।
कब सोचा था..ऐसा वक़्त भी आएगा,
ज़िंदगी पटरी पर लाने चले थे,
पटरी ही मौत का कारण बन जाएगा।
क्षत विक्षत शरीर....
पटरी पर बिखर गया,
बह चला लहू का समुन्दर,
उफ़्फ़..ये खोफ़नाख मंज़र,
ना कभी देखा,ना सुना,
मौत ने भी कैसा ये ताना बाना बुना।
टूट गई आशाए..
जिस्म एक गठरी में सिमट गया।
मिल गए मिट्टी में...
मंज़िल तय करते करते,
सो गए चिर निद्रा में ...,.
ज़िंदगी से लड़ते लड़ते।
संवेदनहीनता बरक़रार रही..
इंसानियत शर्मसार रही।
काश कुछ ऐसी नीतियाँ बनती,
जो इन ग़रीबों की सुनती।
ये मौतें इन नीतियों का नतीजा है..?
या किसी की जिम्मेदारी है ?
किसे दोष दें..?ऐसा लगता है..
संवेदनहीनता ही इनकी हत्यारी है।
-०-
पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)
-०-



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Sunday 4 April 2021

कोरोना काल में मनाया बिहू नृत्य (संस्मरण) - सुरेश शर्मा

कोरोना काल में मनाया बिहू नृत्य
(संस्मरण)
लौकडाउन और कोरोना की वजह से बिहू नृत्य घर के अन्दर ही मनाया गया । अप्रैल २०२०
           बिहू असम की प्राचीन सांस्कृतिक रीति रिवाज  तथा अलग- अलग भाषाओं के लोगो  की सामुहिक  उत्सवोंढ  के समूह को  दर्शाता है । दुनिया भर में बसे असम के प्रवासी लोग इसे बहुत ही धूमधाम तथा हर्षोल्लास के साथ मनाते है एवं आपस मे खुशियाॅ बांटते है ।
            बिहू असम की प्रमुख त्योहारओर मे से एक है। यह त्योहार वैशाख महीने  मे आकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की वजह से बहार बिहू के नाम से भी जाना जाता ।  अप्रैल महीने के मध्य मे यानि वैशाख महीने के एक तारीख से असमिया लोग अपनी नए वर्ष की सुरूआत मानकर नये साल का जश्न मनाते है ।  साल के प्रथम दिन  घर के सभी छोटे बड़े को नये कपड़े पहनने का रिवाज है ।
      यह त्योहार मुख्य रूप से सात दिनों तक अलग-अलग रीति रिवाजों के साथ मनायाजाता के । किशोरियां एवं नौजवान एक विशेष परिधान मे  बिहू नाचते  गाते हैं । जिसमे कुछ वाद्य यंत्र विशेष रूप से बजाये जाते हैं , जैसे ढोल, पेंपा ,गगना ,झाल तथा किशोरियां एक विशेष प्रकार की फूल जिसे 'कपो फूल' के नाम से जाना जाता है उसको अपने माथे पर बंधे खोपा में लगाते है और हाथों मे एक विशेष प्रकार की चूड़ी जिसे 'गाम खारू' के नाम से असम मे लोग जानते हैं उसे बिहू नृत्य करते वक्त ही पहने जाते है ।
    इस बिहू मे लोग जाति धर्म को बहुत ही पीछे छोड़ते हुए बड़े ही मस्ती और धूम-धाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाते है  इस पर्व को।
         मगर इसबार मैंने कुछ लोगों से पूछा तो बड़े ही निराश दिखे  लोग । बोले कोरोना वायरस की वजह से हमलोगों की सारी आशाएं आकांक्षाएं धूमिल हो गई । इस त्योहार की विशेषता यह होती है कि लोग रंग -बिरंगी कपड़े पहन कर  एक झुंड बनाकर ढोल बांसुरी और कई अन्य तरह के वाद्य यंत्रों को साथ लेकर लोगों के घर जाकर बिहू नाचते और गाते है और बडों का आशीर्वाद लेते है ।
यह त्योहार मुख्य रूप से नाच गानों का ही होता है ।
    मगर  इसबार कोरोना संकट और लौकडाउन की समस्या की वजह से सबकुछ फीका-फीका तथा चारों तरफ माहौल सुना सुना दिखा । लड़के लड़कियां सभी बिहू की त्योहार को घर के अन्दर ही मनायें तथा मस्ती करते हुए दिखाई पड़े , अन्य सालों की तरह  घर के बाहर स्टेज पर  प्रोग्राम करते हुए नही ।
-०-
सुरेश शर्मा
गुवाहाटी,जिला कामरूप (आसाम)
-०-

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Friday 26 March 2021

कैसे खेलूँ होली (कविता) - पता: रीना गोयल

कैसे खेलूँ होली 
(कविता)
घटा घनी आतंकी छायी , खून भरी लगती होली ।
चिर निद्रा हैं वीर धरा के ,कैसे फिर खेलूँ होली ।

धूमिल होती सब आशाएं, सो गई हैं कामनाएं ।
रुद्र गीत ही धमनियों में ,गा रही हैं वेदनाएं ।
नाचूँ गाऊँ कैसे फिर.मैं ,कैसे फिर खेलूँ होली ।
चिर निद्रा हैं वीर धरा के ,कैसे फिर खेलूँ होली ।

धरा बहाती आँसू बूंदे , सुन विलाप विधवाओं का ।
पुँछना है सिन्दूर अभी तो , कितनी ही सधवाओं का।
धरा रंग जब लाल रक्त से ,कैसे फिर खेलूँ मैं होली ।
चिर निद्रा हैं वीर धरा के ,कैसे फिर खेलूँ होली ।

जलती शहीदों की चिताएं ,है ज्वाल भरती श्वास में ।
तब ही जलेगी होलिका जब ,दुश्मन हो मृत्यु पाश में ।
घायल अभी सम्वेदनाएँ , कैसे फिर खेलूँ होली ।
चिर निद्रा हैं वीर धरा के ,कैसे फिर खेलूँ होली ।
-०-
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)




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Tuesday 23 March 2021

भावी (लघुकथा) - डा. नीना छिब्बर

भावी
(लघुकथा)
सैनिक शहीद शाहिद खान का मृत शरीर जब तिरंगे मे लिपटा हुआ उसके पैतृक गाँव पहूँचा तो अलग ही आब बिखेर रहा था। पूरा गाँव आँखों में गर्व मिश्रित दुख लिए अंतिम विदाई देने के लिए उपस्थित था । पूरा गाँव एक परिवार ही लग रहा था। नशवर शरीर को खाके सुपुर्द करने के बाद सभी शाहिद के आँगन मे लौट आये। धीरे धीरे शाहिद के जीवन मे घटित घटनाओं की बाते आरम्भ हुईं।
तभी उसके विधालय के अध्यापक श्री रामचंद्र जी ने खडे होकर सब का अभिवादन किया और कहा, आज मुझे एक पुरानी घटना याद आ रही है। लगता है. भावी ही उससे यह त्रुटि करवा रही थी। वह जब भी अपना नाम लिखता हमेशा शाहिद की जगह शहीद ही लिखता। अनेको बार समझाया पर हमेशा वर्तनी अशुदृ। मुस्कुरा कर कहता। गुरूजी यही सही है देखना आप भी अंततः इसी नाम से बुलाएंगे। वह शुरू से ही तिरंगा. सेना, और देश के वीर सपुतों की बाते करता था।
जब सेना मे भर्ती हुई तो मिलने आया था,बोला गुरु जी आप ने कितना ही समझाया पर अब तो मानते हैं मैं सही । मैने प्यार से चपत लगाते कहा., अरे, खूब आयु है तेरी पगले। जी भर देश सेवा कर। शाहिद ने कहा मास्टर जी। मेरी अशुद्ध वर्तनी रंग लाएगी देखना।
सभी भावुक हो गये और गुरू जी ने अपने शहीद खान को सेल्यूट किया।
-०-
डा. नीना छिब्बर
जोधपुर(राजस्थान)

-०-

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शहीदे आजम (कविता) - अनामिका रोहिल्ला

शहीदे आजम
(कविता)
27 सितंबर को एक युवक
इस धरती पर आया था
नाम भगत सिंह और साथ
कुछ कर गुजरने की मन में इच्छा लाया था
गांव खटकड़ कलां पंजाब से
एक साहसी युवक में आया था

अंग्रेजों से हमने खूब लड़ी लड़ाई थी
लड़ते-लड़ते भगत ने अपनी जान गवाई थी
मौत को हंसते-हंसते उसने गले लगाया था
वह एक युवक खटकड़ कला से आया था
मौत का उसको डरना था सीने में जोश जोशीला था

तुम छोड़ गए थे आजादी का सपना
जो आखिर हमने पूरा कर दिखाया था
साथ मिलकर हम ने अंग्रेजों को
पिछोर गिराया था

खूब लड़े थे आप हमारी पावन धरती के लिए
सलाम करते हैं हम आपको आपके उपकार के लिए
आपके जाने का दुख भी रहेगा
सुख होगा अपने देश के लिए
सलाम करते हैं हम आपको फिर से
जो आप एक नया जीवन दे गए हमें जीने के लिए
-०-
पता:
अनामिका रोहिल्ला
दिल्ली 
-०-

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Monday 8 March 2021

मैं स्त्री (कविता) - श्रीमती कमलेश शर्मा


मैं स्त्री
(कविता)
मैं स्त्री हूँ......
कायनात की रचयिता,
सृष्टि का चक्र चलाती।
ममता,  धैर्य ,  भरोसे के साथ।
जो चाहती हूँ...कर सकती हूँ,
है विश्वास..।
मेरे पास हैं...कुछ ऐसी शक्तियाँ,
सम्भावनाएँ, मिसालें ,उपलब्धियाँ ।
उस पर भी...,
असंवेदनाए  पैर पसारती,
भ्रूण हत्या,ऐसिड अटैक,
अस्मिता पर हमलों से..
ख़ुद को बचाती।
समाज की निशानदेही पर रह कर भी,
ख़ुद को हारने ना देती।
झूझती रहती...।
सहती सब हँसके,
कभी ख़ामोशी से...,कभी विद्रोह  करके।
पार पा लेती हूँ..., मुश्किलों से।
चोबीस घंटो की ड्यूटी में,
ना छुट्टी लेती, ना ढिलाई बरतती ,
ना ही कोई काम टालती।
पगार के नाम पर...
बस थोड़ा सा प्यार चाहती।
बाहर की ज़िम्मेदारी से मुँह ना मोड़ती,
घरेलू दायित्वों को नहीं छोड़ती।
सृष्टि की कड़ियाँ जोड़ने की क्षमता समेटे,
तनाव जीतने की ख़ुशी लपेटे,
प्रकृति द्वारा असाधारण गुनो से नवाजी ,
ख़ुद पर भरोसा करती गई....,चलती गई।
अंतर्मन के आइने में झाँकती,
अपने को आँकती...,
मैं सृष्टि की रचयिता ,
नव निर्माण की शक्ति ,
मैं हूँ तो ये कायनात है।
चाहती हूँ....
चलती रहे ये कायनात,
क्योंकि चला सकती हूँ।
मैं धरा स्वरूपा...,जानती हूँ,
बादलों में बीज नहीं बोए जाते।
डरती नहीं किसी बात से,
देखती हूँ दुनिया,विश्वास से।
मैं....स्त्री....।

-०-
पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)
-०-



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नारी तुम्हें नमन (कविता) - रीना गोयल

नारी तुम्हें नमन
(कविता)
(कुकुभ छंद गीत)

जिसके  बिन जीवन मे तम है ,दीप वही  प्रकाशित नारी 
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी।
त्याग ,समर्पण ,दया,शीलता ,सब मिल नारी बनती है।
कभी तोड़ने अहं दुष्ट का , चण्ड रूप भी धरती है ।
भिन्न -भिन्न रुपों को धारे , दुर्गा की है अवतारी  ।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी  ।

नारी है बहते पानी सम ,हर स्थिति में ढल जाती ।
पुत्र पले जब लाड़ चाव से ,पुत्री यूँ ही पल जाती  ।
जननी  भी है जग पालक भी ,नहीं किसी क्षण वह हारी ।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी ।

नमन करें इस महा शक्ति को ,नारी जग की मर्यादा ।
संस्कार की शाला नारी  , प्रेम लुटाती वह ज्यादा।
आदि काल से पूजित नारी , रहती हर नर पर भारी ।
घर -आँगन जो सुरभित करती ,सुमन सुशोभित वह क्यारी  ।
-०-
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)




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लिंगवाद विरोध का प्रतीक अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (आलेख) - अमित डोगरा


लिंगवाद विरोध का प्रतीक अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

(आलेख)
8 मार्च को प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व भर में महिला दिवस मनाया जाता है। वास्तव में यह दिवस महिलाओं को उनके योगदान को मान्यता देने के लिए मनाया जाता है। जनसंख्या के आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं की आबादी पूरे विश्व में आधी हैं, फिर भी हमारे समाज में उनको उचित दर्जा और स्थान प्राप्त नहीं है । उन पर कई तरह के अत्याचार किए जाते हैं, इसी बात को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्रीय संघ ने 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है। इस दिन पूरे विश्व में महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाता है। इसी कारण इस दिवस को लिंगवाद दिवस का प्रतीक भी माना गया है, जिससे महिलाओं को भी बिना लिंग वाद के पुरुषों के समान प्रत्येक क्षेत्र में बराबर अधिकार देने के लिए जागरूक किया जाता है। हमारे देश में भी महिलाओं की प्रगति और उत्थान के लिए भी नए-नए कार्यक्रम चलाए जाते हैं ,इसी उपलक्ष्य में, 1996 में भविष्य के लिए योजना ,1997 में महिला और शांति तालिका, 1998 में महिला और मानवाधिकार, 1999 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा से मुक्त दिवस, 2000 में शांति के लिए एकजुट महिलाएं ,2001 में महिला और शांतिः महिला का संघर्ष प्रबंधन, 2002 में आज की अफगान महिलाः वास्तविकता और अवसर ,2003 में लिंग समानता और स्त्री विकास लक्ष्य, 2004 में महिला और एचआईवी , 2005 में लिंग समानता :अधिक सुरक्षित भविष्य का निर्माण, 2006 में निर्माण लेने में महिलाएं ,2007 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करना, 2008 में महिला और लड़कियों में निवेश, 2009 में महिला हिंसा को समाप्त करने के लिए महिला और पुरुष एकजुट, 2010 में समान अधिकार, 2011 में शिक्षा, परीक्षण एवं विज्ञान में समान पहुंच, 2012 में ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाना, 2013 में वचन देना एक वचन है, 2014 में महिलाओं के लिए समानता, 2015 में महिला सशक्तिकरण, 2016 में लैंगिक समानता, 2017 कार्य की बदलती दुनिया में महिलाएं ,2018 ग्रामीण और शहरी कार्यकर्ता द्वारा महिलाओं के जीवन में बदलाव, 2020 में नारी सशक्तिकरण के नए उपलक्ष्य में है, मैं जनरेशन इक्वेलिटी महिलाओं के अधिकारों को महसूस कर रही हूं वास्तव में महिलाओं के प्रति हमारी जिम्मेदारियों को याद दिलाता है, हम सब को मिलकर महिलाओं को भी उनका अधिकार दिलाने के लिए कार्यरत रहना चाहिए। वर्तमान युग को नारी के उत्थान का युग कहां जाए, तो कोई अतिकथनी नहीं होगी, आज हमारे देश भर की महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी विजय की पताका फैला रही है और मौजूदा सरकारी भी महिलाओं को हर क्षेत्र में अपना भविष्य निर्माण करने का अवसर उपलब्ध करा रही है। महिलाओं के संदर्भ में जयशंकर प्रसाद की एक खूबसूरत कविता भी है :- नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में ,पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।

-०-
पता:
अमित डोगरा 
पी.एच डी -शोधकर्ता
अमृतसर

-०-

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Monday 1 March 2021

आया रंगो का त्यौहार (कविता) - भुवन बिष्ट

आया रंगो का त्यौहार
(कविता)
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
अब आया रंगों का त्यौहार।।
रंग भरी पिचकारी से अब।
धोयें राग द्वेष का मैल।।
ऊँच नीच की हो न भावना।
उड़े अबीर लाल गुलाल।।
होली के हुड़दंग में भी।
बाँटें मानवता का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
अब आया रंगों का त्यौहार।।
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
गुजिया मिठाई की मिठास से।
फैले अब खुशियों की बहार ।।
आओ रंगों की पिचकारी से।
धोयें जग का अत्याचार।।
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
है आये रंगों का त्यौहार।।
बसंत बहार के रंगों से।
ओढ़े धरती है पीतांबरी।।
ईष्या राग द्वेष को त्यागें।
सीचें मानवता की क्यारी।।
रूठे श्याम को भी मनायें।
रंगों से खुशियाँ फैलायें।।
रंगों और पानी से सीखें।
झलक एकता की दिखलायें।।
मानवता का अब हो संचार।
बहे सुख समृद्धि की धार।।
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
अब आया रंगों का त्यौहार।।

-०-
पता- 
भुवन बिष्ट
(रानीखेत) अल्मोड़ा 
(उत्तराखंड)
-०-

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Friday 5 February 2021

लाल हँसिया की धार (कविता) - आदित्य अभिनव

 

लाल हँसिया की धार 
(कविता)
    मैंने देखा 
    कुछ लोग लाल गुलाब को 
    मसल रहे हैं, 
   लाल हँसिया की धार 
   इतनी भोथरी
   हो गई है कि 
   गेहूँ की बालियाँ 
   नहीं कट रही हैं अब।
   मीठी धीमी जहर वाला
   किंगकोबरा 
   अपना फन बढ़ाकर 
   इतना विस्तृत कर लिया है 
   कि उसके छाया तले 
   सारी दुनिया 
   धीरे-धीरे
   मर रही है 
   लेकिन 
   किसी को  अपने मरने का 
   न अहसास है 
   न पछतावा।         
-०-
पता: 
आदित्य अभिनव उर्फ डॉ.  चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव 
कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश)

-०-

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Sunday 31 January 2021

*दुख दर्द की आवाज* (कविता) - डॉ. अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'

 

 *दुख दर्द की आवाज*

(कविता)

गांव की कच्ची गली से

 जब निकलता हूँ 

 हर समय दुख दर्द की 

आवाज सुनता हूं ।

            यह शिकायत खेत की

             फिर मेघ ने धोखा दिया

               उग सके कुछ खेत में 

               यह हौसला कम कर दिया 

                 मेढ से नजरें चुराकर

                   मैं खिसकता हूं 

               गांव की कच्ची गली से •••

चरमराती चारपाई 

रात भर रोती रही 

और टूटी जूतियां

 कोने में  चुप सोती रही

 देख कर भूखा बुढ़ापा 

मैं तड़पता हूं ।

गांव की कच्ची गली से      •••••

                हो गई है सांझ

                 बापू लौट कर कब आएंगे 

                  दर्द की पीड़ा बहुत है 

                   कब दवाई लाएंगे 

                   इन दुखद अनुभूतियों से 

                   मै नित गुजरता हूं 

             गांव की कच्ची गली से •••••

-०-

पता 
डॉ. अरविंद श्रीवास्तव 'असीम' 
दतिया (मध्य प्रदेश)


-०-

डॉ. अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'  जी का लेखन इस ब्लॉग पर पढ़ने के लिए शीर्षक चित्र पर क्लिक करें.

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Monday 25 January 2021

आओ गणतंत्र दिवस मनाये हम (कविता) - सुरेश शर्मा


आओ गणतंत्र दिवस मनाये हम
(कविता)
तीन रंगों से सजी सुन्दर तिरंगे से ,
आओ गणतंत्र दिवस मनाये हम ।
भेद भाव से परे हटकर हम सब ,
खुशियाॅ बिखेर दिल से सबको अपनाएं हम ।

तीन रंगों से सजी सुन्दर तिरंगे से , 
आओ भारत मां की शोभा बढाएं हम ।
विश्व की सर्वश्रेष्ठ गणतांत्रिक देश को ,
भाई चारे के प्यारे रंगों से सजाएं हम ।

तीन रंगों से सजी सुन्दर तिरंगे से ,
चारों दिशाओं को अपने गीतों से लुभाएं हम ।
एक दूजे के साथ हाथ मिलाकर ,
अपना 67वां गणतंत्र दिवस मनाएं हम।

तीन रंगों से सजी सुन्दर तिरंगे से , 
एकता और अखंडता का पाठ पढ़ाएं हम ।
जाती धर्म को एक सूत्र मे पिरोकर, 
अपने देश का मान-सम्मान बढाएं हम ।
-०-
सुरेश शर्मा
गुवाहाटी,जिला कामरूप (आसाम)
-०-

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Friday 22 January 2021

कोख की तड़प (कविता) - अनामिका

कोख की तड़प
(कविता)
कुछ छोटे -छोटे पौधे जो
आंगन में उसने रोपें थे
जाने कब वो बन गये पेड़
हिलकर समीर के झोंके से,

उसकी ममता की छाया में
निज तन निहार इठलाते है
अब उसको छाया देते है
उस पर फल फूल लुटाते है,

सूरज क़ी भीषण गर्मी से
ज़ब भी मुरझा से जाते थे
उसका पाकर कोमल स्पर्श
नव जीवन से भर जाते थे,

नवजात शिशु की भांति ही वो
उन पर निज स्नेह लुटाती थी
निज रिक्त कोख की पीड़ा को
वो भूल उसी पल जाती थी,

जैसा रिश्ता माँ बच्चों का
वैसा था उसका पौधों से
पल -पल टूटी थी समाज में
सूनी कोख के विरोधों से।।
-०-

पता: 
अनामिका
खुर्जा (उत्तरप्रदेश) 

-०-

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Thursday 21 January 2021

महत्त्वाकांक्षा (कविता) - आदित्य अभिनव

 

महत्त्वाकांक्षा 
(कविता)
     मैं तीन पग से 
      पूरी दुनिया,
      मापना चाहता हूँ
      वामन की तरह।
      मैं चाहता हूं कि 
      मेरा पग 
      इतना बड़ा हो जाए कि 
     उसमें 
     सारी दुनिया समा जाए ;
     लेकिन 
     नहीं मिलता मुझे 
     राजा बलि का सिर ,
     जिस पर रख सकूँ 
     अपना पाँव ।
-०-
पता: 
आदित्य अभिनव उर्फ डॉ.  चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव 
कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश)

-०-

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Monday 18 January 2021

रूठकर उदास (ग़ज़ल) - अलका मित्तल


रूठकर उदास 
(ग़ज़ल)
रूठकर उदास बैठी हैं ख़ुशियों इक ज़माने से
पर ग़म चले आते हैं किसी न किसी बहाने से

ओढ़ने से चादर ग़मों की हासिल कुछ भी नहीं
ज़िन्दगी के कुछ दर्द चले जाते हैं मुस्कुराने से

कभी पा लूँ उसे ये तो शायद मुमकिन ही नहीं
तबियत बहल जाती है ख़्याल उसका आने से

ख़्वाहिश न हो जब तलक रिश्ते नहीं बनते
गर चाहो दिल से बात बन जाती है बनाने से।

तुम कभी दिल की गहराइयों से अपनी पूछना
कितना सुकूँ मिलता है ओरो के काम आने से

खामोशियाँ सी छा गईं उसके मिरे दरमियाँ
नहीं भूलती वो यादें”अलका”लाख भुलाने
-०-

पता:
अलका मित्तल
मेरठ (उत्तरप्रदेश)

-०-

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