स्थायी पता
(कविता)
बिताई रात आज भाड़े के कमरे में
कल भाई-भाभी के घर पर
परसों मित्र की जन्मदिन पार्टी में
रिश्तेदारों के विवाह समारोह में
चढ़ गई भेंट कितनी ही रातें कवि सम्मेलन की
बहुत से दिन ऐसे ही गुजर जाते हैं
पर्यटन,सफ़र,भ्रमण में
कब,कहाँ,किधर रुक जाए कारवां
नहीं कोई ठिकाना
प्रकाशक भाई पूछता है मेरा स्थायी पता।
बिताई रात आज भाड़े के कमरे में
कल भाई-भाभी के घर पर
परसों मित्र की जन्मदिन पार्टी में
रिश्तेदारों के विवाह समारोह में
चढ़ गई भेंट कितनी ही रातें कवि सम्मेलन की
बहुत से दिन ऐसे ही गुजर जाते हैं
पर्यटन,सफ़र,भ्रमण में
कब,कहाँ,किधर रुक जाए कारवां
नहीं कोई ठिकाना
प्रकाशक भाई पूछता है मेरा स्थायी पता।
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