Monday 30 November 2020
मेरी चिंता छोड़ (लघुकथा) - डॉ. अलका पाण्डेय
कल फिर (कविता) - हेमराज सिंह
फायदे (लघुकथा) - ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'
लोग सब (ग़ज़ल) - नदीम हसन चमन
पता
जिंदगी (कविता) - गोरक्ष जाधव
गोरक्ष जाधव
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Thursday 26 November 2020
किसी बहाने से (ग़ज़ल) - अलका मित्तल
पता:
नहीं दूध में (बालगीत) - डा. जियाउर रहमान जाफरी
नहीं दूध में
(बालगीत)
ढूँढते फिरोगे (कविता) - भावना ठाकर
ढूँढते फिरोगे
(कविता)
आज फिर (कविता) - सरिता सरस
(कविता)
Tuesday 24 November 2020
ताश के पत्तों का शहर (कविता) - सोनिया सैनी
सोनिया सैनी
जयपुर (राजस्थान)
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भ्रष्टाचार एवं अन्धविश्वास का अन्त होना आवश्यक (आलेख) - डाॅ० सिकन्दर लाल
(आलेख)
कोरोना वायरस तो मानव एवं जीव-जन्तु के लिए खतरनाक है लेकिन इस वायरस से कहीं अधिक हमारे देश के लिए वो लोग भी खतरनाक हैं जो भारत देश रूपी पावन धाम में, जान - बूझकर लूट-घसोट एवं बेईमानी आदि करके, आय से अधिक धन- दौलत रखे हुए हैं| कुछ मूर्ख लोग विना अपने विद्यालय/महाविद्यालय आदि जैसे अन्य सरकारी संस्थानों में गये वेतन अर्थात् पैसा आदि ले रहे हैं, जिस संस्थान की कमाई खा रहे हैं उसी को,फर्जी बिल-बाउचर के माध्यम से तो कहीं अधिक बढ़ा कर , कम पैसे का सामान अधिक पैसों में दिखाकर, नोच रहे हैं या फिर फर्जी बिल- बाउचर लगाकर पूरा का पूरा सरकारी पैसा निकाल ले रहे हैं |यहाँ तक कि सरकारी पैसे से कुछ मूर्ख लोग इतना अधिक कमजोर सामान खरीदते हैं जिससे कि वह बहुत दिन तक न चलकर शीघ्र ही टूट- फूट या खराब हो जाता है | इसी तरह अधिकतर भ्रष्टाचारी एवं बेईमान लोग अपने-अपने तरीके से अपने-अपने विभागों में चोरी एवं घूसखोरी आदि करते हैं तभी तो ये मूर्ख लोग अपने सम्पूर्ण सम्पत्ति का ब्यौरा सरकार को नहीं देते हैं, दिया भी तो आधा- अधूरा|जिससे भारत देश में रहने वाले अधिकतर मानव एवं जीव-जन्तुओं की समुचित व्यवस्था ( रोटी, कपड़ा, घर, मकान, उत्तम स्वास्थ्य, समुचित शिक्षा तथा जीवों की भी रहने आदि का पर्याप्त रूप में जगह न मिलना) नहीं हो पा रही है| जहाँ कुछ मूर्ख लोग अपने ज्ञान,पद- प्रतिष्ठा आदि का दुरुपयोग कर भारत देश रूपी पावन धाम में विराजमान् मानव एवं जीव-जन्तु रूपी मूर्तियों का, शोषण करते हुए अपना घर-परिवार सजाने में लगा हुये हैं वहीं धर्म के नाम पर कुछ मूर्ख एवं पाखण्डी साधु दिनों- दिन जमीन को कब्जा करके,जमीन को कम करते जा रहे हैं तथा माँ गंगा जैसी महान् नदियों के पावन तट को भी कब्जा करके,जल को दूषित करने में लगे हुए हैं | किसान देवता कहाँ से अधिक अनाज पैदा करे और माँ गंगा जैसी महान् नदियों का जल कैसे स्वच्छ हो, यह हमारे पावन देश में विराजमान् कुछ बुद्धिजीवियों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है| सरकार बुद्धिजीवी मानवों के सहयोग से समान दंड व्यवस्था और कठोर कानून बनाकर आय से अधिक सम्पत्ति रखने वाले भ्रष्टाचारी एवं बेईमान मनुष्यों से सम्पूर्ण पैसा तथा जमीन- जायदाद आदि जब्त कर ले तथा इस बचे हुए जमीन और पैसों को, पक्षपात रहित होकर, उन लोगों के विकास में लगाये जायें, जो भारत देश रूपी पावन धाम में रहने के बावजूद भी, अभी तक पर्याप्त शिक्षा, रोटी,कपड़ा तथा घर आदि से वंचित हैं| इसी तरह सरकार कठोर कानून से धर्म के नाम पर जमीन कब्जा करके झूठ- मूठ का प्रवचन देकर भोले-भाले मानव को ठग कर अपना घर-परिवार सजाने वाले पाखण्डी एवं मूर्ख साधु रूपी भस्मासुरों से भी जमीन को छीन ले और साथ ही माँ गंगा जैसी महान् नदियों के पावन तटों को खाली करा दे तो मुझें लगता है पुनः वेद सम्मति राज आ जायेगा अर्थात् अन्न पैदा करने के लिए जमीन निकल आयेगी और माँ गंगा जैसी महान् नदियों का जल कुछ हद तक स्वच्छ हो जायेगा जिससे भारत देश रूपी पावन धाम में विराजमान् मानव एवं जीव-जन्तु रूपी मूर्तियों के जीवन में कुछ और अधिक सुख-शान्ति की वृद्धि हो जायेगी| अत: स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार में लिप्त कुछ बेईमान मनुष्यों तथा धर्म के नाम पर जमीन एवं माँ गंगा जैसी महान् नदियों के तट को कब्जा करने वाले कुछ मूर्ख साधु कोरोना वायरस से लाखों गुना, हमारे भारत देश रूपी पावन धाम के लिए खतरनाक हैं, अत: भारत भूमि की रक्षा करने हेतु, मानवों द्वारा भ्रष्टाचार एवं अन्धविश्वास आदि जैसे कुरीतियों का निराकरण करना आवश्यक है|
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पता:
डाॅ० सिकन्दर लाल
प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)
फरियाद कर लिया (ग़ज़ल) - मोहम्मद मुमताज़ हसन
पता:
मेरी प्रेरणा (कविता) - अ कीर्तिवर्धन
Monday 23 November 2020
ऐ मेरी किताब (कविता) - रेशमा त्रिपाठी
लड़कियाँ अपने घर में भी हैं (कविता) - धीरेन्द्र त्रिपाठी
यादों के गलियारे से (कहानी) - रीता झा
Sunday 22 November 2020
चाल (लघुकथा) - विवेक मेहता
(लघुकथा)
पता:
सृजन रचानाएँ
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