वाह री! जिंदगानी
वाह री! जिंदगानी
क्या अजीब है तेरी कहानी!
जो चाहा वह पाया नहीं
जो पाया वह चाहा नहीं
यह सब तो हैं हरकतें बचकानी
न तूने जानी और ना मैंने जानी।
बचपन बीता आई जवानी
करने लगे हम अपनी मनमानी
की बहुत ही मौज भी मस्तानी
समय निकला तो बुनी नई कहानी
जब भी याद करूँ बचपन और जवानी
आँखों से भी बहता है पानी
वाह री! जिंदगानी
क्या अजीब है तेरी कहानी।
अब घर में थी सास
और थी बहुएँ घर की रानी
आवाज सुनकर करती थी आनाकानी
कभी सोचती थीं
बूढ़ी कहीं माँगे ना दाना-पानी
पल-पल बढ़ने लगी थी बेचैनी
कैसे करें अब हम अपनी मनमानी
वाह री! जिंदगानी
क्या अजीब है तेरी कहानी।
यह तो है हर किसीकी कहानी
अब तो बस लेनी है हमें
जिंदगी से आखिरी रवानी
बस! यही होगी तेरी कहानी
और होगी मेरी भी राम कहानी
ना तूने कभी जानी और
ना कभी मैंने थी जानी
वाह री! जिंदगानी
क्या अजीब है तेरी कहानी!
पता:
दीपिका कटरे
पुणे (महाराष्ट्र)
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Nice poem mam । आप बहुत बढ़िया कविता बनाते हो। पढ़कर बहुत अच्छा महसूस होता हैं।
ReplyDeleteNice poem mam । आप बहुत बढ़िया कविता बनाते हो। पढ़कर बहुत अच्छा महसूस होता हैं।
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