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Thursday 19 December 2019

गूंगी आवाज (कविता) - मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'


गूंगी आवाज
(कविता)
आज भी दबाई और कुचली जा रही है
उनकी आवाज
जो जी रहे हैं हाशिए पर
उनकी गरीबी
घटने के वजाय बढती ही जा रही है |
जुल्म-सितम अभी खत्म नहीं हुए
घाव पूरी तरह से अभी भरे नहीं और
मरहम की जगह नमक छिड़का जा रहा है |
उनकी सिसकियां अभी खत्म नहीं हुई
उनकी आवाज नहीं निकलती
क्योंकि बड़ी क्रूरता के साथ सदियों से
आज तक दबाई गई है
उनकी आवाज !
इसीलिए तो गूंगी आवाज
बनकर रह गई है
उनकी आवाज |
-०-
मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'
फतेहाबाद-आगरा. 
-०-

***
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