गूंगी आवाज
(कविता)
आज भी दबाई और कुचली जा रही है
उनकी आवाज
जो जी रहे हैं हाशिए पर
उनकी गरीबी
घटने के वजाय बढती ही जा रही है |
जुल्म-सितम अभी खत्म नहीं हुए
घाव पूरी तरह से अभी भरे नहीं और
मरहम की जगह नमक छिड़का जा रहा है |
उनकी सिसकियां अभी खत्म नहीं हुई
उनकी आवाज नहीं निकलती
क्योंकि बड़ी क्रूरता के साथ सदियों से
आज तक दबाई गई है
उनकी आवाज !
इसीलिए तो गूंगी आवाज
बनकर रह गई है
उनकी आवाज |
-०-
मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'
फतेहाबाद-आगरा.
-०-
जो जी रहे हैं हाशिए पर
उनकी गरीबी
घटने के वजाय बढती ही जा रही है |
जुल्म-सितम अभी खत्म नहीं हुए
घाव पूरी तरह से अभी भरे नहीं और
मरहम की जगह नमक छिड़का जा रहा है |
उनकी सिसकियां अभी खत्म नहीं हुई
उनकी आवाज नहीं निकलती
क्योंकि बड़ी क्रूरता के साथ सदियों से
आज तक दबाई गई है
उनकी आवाज !
इसीलिए तो गूंगी आवाज
बनकर रह गई है
उनकी आवाज |
-०-
मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'
फतेहाबाद-आगरा.
-०-
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