गुरु
(कविता)गुरू बिना न ज्ञान मिले,
ना मिले कहीं सम्मान।
आसान नहीं, आसान बना दे,
ऐसे वे इन्सान।
राह न भटके कभी किसी की,
करता है गुरू वह काम।
जीवन की कठीनाई मे,
रखते वे सबका ध्यान।
भले बुरे की सोच मिली है,
मिला है मुझको वो मकाम,
जहाँ से मुझको बना सकू मैं,
इक अच्छा इन्सान।
बचपन से लेकर अब तक,
दिया हमे जिसने भी ज्ञान,
गुरू हैं वे सब प्रियजन मेरे,
शत-शत उन्हें प्रणाम।
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पता:
राजू चांदगुडे
पुणे (महाराष्ट्र)
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सर खूप मस्त कविता आहे अप्रतिम
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