लक्ष्मी बाकेलाल यादव
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(कविता)
स्वागतम स्वागतम नव वर्ष की
नई भोर का स्वागतम स्वागतम
घने कोहरे की जद में है ये जहां
सूर्य के ताप से सुखद हो आबोहवा
प्रकृति के मनोहर रमणीय रूपका
स्वागतम स्वागतम
स्याह रात की बिखरी कालिमा
लपेटती स्वयं को चहु ओर से
डूबते तारोंसंग उगती उषाकिरण का
स्वागतम स्वागतम
हौले हौले अन्धकार मिट रहा
खिल रही प्रकाश की किरण
ओस की बूंदों से धुली प्रात का
स्वागतम स्वागतम
अलसित पलकेंमूंदती खोलती
खग कुल की कलरव से गुंजित
मनको हर्षित करती प्रभात का
स्वागतम स्वागतम*
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शायद तुमको पता नहीं,,,
(कविता)
आकर्षण बेघर कर देगा
शायद तुमको पता नहीं
कब ज़ख्मों को तर कर देगा।
शायद तुमको पता नहीं।।,,,
रोज़-रोज़ का सपना बुनते
नहीं किसी का कहना सुनते,
नये-नये सन्दर्भों को हम
चुनते जाते गुनते-धुनते।
जग सब तितर-बितर कर देगा,
शायद तुमको पता नहीं,,,
कोई मन का मीत न मिलता,
यौवन फिर सुपुनीत न मिलता,
तुम आते यदि नहीं जुबाँ पर,
शब्दों को संगीत न मिलता।
शाप कोई पत्थर कर देगा,
शायद तुमको पता नहीं,,,
तुम मेरा सब नेह छोड़कर,
दूर गए क्यों गेह छोड़कर,
अरमानो के मेह(बादल)मोड़कर
संकल्पों की देह तोड़कर।