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Monday, 11 January 2021

शायद तुमको पता नहीं (कविता) - अखिलेश चंद्र पाण्डेय 'अखिल'

   

शायद तुमको पता नहीं,,,
 (कविता)

आकर्षण बेघर कर देगा

शायद तुमको पता नहीं

कब ज़ख्मों को तर कर देगा।

शायद तुमको पता नहीं।।,,,


रोज़-रोज़ का सपना बुनते

नहीं किसी का कहना सुनते,

नये-नये सन्दर्भों को हम

चुनते जाते गुनते-धुनते।

जग सब तितर-बितर कर देगा,

शायद तुमको पता नहीं,,,


कोई मन का मीत न मिलता,

यौवन फिर सुपुनीत न मिलता,

तुम आते यदि नहीं जुबाँ पर,

शब्दों को संगीत न मिलता।

शाप कोई पत्थर कर देगा,

शायद तुमको पता नहीं,,,


तुम मेरा सब नेह छोड़कर,

दूर गए क्यों गेह छोड़कर,

अरमानो के मेह(बादल)मोड़कर

संकल्पों की देह तोड़कर।

-०-
पता 
अखिलेश चंद्र पाण्डेय 'अखिल'
गया (बिहार) 


-०-

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