(कविता)
शायद बिसर गए वो दिन जब हम गुलाम कहलाते थे,
हर सुबह इक नई उमंग से आजादी की सौगंध खाते थे।
स्वतंत्रता को धर्य व साहस से लड़कर हमने पाया है,
देश को उन्नति व प्रगति का सही मार्ग दिखलाया है।
गांधी, तिलक व वीर शिवाजी ने हमको सब सिखलाया है
धैर्य, एकता और अखंडता का पाठ हमें पढ़ाया है।
रहे तिरंगा ऊंचा जग में बस इतना ही अरमान है,
इसके तीनों रंग ही बस बन गए हमारी पहचान हैं।
किंतु प्रतीत होता है ऐसा इन विकट परिस्थितियों में
नहीं संजो पाए शहीदों को हम अपनी स्मृतियों में।
फिर से बटे हुए हैं आज हम मंदिर और मस्जिदों में ,
नहीं बचा उबाल देश हित का हमारे लहू के कतरों में।
जुड़ना है फिर साथ-साथ ही इस मुश्किल के दौर में,
संग संग चले थे जैसे बापू एक लाठी के जोर में।
जैसे संग लड़ कर पाया हमने अपनी इस आजादी को
बंद कर एक सूत्र में फिर हम पाएंगे कामयाबी को।
हर सुबह इक नई उमंग से आजादी की सौगंध खाते थे।
स्वतंत्रता को धर्य व साहस से लड़कर हमने पाया है,
देश को उन्नति व प्रगति का सही मार्ग दिखलाया है।
गांधी, तिलक व वीर शिवाजी ने हमको सब सिखलाया है
धैर्य, एकता और अखंडता का पाठ हमें पढ़ाया है।
रहे तिरंगा ऊंचा जग में बस इतना ही अरमान है,
इसके तीनों रंग ही बस बन गए हमारी पहचान हैं।
किंतु प्रतीत होता है ऐसा इन विकट परिस्थितियों में
नहीं संजो पाए शहीदों को हम अपनी स्मृतियों में।
फिर से बटे हुए हैं आज हम मंदिर और मस्जिदों में ,
नहीं बचा उबाल देश हित का हमारे लहू के कतरों में।
जुड़ना है फिर साथ-साथ ही इस मुश्किल के दौर में,
संग संग चले थे जैसे बापू एक लाठी के जोर में।
जैसे संग लड़ कर पाया हमने अपनी इस आजादी को
बंद कर एक सूत्र में फिर हम पाएंगे कामयाबी को।
-०-
सूर्य प्रताप राठौर जी की रचनाएं पढ़ने के लिए शीर्षक चित्र पर क्लिक करें!
No comments:
Post a Comment