■■ देशभक्ति: आधुनिक परिप्रेक्ष्य में ■■
(आलेख)
' देशभक्ति या देश प्रेम ' की भावना का तात्पर्य है एक नागरिक का उसके राष्ट्र के प्रति समर्पण व प्रेम। यह किसी देश से उसके सांस्कृतिक ,ऐतिहासिक ,सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं से जुड़ा होता है। देशभक्ति शब्द आते ही हमारी आंखों के सामने भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस जैसे महान क्रांतिकारियों की छवि उभर आती है। जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था । यह देश प्रेम की पराकाष्ठा थी। ऐसे असंख्य क्रांतिकारियों और देश प्रेमियों की सूची है ,जिनका नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है तो वहीं अनगिनत देशभक्तों की कुर्बानी अनाम ही रह गई।जिनका नाम इतिहास में दर्ज़ नहीं हो पाया। जब देश गुलाम था तब जनता में एक क्रांति की धारा बह रही थी ,एक तरह का जुनून था कि किसी तरह देश को पराधीनता से मुक्ति मिल जाए ।इसके लिए आबाल-वृद्ध ,स्त्रियां देश के लिए क्रांति और संघर्ष की राह पर चल पड़े थे।
काफी बलिदानों और संघर्षों के बाद आखिरकार 15 अगस्त 1947 को देश को स्वतंत्रता मिल ही गई। लेकिन लंबी गुलामी के बाद जो देश हमें मिला था अब उसके पुनरुत्थान के लिए नई चुनौतियों के दुष्कर मार्ग पर चलने की बारी आई। वर्षों की क्रांति ने देश को स्वतंत्र तो कर दिया, हमारा स्वयं का तिरंगा झंडा और संविधान तो अस्तित्व में आ चुका था लेकिन अब देश भक्ति का एक नया स्वरूप सामने लाने की बारी आई। जिसमें देश को प्रगति पथ पर अग्रसर करना था ।
दुनिया के बाकी देश तब तक विकास के मार्ग पर आगे बढ़ चुके थे और भारत में वह अपनी शैशवावस्था में था। साथ ही छुआछूत ,निरक्षरता ,सांप्रदायिकता पग-पग पर प्रगति के रथ को रोक रही थी जो कि पराधीनता स्वरूप देश में गहरे पैठ जमा चुकी थी।
हमारा देश इन धार्मिक, सामाजिक कुरीतियों से लड़ते -लड़ते अपनी विकास- यात्रा पर बढ़ रहा था। इसी बीच पड़ोसी देशों के आक्रमण का हमारे बहादुर सैनिकों ने जमकर लोहा लिया। पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। यह सब देशभक्ति का ही तो एक अलग रूप है। देश को विकास प्रदान करने के लिए सामरिक दृष्टिकोण से मजबूत बनने के साथ-साथ कृषि, अर्थव्यवस्था, अंतरिक्ष यात्रा भी करनी थी। इसी बीच पंचवर्षीय योजनाओं और श्वेत-हरित क्रांति की शुरुआत हुई। यह सब हमें देश के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है। अंग्रेजों के जाने के बाद भारत को फिर से विश्व के सामने मजबूती से खड़ा करने के लक्ष्य ने सभी देशवासियों को देशभक्ति का एक नया अवसर प्रदान किया।
इस दिशा में देश के कृषक, पशुपालक, वैज्ञानिक, चिकित्सक, सैनिक और आम जनता सभी क्रांतिकारियों की भूमिका में खड़े हो गए ।
जिसके फलस्वरूप दुग्ध और कृषि क्षेत्र में आशा अनुरूप वृद्धि हुई । विज्ञान और सैन्य शक्ति के क्षेत्र में भी देश अपने पैरों पर खड़ा होने लगा।
यह सब देशभक्ति का आधुनिक रूप ही तो था। जो भारत को विकसित राष्ट्र बनने की दिशा की ओर ले जाने लगा। आज हमारी अर्थव्यवस्था विश्व समुदाय में अपनी पहचान बना चुकी है । फिर भी इसकी चुनौतियां खत्म नहीं हुई है।
कोई भी देश तभी शक्तिशाली बन सकता है ,जब वहां की जनता में देशप्रेम और निष्ठा हो। वास्तविक रूप में हमारी कर्तव्य -परायणता और सद्चरित्रता ही देश को तरक्की के मार्ग पर ले जा सकती है। एक चरित्रहीन व्यक्ति कभी तरक्की नहीं कर सकता और यही आज देश भक्ति की मांग भी है कि हम अपनी -अपनी जगह पर रहते हुए एक अच्छे नागरिक बने। ऐसा कोई कार्य न करें जिससे देश की हानि हो। आज देश भक्ति केवल प्राण नहीं मांगती वरन हम छोटे-छोटे कार्य कर देश के विकास में सहायक बन सकते हैं।
जैसे घरेलू स्तर पर बिजली की बचत कर के, प्लास्टिक का उपयोग कम करके, इंधन को बचाकर। पेड़ लगाकर या फिर अपनी जरूरतें कम करके ,ताकि हर नागरिक को जीवन जीने के लिए 'बेसिक' चीजें मिलती रहें तथा पर्यावरण भी सुरक्षित रहें।
अगर देश में किसी तरह की आपदा भी आए तो उससे सूझबूझ से निपटना देश -भक्ति का ही एक रूप होता है । जैसे वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व कोरोना से जूझ रहा है । भारत में भी इसका आंकड़ा चार लाख तक पंहुच चुका है। 4 महीने से हमारा देश अनेक तरह की परेशानियों से जूझ रहा है । प्रारंभ में ढाई महीने के लॉक डाउन के समय जनता को बेहद कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।
लेकिन हम सब ने धैर्य के साथ देश का साथ देकर देश भक्ति का अनुपम उदाहरण पेश किया।
वास्तव में देशभक्ति एक पवित्र और सुंदर भाव है जो हर देशवासी में होनी चाहिए । इससे देश बनता है और प्रगति के मार्ग पर चलता है।
देशभक्ति का यह अर्थ कदापि नहीं है कि हाथों में तिरंगा लेकर देश को हानि पहुंचाने का काम करते रहे। आज की युवा- पीढ़ी देशप्रेम का महत्व समझ कर उसका वास्तविक रूप अपनाये तो यह बेहतर होगा ।देश का भविष्य होने के नाते उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वह आगे आकर देश की बागडोर अपने हाथों में लें।
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अलका 'सोनी'काफी बलिदानों और संघर्षों के बाद आखिरकार 15 अगस्त 1947 को देश को स्वतंत्रता मिल ही गई। लेकिन लंबी गुलामी के बाद जो देश हमें मिला था अब उसके पुनरुत्थान के लिए नई चुनौतियों के दुष्कर मार्ग पर चलने की बारी आई। वर्षों की क्रांति ने देश को स्वतंत्र तो कर दिया, हमारा स्वयं का तिरंगा झंडा और संविधान तो अस्तित्व में आ चुका था लेकिन अब देश भक्ति का एक नया स्वरूप सामने लाने की बारी आई। जिसमें देश को प्रगति पथ पर अग्रसर करना था ।
दुनिया के बाकी देश तब तक विकास के मार्ग पर आगे बढ़ चुके थे और भारत में वह अपनी शैशवावस्था में था। साथ ही छुआछूत ,निरक्षरता ,सांप्रदायिकता पग-पग पर प्रगति के रथ को रोक रही थी जो कि पराधीनता स्वरूप देश में गहरे पैठ जमा चुकी थी।
हमारा देश इन धार्मिक, सामाजिक कुरीतियों से लड़ते -लड़ते अपनी विकास- यात्रा पर बढ़ रहा था। इसी बीच पड़ोसी देशों के आक्रमण का हमारे बहादुर सैनिकों ने जमकर लोहा लिया। पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। यह सब देशभक्ति का ही तो एक अलग रूप है। देश को विकास प्रदान करने के लिए सामरिक दृष्टिकोण से मजबूत बनने के साथ-साथ कृषि, अर्थव्यवस्था, अंतरिक्ष यात्रा भी करनी थी। इसी बीच पंचवर्षीय योजनाओं और श्वेत-हरित क्रांति की शुरुआत हुई। यह सब हमें देश के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है। अंग्रेजों के जाने के बाद भारत को फिर से विश्व के सामने मजबूती से खड़ा करने के लक्ष्य ने सभी देशवासियों को देशभक्ति का एक नया अवसर प्रदान किया।
इस दिशा में देश के कृषक, पशुपालक, वैज्ञानिक, चिकित्सक, सैनिक और आम जनता सभी क्रांतिकारियों की भूमिका में खड़े हो गए ।
जिसके फलस्वरूप दुग्ध और कृषि क्षेत्र में आशा अनुरूप वृद्धि हुई । विज्ञान और सैन्य शक्ति के क्षेत्र में भी देश अपने पैरों पर खड़ा होने लगा।
यह सब देशभक्ति का आधुनिक रूप ही तो था। जो भारत को विकसित राष्ट्र बनने की दिशा की ओर ले जाने लगा। आज हमारी अर्थव्यवस्था विश्व समुदाय में अपनी पहचान बना चुकी है । फिर भी इसकी चुनौतियां खत्म नहीं हुई है।
कोई भी देश तभी शक्तिशाली बन सकता है ,जब वहां की जनता में देशप्रेम और निष्ठा हो। वास्तविक रूप में हमारी कर्तव्य -परायणता और सद्चरित्रता ही देश को तरक्की के मार्ग पर ले जा सकती है। एक चरित्रहीन व्यक्ति कभी तरक्की नहीं कर सकता और यही आज देश भक्ति की मांग भी है कि हम अपनी -अपनी जगह पर रहते हुए एक अच्छे नागरिक बने। ऐसा कोई कार्य न करें जिससे देश की हानि हो। आज देश भक्ति केवल प्राण नहीं मांगती वरन हम छोटे-छोटे कार्य कर देश के विकास में सहायक बन सकते हैं।
जैसे घरेलू स्तर पर बिजली की बचत कर के, प्लास्टिक का उपयोग कम करके, इंधन को बचाकर। पेड़ लगाकर या फिर अपनी जरूरतें कम करके ,ताकि हर नागरिक को जीवन जीने के लिए 'बेसिक' चीजें मिलती रहें तथा पर्यावरण भी सुरक्षित रहें।
अगर देश में किसी तरह की आपदा भी आए तो उससे सूझबूझ से निपटना देश -भक्ति का ही एक रूप होता है । जैसे वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व कोरोना से जूझ रहा है । भारत में भी इसका आंकड़ा चार लाख तक पंहुच चुका है। 4 महीने से हमारा देश अनेक तरह की परेशानियों से जूझ रहा है । प्रारंभ में ढाई महीने के लॉक डाउन के समय जनता को बेहद कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।
लेकिन हम सब ने धैर्य के साथ देश का साथ देकर देश भक्ति का अनुपम उदाहरण पेश किया।
वास्तव में देशभक्ति एक पवित्र और सुंदर भाव है जो हर देशवासी में होनी चाहिए । इससे देश बनता है और प्रगति के मार्ग पर चलता है।
देशभक्ति का यह अर्थ कदापि नहीं है कि हाथों में तिरंगा लेकर देश को हानि पहुंचाने का काम करते रहे। आज की युवा- पीढ़ी देशप्रेम का महत्व समझ कर उसका वास्तविक रूप अपनाये तो यह बेहतर होगा ।देश का भविष्य होने के नाते उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वह आगे आकर देश की बागडोर अपने हाथों में लें।
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बर्नपुर (पश्चिम बंगाल)
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रचना को प्रकाशित करने के लिए हार्दिक आभार......💐💐
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