(कविता)
सार ललित छन्द
हिदुस्तान हमारा प्यारा ,जन जन का है नारा ।
भारत माँ के जयकारों से , गूंज रहा जग सारा ।
छटा प्रकृति की अद्भुत बिखरी ,अनुपम रूप घनेरे ।
ऋषियों ,मुनियों ,विद्वानों के ,सदा रहे हैं डेरे ।
गंगा, जमुना ,सरस्वती की ,बहती निर्मल धारा ।
भारत माँ के जयकारों से , गूंज रहा जग सारा ।।
लाल किला है शान देश की ,ध्वजा यहीं फहराते ।
चिह्न प्रेम का ताजमहल है,सभी देखने आते ।
वीर सपूतों ने इस भू पर ,तन मन अपना वारा ।।
भारत माँ के जयकारों से , गूंज रहा जग सारा ।।
नीलवर्ण परिधान पहन नभ, करता करतब न्यारे ।
सागर में भी गहरे कितने , मोती बिखरे प्यारे ।।
सूरज निकले बाँह पसारे ,करे दूर अँधियारा।।
भारत माँ के जयकारों से , गूंज रहा जग सारा ।।
सुरभित,सुंदर पुष्प निराले , नई ताजगी देते ।
औषधियों से पूरित वन भी , कठिन रोग हर लेते ।
इस भारत माता पर अपना ,अर्पण जीवन सारा ।।
भारत माँ के जयकारों से ,गूंज रहा जग सारा ।।
हिदुस्तान हमारा प्यारा ,जन जन का है नारा ।
भारत माँ के जयकारों से , गूंज रहा जग सारा ।
छटा प्रकृति की अद्भुत बिखरी ,अनुपम रूप घनेरे ।
ऋषियों ,मुनियों ,विद्वानों के ,सदा रहे हैं डेरे ।
गंगा, जमुना ,सरस्वती की ,बहती निर्मल धारा ।
भारत माँ के जयकारों से , गूंज रहा जग सारा ।।
लाल किला है शान देश की ,ध्वजा यहीं फहराते ।
चिह्न प्रेम का ताजमहल है,सभी देखने आते ।
वीर सपूतों ने इस भू पर ,तन मन अपना वारा ।।
भारत माँ के जयकारों से , गूंज रहा जग सारा ।।
नीलवर्ण परिधान पहन नभ, करता करतब न्यारे ।
सागर में भी गहरे कितने , मोती बिखरे प्यारे ।।
सूरज निकले बाँह पसारे ,करे दूर अँधियारा।।
भारत माँ के जयकारों से , गूंज रहा जग सारा ।।
सुरभित,सुंदर पुष्प निराले , नई ताजगी देते ।
औषधियों से पूरित वन भी , कठिन रोग हर लेते ।
इस भारत माता पर अपना ,अर्पण जीवन सारा ।।
भारत माँ के जयकारों से ,गूंज रहा जग सारा ।।
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