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Monday, 11 January 2021

वर्ष 2021 की चुनौतियां (आलेख) - प्रोफेसर शामलाल कौशल

वर्ष 2021 की चुनौतियां
(आलेख)

अब मेरे जीवन की सांझ होने वाली है। मैं बचपन से ही यह सुनता आ रहा कि देश मुश्किल हालात में से गुजर रहा है। 1947 मे जब भारत विभाजन हुआ तो लाखों लोग पाकिस्तान से भारत में और भारत से पाकिस्तान की तरफ गए। ना जाने कितने लोगों को बेरहमी से मार दिया गया, कितनी संपत्ति बर्बाद हो गई, आने-जाने के साधन ध्वस्त हो गए, न जाने कितनी मासूम अबलाओं की आबरू से खिलवाड़ किया गया। पाकिस्तान में रह रहे बहुत सारे हिंदुओं को कत्ल कर दिया गया और उनकी बहू बेटियों के साथ मुसलमानों ने निकाह कर लिया। जो हिंदू मुसलमान बनने के लिए राजी हो गए उन्हें छोड़ दिया गया और बाकियों को मौत के घाट उतार दिया गया। विभाजन के समय पाकिस्तान तथा हिंदुस्तान में जो दंगे हुए उनमें बंगाल के दंगे बहुत खतरनाक थे तभी तो स्वतंत्रता प्राप्ति वाले दिन महात्मा गांधी जी इन दंगों को शांत कराने के लिए बंगाल चले गए थे। विस्थापित लोगों को भारत में बसाना एक बहुत बड़ी चुनौती थी। लेकिन पाकिस्तान से उजड़ कर आए और अपना सब कुछ छोड़कर आई लोगों ने जिस बहादुरी से अपने आप को पुनर्स्थापित किया और आज उनमें से कईयों का नाम उच्च कोटि के लोगों में गिना जाता है, वह एक अनुकरणीय मिसाल है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश का विकास करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी। देश के प्रथम प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू में देश में पंचवर्षीय योजनाओं को शुरू किया तथा देश में सार्वजनिक उद्योगों की आधारशिला रखी, भाखड़ा बांध समेत योजना शुरू की ताकि बिजली का उत्पादन हो सके, बाढ़ें रोकी जा सके तथा कृषि की सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो सके। वर्तमान समय में विश्व के अनेक देशों की तरह भारत में भी जो मंदी की स्थिति है उसका मुकाबला करने में हमारे देश के सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां महत्वपूर्ण रोल अदा कर रही हैं।
जब देश आजाद हुआ तो यह एक पिछड़ा हुआ देश था। अंग्रेजों ने यहां खूब लूटमार की। यहां का धन दौलत इंग्लैंड ले गए और देश में उद्योगों को विकसित नहीं होने दिया गया। देश से कच्चा माल इंग्लैंड जाता था और वहां से बना बनाया उद्योगों का माल आयात किया जाता था। अनाज की कमी थी। भारत को भीख मांगने का कटोरा लेकर अमेरिका के पास पीएल 480 के तहत अनाज मंगवा कर लोगों का पेट भरना पड़ता था। इस बीच भारत के प्रधानमंत्री, बहादुर शास्त्री ने अनाज की समस्या के समाधान के लिए महीने में एक बार शाम के समय लोगों को भोजन ना करने और अनाज को बर्बाद ना करने का सुझाव दिया। 1965 में ही पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया और शास्त्री जी के नेतृत्व में पाकिस्तान को इसका मुंह तोड़ जवाब दिया गया। दोनों देशों में समझौते के लिए रूस की राजधानी, मास्को में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान तथा भारत के प्रधानमंत्री, श्री लाल बहादुर शास्त्री के बच युद्धविराम के लिए समझौता हुआ, लेकिन इसे भारत का दुर्भाग्य ही कहना चाहिए शास्त्री जी का मास्को में ही स्वर्गवास हो गया। इस तरह देश के सामने एक और चुनौती खड़ी हो गई।
भारत को बार-बार अमेरिका से पीएल 48 के तहत अनाज मंगवाने से बहुत शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ा। इस समस्या को हल करने के लिए भारत में हरित क्रांति लाई गई जिसके तहत गेहूं, चावल आदि पांच फसलों के उन्नत बीज, खाद और सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध करा कर कृषि का उत्पादन बढ़ाया गया। हम ना केवल अनाज के मामले में आत्मनिर्भर हो गए बल्कि अनाज का निर्यात भी समय-समय पर करने लगी। इस तरह देश ने अनाज की कमी की चुनौती का सामना बहुत ही समझदारी से किया।
इस तरह हमारे देश को समय-समय पर कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है और देश ने उनका संतोषजनक ढंग से समाधान निकाला है।
लेकिन इसके बावजूद भी वर्ष 2021 भारत के लिए चुनौतियों से भरपूर वर्ष लगता है। इन चुनौतियों को हल करने के लिए भारत को आर्थिक, सामाजिक, सैनिक तथा विदेश नीति से संबंधित कुछ अहम फैसले करने होंगे। वर्ष 2020 में कोविड-19 ने देश में बहुत सारे लोगों को संक्रमित ही नहीं किया बल्कि बहुत सारे लोगों को मौत की नींद सुला दिया। संसार के अन्य देशोंकी तरह भारत में भी मंदी के कारण आर्थिक विकास अ पने निम्नतम स्तर पर पहुंच गया लोगों की आमदनी कम हो गई, बेकारी फैल गई, सरकार की आमदनी तो कम होगी लेकिन विभिन्न कारणों से सरकार का खर्चा बढ़ गया। इस तरह से सरकार के लिए वित्तीय संकट खड़ा हो गया। वर्ष 2021 इस दृष्टि से चुनौतीपूर्ण है। सरकार को ना केवल आर्थिकी को पुनर्स्थापित करना है, बेकारी दूर करनी है, लोगों की आय तथा मांग में वृद्धि करनी है बल्कि व्यापार तथा उद्योग को कुछ सुविधाएं देनी है ताकि वे अपने पैरों पर फिर से खड़े हो सकें। सरकार को जहां गैर उत्पादक खर्चों में कटौती करनी पड़ेगी वहां सरकार को अपने राजस्व में वृद्धि करने के लिए भी नए स्रोतों का पता लगाना होगा।
वर्ष 2020 में कोरोनावायरस महामारी ने देश का सत्यानाश कर दिया। लोगों में निराशा ही निराशा पैदा हो गई। बहुत सारे लोग मारे गए, बहुत सारे लोग संक्रमित हो गए। लोगों में हर समय मौत का साया मंडराने लगा। लोगों को अपने घरों में कैदियों की तरह रहना पड़ा, बाहर निकलने पर सोशल डिस्टेंसिंग तथा मास्क का पहनना और बार-बार हाथों को सेनीटाइजर अथवा साबुन से धोना जरूरी हो गया। यह खुशी की बात है कि कोरोनावायरस महामारी को रोकने के लिए अपने ही देश में दो प्रकार की वैक्सीन का आविष्कार कर लिया गया है और उसका प्रयोग आपात स्थिति को देखते हुए किया जा सकता है। भारत द्वारा कोरोना के इलाज के लिए वैक्सीन के आपात प्रयोग को डब्ल्यूएचओ ने अनुमति दे दी है। यह खुशी की बात है कि संसार के कुछ और देश जैसे चीन, रूस, इंग्लैंड आदि देशों ने भी इस महामारी के इलाज के लिए वैक्सीन तैयार कर ली है। हमारे देश में वैक्सीन को लेकर अनावश्यक राजनीति, आशंका तथा अनिश्चितता की जो स्थिति है उस चुनौती का मुकाबला करना सरकार तथा लोगों के लिए बहुत जरूरी है। आखिरकार कोरोनावायरस महामारी से हमें निजात तो पानी ही पड़ेगी।  इस बीच इंग्लैंड से पहले से भी ज्यादा खतरनाक कोरोनावायरस के कुछ मरीज आने तथा उनके मरने से दुनिया भर में आतंक की स्थिति पैदा हो गई है जो कि एक और प्रकार से चुनौतीपूर्ण कार्य है।
भारत के सामने एलएसी पर चीन के भारी सैनिक जमावड़े का सामना करना एक बहुत बड़ी चुनौती है। दोनों देशों के बीच लद्दाख क्षेत्र में चीनी सैनिकों द्वारा घुसकर कुछ इलाकों पर कब्जा करने की समस्या को हल करने के लिए दोनों देशों के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी हैं। दोनों देशों में 1990 में सीमा को लेकर जो सहमति हुई थी चीन उस पर अमल करने से इंकार कर रहा है। इतना ही नहीं वह दोनों देशों की सीमाओं के साथ-साथ अपने क्षेत्र में सड़कों का निर्माण कर रहा है ताकि आवश्यकता पड़ने पर अपने सैनिकों को जल्दी-जल्दी वहां पहुंचा कर भारत पर हमला कर सकें। कहने को तो चीन भारत के साथ अपनी समस्याओं को हल करना चाहता है लेकिन वास्तविकता यह है कि एक तरफ तो वह बातचीत करके हमें उलझाए रखना चाहता है और दूसरी तरफ दोनों देशों की सीमा पर भारी मात्रा में सैनिक तथा युद्ध सामग्री तैयार करके भारत को आंखें दिखाने की भी कोशिश कर रहा है। भारत चीन की इस चुनौती को समय आने पर वीरता पूर्वक हल करेगा क्योंकि 2021 का भारत 1962 का भारत नहीं है जब उसने हमें शर्मनाक पराजय दी थी। हमें चीन की चुनौती का मुकाबला करने के लिए ना केवल अपने आप को सैनिक दृष्टि से मजबूत करना पड़ेगा बल्कि चीन से मंगवाई जाने वाली वस्तुओं को अपने देश में पैदा करके आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा। बहुत सारी विदेशी कंपनियां चीन से भारत में निवेश करना चाहती हैं, हमें उन्हें अधिक से अधिक सुविधाएं देकर उनका स्वागत  ही नहीं करना चाहिए बल्कि चीन के मुंह पर एक थप्पड़ भी मारना चाहिए। भारत को चीन को लेकर अपनी विदेश नीति में इस तरह से तब्दीली करनी चाहिए की अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसको अपना मुंह छुपा ना मुश्किल हो जाए।
   1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान ने हमें चैन से नहीं रहने दिया! जम्मू कश्मीर के महाराजा, हरि सिंह के द्वारा लिखित तौर पर देने के बाद कि उनका राज्य भारत में विलय चाहता है, श्रीनगर और कश्मीर में मुस्लिम बाहुल्य को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान ने इस पर कब्जा करने के लिए अपने सैनिकों को मुजाहिदीन के तौर पर भेज दिया और उन्होंने कश्मीर के एक भाग पर बलात कब्जा कर लिया जो कि आज तक भी कायम है जिसे कि आजाद कश्मीर कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के द्वारा दोनों देशों में कश्मीर को लेकर युद्धविराम हुआ। लेकिन पाकिस्तान अभी भी कश्मीर को किसी न किसी प्रकार से हमारे से छीनना चाहता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भारत तथा पाकिस्तान में 1965, 1971 तथा 1999 में युद्ध हुए जिसमें भारत में पाकिस्तान को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया। 1971 के युद्ध में हमारे सैनिकों ने ऐसी व्यूह रचना बनाई कि पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के तौर पर एक अलग देश बन गया। भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के 90000 सैनिकों को आत्मसमर्पण करने के लिए विवश कर दिया। अब भी समय-समय पर यही पाकिस्तान भारत में अपने यहां प्रशिक्षित आतंकवादियों को तोड़फोड़ की कार्रवाई के लिए भेजता रहता है, युद्ध विराम का उल्लंघन करके नागरिक क्षेत्रों पर बमबारी करता रहता है, जम्मू कश्मीर में वहां के निवासियों को भारत के खिलाफ बगावत करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहा। उसे सबक सिखाने के लिए हमारे सैनिकों ने सर्जल स्ट्राइक कर के आतंकवादी के ठिकानों को नष्ट किया है। भारत के साथ युद्धकी स्थिति बनाए रखने के कारण तथा आतंकवाद का केंद्र होने के तौर पर बदनाम होने के कारण पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में उसे आर्थिक सहायता मिलनी बंद हो गई है, पाकिस्तान के आंतरिक क्षेत्रों में असंतोष और आतंकवाद अपनी चरम सीमा पर है। पाकिस्तान है कि वह अपनी भारत विरोधी शत्रुता तथा आतंकवादी तत्वों को जम्मू कश्मीर में तोड़फोड़ करने से बाज नहीं आता। 2021 की हमारी यह चुनौती रहेगी कि हम पाकिस्तान को हमेशा के लिए सबक सिखा कर उसे सही रास्ते पर लाएं। अगर दोनों देशों में युद्ध हुआ तो पाकिस्तान के कई टुकड़े हो जाएंगे।
भारत को अपनी विदेश नीति में परिवर्तन करना भी 2021 की एक बहुत बड़ी चुनौती होगी। हमें अपने पड़ोसियों जैसे नेपाल, श्रीलंका, मालदीप, म्यांमार आदि के साथ सौहार्द पूर्ण संबंध बनाने होंगे। चीन के द्वारा इन देशों में सैनिक ठिकाने बनाकर भारत को घेरने की कोशिश को निष्क्रिय करना होगा। हमें इन देशों में आवश्यक आर्थिक सहायता तथा निवेश के द्वारा अपनी जगह बनानी होगी। इसके अलावा भारत को ईरान के साथ संबंध और सुदृढ़ करने पड़ेंगे! क्योंकि ईरान अफगानिस्तान में तालिबान की हरकतों को पसंद नहीं करता! संबंध सुधरने की स्थिति में वह तालिबानियों को नियंत्रित करने में मदद करेगा। क्योंकि कभी ना कभी तो अमेरिका तथा उसके सहयोगी देश अपनी अपनी सेनाओं को अफगानिस्तान से निकाल ही लेंगे ऐसी स्थिति में भारत को अफगानिस्तान के सैनिकों को प्रशिक्षण देने तथा वहां पर विकासात्मक एवं कल्याणकारी कार्यों के लिए निवेश करने का मौका मिलेगा। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान तथा चीन अफगानिस्तान में अपना हस्तक्षेप बनाने की कोशिश करेंगे जिसे कि भारत को रोकना होगा। अरब देशों के साथ कुल मिलाकर भारत के सौहार्दपूर्ण संबंध हैं। पाकिस्तान की छवि मुस्लिम देशों में दिन प्रतिदिन धूमिल होती जा रही है। सुरक्षा तथा कृषि संबंधी सहायता प्राप्त करने के लिए भारत के लिए इसराइल के साथ संबंधों को और सुदृढ़ बनाना एक चुनौती रहेगी। भारत और रूस के आपसी संबंध दीर्घ काल से ही सौहार्दपूर्ण रहे हैं।
भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय दृष्टि से अमेरिका के साथ संबंधों को सुदृढ़ बनाना एक बहुत बड़ी चुनौती रहेगी। अमेरिका के सभी राष्ट्रपति भारत के पक्ष में नहीं रहे। कुछ की नीति चीन के प्रति उदार रही जबकि कुछ अमेरिकन राष्ट्रपतियों ने कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का साथ दिया। लेकिन बराक ओबामा के समय से भारत और अमेरिका के संबंध लगातार सुधरते रहे हैं। दोनों देशों में परमाणु कार्यक्रम तथा रक्षा संबंधी कई समझौते हुए। निवर्तमान राष्ट्रपति, डोनाल्ड ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी के बीच में निकटतम व्यक्तिगत संबंध रहे हैं। आशा की जानी चाहिए कि अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बा्इडन के शासनकाल में दोनों देशों में संबंध और सुदृढ़ होंगे। अमेरिका ना केवल पहले की तरह भारत को सामरिक दृष्टि से सहायता देता रहेगा बल्कि सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनने में मदद भी करेगा। भारत संयुक्त राष्ट्र का मौलिक सदस्य हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब इसकी स्थापना हुई थी तो भारत इसका सदस्य बना था। भारत संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुका है उसके लिए सुरक्षा परिषद का सदस्य बनाना एक बहुत बड़ी चुनौती होगी। भारत एक परमाणु संपन्न देश है, विश्व की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था है, विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, इसका महत्व अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। आशा करनी चाहिए कि अमेरिका कश्मीर के मामले में भारत का समर्थन करेगा।
  इस तरह वर्ष 2021 को लेकर भारत को बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। जिस तरह अतीत में हमने सभी चुनौतियों का सफलतापूर्वक निदान किया है तथा समाधान किया है आशा है कि इस वर्ष भी हम देश के समक्ष चुनौतियों को बहुत आसानी से हल कर लेंगे। इस समय जो खेती से संबंधित 3 कानूनों को लेकर पंजाब, हरियाणा, यूपी तथा देश के अन्य भागों के किसानों के द्वारा दिल्ली में जो आंदोलन किया जा रहा है आशा की जाती है इसका सौहार्दपूर्ण हल इस तरह निकाल लिया जाएगा के किसान संतुष्ट होकर अपनी-अपनी घरों में वापस जा सके। हर देश के सामने हर साल अपने-अपने ढंग से चुनौतियां आती हैं और सभी देश विवेकपूर्ण ढंग से उनको हल करने की कोशिश करते हैं।
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पता: 
प्रोफेसर शामलाल कौशल
रोहतक (हरियाणा

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