*खामोशियाँ*
(कविता)
इक अलग ही चुभन
इक अलग ही एहसास
कभी सुकून तो
कभी छटपटाहट
अपनी ही चुप्पी में
काफी कुछ कहती
समझो तो परिचित सी
ना समझो तो अनजानी
गुमसुम सी रहती
कलेजे को चीरती
मानो या ना मानो
देती दर्दभरी ये निशानी
हर इक इन्सान के भीतर
मिलती इनकी कहानी ।
***
पता:लक्ष्मी बाकेलाल यादव
लक्ष्मी बाकेलाल यादव जी की रचनाएँ पढ़ने के लिए शीर्षक चित्र पर क्लिक करें!
No comments:
Post a Comment