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Friday 13 March 2020

कैसे खेलूं होली (कविता) - रीना गोयल


कैसे खेलूं होली
(कविता)
घटा घनी आतंकी छायी , खून भरी लगती होली ।
चिर निद्रा हैं वीर धरा के ,कैसे फिर खेलूँ होली ।

धूमिल होती सब आशाएं, सो गई हैं कामनाएं ।
रुद्र गीत ही धमनियों में ,गा रही हैं वेदनाएं ।
नाचूँ गाऊँ कैसे फिर.मैं ,कैसे फिर खेलूँ होली ।
चिर निद्रा हैं वीर धरा के ,कैसे फिर खेलूँ होली ।

धरा बहाती आँसू बूंदे , सुन विलाप विधवाओं का ।
पुँछना है सिन्दूर अभी तो , कितनी ही सधवाओं का।
धरा रंग जब लाल रक्त से ,कैसे फिर खेलूँ मैं होली ।
चिर निद्रा हैं वीर धरा के ,कैसे फिर खेलूँ होली ।

जलती शहीदों की चिताएं ,है ज्वाल भरती श्वास में ।
तब ही जलेगी होलिका जब ,दुश्मन हो मृत्यु पाश में ।
घायल अभी सम्वेदनाएँ , कैसे फिर खेलूँ होली ।
चिर निद्रा हैं वीर धरा के ,कैसे फिर खेलूँ होली ।
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)

-०-

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तेरे प्यार में... (कविता) - नरेन्द्र श्रीवास्तव

तेरे प्यार में...
(कविता)
पास तुझे पाकर मेरा दिल,
प्यार में यूँ तरबतर हुआ।
मुझको मेरी खबर नहीं थी,
पा तुझको,मैं बेखबर हुआ।।

तेरे आने की खुशबू से
मौसम,मधुवन महक रहे
चाँद-सितारे चमक रहे हैं
पशु-पक्षी भी चहक रहे
चले पवन के झोंके सरसर
हर्षित पल हर पहर हुआ।

बजने लगी पाँव की पायल
हाथों की चूड़ी खनकी
झूम उठा आँखों का काजल
माथे की बिंदिया चमकी
छुअन तेरी से शीतल तन-मन
पोर-पोर पे असर हुआ।

अधर व्यथा न कह पाये कुछ
दिल भी चुप खामोश रहा
दीवाने दिल की बेताबी
मुझे न होश हवाश रहा
चाहत दिल की,पा नजदीकी
शुरू प्रेम का सफर हुआ।
-०-
संपर्क 
नरेन्द्र श्रीवास्तव
नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश)  
-०-

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आशाओं के सेतू (कविता) - समर नाथ मिश्र

आशाओं के सेतू 
(कविता)
साथी ! चल मिलकर बाँधेंगे
आशाओं के सेतू ...

तू व्यर्थ अकिंचन रोता है
क्युँ साहस धीरज खोता है
क्या रहा असंभव जग में जो
हठ से संभव ना होता है

हम साधन बल से हीन सही
किन्तु उद्यम से क्षीण नहीं
यह अविरल गंगा साक्षी है
पौरुष विधि के आधीन नहीं

उत्साही जब चल पड़ते हैं
मरूथल में निर्झर झरते हैं
बाधाओं की आशंका से
कह बढ़ते पग कब डरते हैं

दुर्लभ को लभ कर लाएँगे
दुष्कर को सुगम बनाएँगे
अपने निज श्रम सेतू चढ़कर
हम पार क्षितिज तक जाएँगे

कर प्रयाण , चल कदम उठा
अब निराश किस हेतु
साथी ! चल मिलकर बाँधेंगे
आशाओं के सेतू ...
पता - 
समर नाथ मिश्र
बीरगांव , रायपुर (छत्तीसगढ़)

-०-
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मनहरण (घनाक्षरी छंद) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'


मनहरण
(घनाक्षरी छंद)
******
लो गुलाल से रंगेंगे ,गालों को तुम्हारे हम,
होली आई है तो खाली,जाने कैसे पाओगे।
मेंहदी के चूर्ण से ये, किया जो तैयार आज ,
हरे रंग से बदन ,को कैसे बचाओगे ।।
पीला रंग हल्दी और,बेसन मिलाके बना,
अपनी त्वचा को आज,तुम चमकाओगे।
अनार के दानों से जो,बनाया है रंग लाल,
भीग गए तो "अनंत, सबको रिझाओगे ।।
*****
लाल गुडहल के ये, फूलों ने तैयार किया,
लाल रंग भाल पे ये ,आज लग जाने दो ।
और फूल गेंदा से जो,पीला रंग बनाया है,
गालों पर बैठ इसे, गीत कोई गाने दो ।।
तुलसी की और गुलमोहर की पत्तियों से,
हरा रंग निकला जो शीश को सजाने दो ।
आ गए "अनंत"यदि,काया न बेरंग रखो,
यार बनाया है मुझे यारी को निभाने दो ।।
*****
बनता है काला रंग,लेडआक्साइड वाला,
करता डेमेज गुर्दे, कभी ना लगाईये ।
कॉपर सल्फेट से जो, हरा रंग बनता है,
बनाता है अंधा कभी, पास मत जाईये।
मर्करी सल्फेट से जो,रंग लाल निकला है,
कैंसर त्वचा का करें ,खुद को बचाईये ।।
रंग रूपहला एल्यूमिनियम ब्रोसाइट ,
बनाता "अनंत" इसे, टाटा कर आईये ।।-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
नीमच (मध्यप्रदेश)
-०-

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कब जीवन की शाम आ जाये (कविता) - एस के कपूर 'श्रीहंस'

कब जीवन की शाम आ जाये
(कविता)
न जाने कब जीवन की
आखरी शाम आ जाये।

वह अंतिम दिन बुलावा
जाने का पैगाम आ जाये।।

सबसे बना कर रखें हम
दिल की नेक नियत से।

जाने किसी की दुआ कब
जिंदगी के काम आ जाये।।
-०-
पता:
एस के कपूर 'श्रीहंस'
बरेली (उत्तरप्रदेश) 

-०-

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