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Thursday 19 December 2019

हम लड़कियां हैं, साहिब (कविता) - वरदान जिंदल

हम लड़कियां हैं, साहिब
(कविता)
हम लड़कियां हैं, साहिब
हमें बहुत कुछ करना है
हमें कोख मे से बचना है
... फिर जन्म भी तो लेना है
हमें पढ़ाई भी है करनी
.. चूल्हाचौंका भी तो करना है
हमें करनी है नौकरी भी
... दहेज इकट्ठा भी करना है
हमें दिखना है माडर्न
... लेकिन हिजाब भी पहनना है
हमें जाना है सड़कों पर
... खुद को महफूज रखना है
फिर मनचले आशिकों से
... छुप कर भी निकलना है
आ गई पकड़ में उनकी
... फिर दर्द भी तो सहना है
उन कुछ क्षणों में फिर
... तिल-तिल के भी मरना है
हां.. हम लड़कियां है, साहिब
हमें बहुत कुछ करना है..
हमें बहुत कुछ करना है...!!
-०-
पता -
वरदान जिंदल
लुधियाना (पंजाब)
-०-

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कहानी चल रही है (ग़ज़ल) - अजगर अली 'असग़र इन्दौरी'

कहानी चल रही है
(ग़ज़ल)
हवा कैसी सुहानी चल रही है ।।
कोई से पानी पानी चल रही है ।।

नए मज़मून बोता जा रहा हू ।
अभी खेती किसानी चल रही है ।।

नया कुछ भी नही है पास उनके।
वही गिबत पूरानी चल रही ।।

हमारे पास तो कुछ भी नही है ।
मगर पूंजी जुबानी चल रही है।

हमारा जिक्र सबके बाद होगा ।
बहुत लम्बी कहानी चल रही है ।।

मुझे दुश्मन मिटाना पा रहा है।
खूदा की मेहरबानी चल रही।।
-०-
पता:
अजगर अली 'असग़र इन्दौरी'
इन्दौर (मध्यप्रदेश)

-०-
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वाह री! जिंदगानी (कविता) - दीपिका कटरे

वाह री! जिंदगानी
(कविता)
वाह री! जिंदगानी
क्या अजीब है तेरी कहानी!
जो चाहा वह पाया नहीं
जो पाया वह चाहा नहीं
यह सब तो हैं हरकतें बचकानी
न तूने जानी और ना मैंने जानी।

बचपन बीता आई जवानी
करने लगे हम अपनी मनमानी
की बहुत ही मौज भी मस्तानी
समय निकला तो बुनी नई कहानी
जब भी याद करूँ बचपन और जवानी
आँखों से भी बहता है पानी
वाह री! जिंदगानी
क्या अजीब है तेरी कहानी।

अब घर में थी सास
और थी बहुएँ घर की रानी
आवाज सुनकर करती थी आनाकानी
कभी सोचती थीं
बूढ़ी कहीं माँगे ना दाना-पानी
पल-पल बढ़ने लगी थी बेचैनी
कैसे करें अब हम अपनी मनमानी
वाह री! जिंदगानी
क्या अजीब है तेरी कहानी।

यह तो है हर किसीकी कहानी
अब तो बस लेनी है हमें
जिंदगी से आखिरी रवानी
बस! यही होगी तेरी कहानी
और होगी मेरी भी राम कहानी
ना तूने कभी जानी और
ना कभी मैंने थी जानी
वाह री! जिंदगानी
क्या अजीब है तेरी कहानी!
पता:
दीपिका कटरे 
पुणे (महाराष्ट्र)

-०-

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गुरु (कविता) - राजू चांदगुडे

गुरु
(कविता)
गुरू बिना न ज्ञान मिले,
ना मिले कहीं सम्मान।
आसान नहीं, आसान बना दे,
ऐसे वे इन्सान।

राह न भटके कभी किसी की,
करता है गुरू वह काम।
जीवन की कठीनाई मे,
रखते वे सबका ध्यान।

भले बुरे की सोच मिली है,
मिला है मुझको वो मकाम,
जहाँ से मुझको बना सकू मैं,
इक अच्छा इन्सान।

बचपन से लेकर अब तक,
दिया हमे जिसने भी ज्ञान,
गुरू हैं वे सब प्रियजन मेरे,
शत-शत उन्हें प्रणाम।
-०-
पता:
राजू चांदगुडे
पुणे (महाराष्ट्र)

-०-

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गूंगी आवाज (कविता) - मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'


गूंगी आवाज
(कविता)
आज भी दबाई और कुचली जा रही है
उनकी आवाज
जो जी रहे हैं हाशिए पर
उनकी गरीबी
घटने के वजाय बढती ही जा रही है |
जुल्म-सितम अभी खत्म नहीं हुए
घाव पूरी तरह से अभी भरे नहीं और
मरहम की जगह नमक छिड़का जा रहा है |
उनकी सिसकियां अभी खत्म नहीं हुई
उनकी आवाज नहीं निकलती
क्योंकि बड़ी क्रूरता के साथ सदियों से
आज तक दबाई गई है
उनकी आवाज !
इसीलिए तो गूंगी आवाज
बनकर रह गई है
उनकी आवाज |
-०-
मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'
फतेहाबाद-आगरा. 
-०-

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स्वच्छ भारत बनाकर देखो (ग़ज़ल) - सुमन अग्रवाल 'सागरिका'


स्वच्छ भारत बनाकर देखो
(ग़ज़ल)
मन में ख़्वाब सजाकर देखो।
आप फिर मुस्कराकर देखो।
ह्रदय से अंधकार मिटाकर,
मन में दीप जलाकर देखो।
कोई शख़्स परेशान हो गर,
एक बार तुम जाकर देखो।
काँटों की चुभन क्या होती,
सूल सेज पर सोकर देखो।
आँखें तेरी खुल जाएगी,
दर-दर ठोकर खाकर देखो।
मुसीबत में दोस्त काम आये,
गहन दोस्ती निभाकर देखो।
मसले का हल मिल जाएगा,
दिल का दर्द बताकर देखो।
वो तुमसे रूठ जाये अगर,
फिर से उसे मनाकर देखो।
साथ निभाना चाहते अगर,
दिलों से दिल मिलाकर देखो।
आपसी प्यार बढ़ जाएगा,
गर दूरियाँ मिटाकर देखो।
कामयाबी मिलेगी जरूर,
अपना हुनर दिखाकर देखो।
आपस में मतभेद मिटाकर,
मन में प्रेम जगाकर देखो।
अब लड़ाई-झगड़ा छोड़ दो,
जन-जन को समझाकर देखो
साफ रखेंगे अपना भारत,
स्वच्छ अभियान चलाकर देखो।
जागरूक हो जाये जनता,
स्वच्छ भारत बनाकर देखो।
-०-
सुमन अग्रवाल "सागरिका" 
आगरा (उत्तर प्रदेश)

-०-


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