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Tuesday, 4 February 2020

मेरा देश महान (कविता) - प्रज्ञा गुप्ता


मेरा देश महान 
(कविता)
मेरा देश महान,
ओ हम मिलकर करें,
देश का गुणगान,
हिंदू , मुस्लिम, सिख, ईसाई ,
सब है एक समान,
मेरा देश महान..
जिसके उत्तर में हिमालय ,
है, रक्षा में तल्लीन,
मिटा ना सका कोई आज तक,
उसे अमरता का वरदान,
इस देश का सैनिक महान,
बोलो जय जवान।
मेरा देश महान…
गंगा, जमुना, गोदावरी नदियाँ,
कल-कल, छल- छल करतीं यहाँ,
अनवरत, भारत माँ के पग धोतीं,
दौड़-दौड़कर फूँक रहीं,
बंजर धरती में प्राण,
बोलो जय किसान,
मेरा देश महान….
लोकतंत्र का राज यहाँ,
लोकतंत्र का गान,
दे रहा विज्ञान यहाँ,नित नए आयाम,
नई योजना, नयी कल्पना,
परिवर्तित संविधान,
बोलो जय विज्ञान,
मेरा देश महान….
-०-
प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़ा, (राज.)

-०-
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वसंत पर दोहे (दोहे) - सुमन अग्रवाल "सागरिका"


वसंत पर दोहे
(दोहे)
पीत चुनरिया ओढ़कर, आई बसंत बहार।
धरा वासंती हो गई,...कर सोलह श्रंगार।।
मखमली सी धूप खिली, भोर हुई अब जाग।
चहचहाती चिड़ियाँ भी, करती कलरव राग।।

पतझड़ का मौसम हुआ,...पत्ते गिरे हजार।
नव-पल्लव अंकुरित हुए, आई नयी बहार।।

पीली सरसों खेत में, गेंदा, पुष्प, पलास।
रंगोली सजती यहाँ, मन में हर्षोल्लास।

गुंजन करती तितलियाँ, भौरों का आगाज।
फुलवारी चहुँओर है, पीत सजा वनराज।।

धरा बसंतमय हो गई, खुशहाली चहुँओर।
बारिश का मौसम हुआ, वन में नाचे मोर।।-०-
सुमन अग्रवाल "सागरिका" 
आगरा (उत्तर प्रदेश)

-०-


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बसंत ऋतु पर दो कविताएँ (कविता) - एस के कपूर 'श्रीहंस'

शरद ऋतु का अंत ...बसंत
(कविता)
शरद ऋतु को करके प्रणाम
अब खुमारी सी छाने लगी है।

लगता है ऋतु राज़ बसंत की
रुत अब कहीं आने लगी है।।

माँ सरस्वती का आशीर्वाद तो
अब पाना है हम सबको।

मन की पतंग भी अब खुशियों
के हिलोरे खाने लगी है।।
-०-
ऋतुराज बसंत
(कविता)
पत्ता पत्ता बूटा बूटा अब
खिला खिला सा तकता है।

धवल रश्मि किरणों सा अब
सूरज जैसे जगता है।।

मौसम चक्र में मन भावन सा
परिवर्तन अब आया जैसे।

ऋतु राज बसन्त का अवसर
अब आया सा लगता है।।
-०-
पता:
एस के कपूर 'श्रीहंस'
बरेली (उत्तरप्रदेश) 

-०-

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चुनौती (लघुकथा) - ज्योत्स्ना ' कपिल'

चुनौती
(लघुकथा)
जूनागढ़ रियासत में जबसे वार्षिक गायन प्रतियोगिता की घोषणा हुई थी संगीत प्रेमियों में हलचल मच गई थी। उस्ताद ज़ाकिर खान और पंडित ललित शास्त्री दोनों ही बेजोड़ गायक थे। परन्तु उनमे गहरी प्रतिद्वन्दिता थी। रास्ट्रीय संगीत आयोजन के लिए दोनों पूरे दम खम के साथ रियाज़ में जुट गए , वे दोनों ही अपने हुनर की धाक जमाने को बेकरार थे। अक्सर दोनो के चेले चपाटों के बीच सिर फुटव्वल की नौबत आ जाती। खान साहब के शागिर्द अपने उस्ताद को बेहतर बताते तो शास्त्री जी के चेले अपने गुरु को।

खान साहब जब अलाप लेते तो लोग सुध बुध खोकर उन्हें सुनते रहते, उधर शास्त्री जी के एक एक आरोह अवरोह के प्रवाह में लोग साँस रोककर उन्हें सुनते रह जाते। दोनों का रियाज़ देखकर निर्णय लेना मुश्किल हो जाता कि प्रतियोगिता का विजेता होने का गौरव किसे मिलेगा। बड़ी-बड़ी शर्ते लग रही थीं कि उनमें से विजेता कौन होगा।

शास्त्री जी की अंगुलियाँ सितार पर थिरक रही थीं, वह अपनी तान में मगन होकर सुर लहरियाँ बिखेर रहे थे । पशु पक्षी तक जैसे उन्हें सुनकर सब कुछ भूल गए थे, तभी एक चेला भागा हुआ चला आया

" गुरूजी, अब आपको कोई भी, कभी चुनौती नही दे पाएगा, आप संगीत की दुनिया के सम्राट बने रहेंगे "

" क्यों क्या हो गया ?"

" गुरु जी अभी खबर मिली है कि आज रियाज़ करते हुए खान साहब का इंतकाल हो गया " शिष्य ने बहुत उत्तेजना में भरकर बताया।

सुनकर शास्त्री जी का मुँह पलभर को आश्चर्य से खुला रह गया, फिर आँखों में अश्रु तैर गए। उन्होंने सितार उठाकर उसके नियत स्थान पर रखकर आवरण से ढंका और माँ सरस्वती को प्रणाम किया। फिर सूनी नज़रों से आसमान ताकते हुए भर्राए स्वर में कहा

" आज मेरा हौसला चला गया...अब मैं जीवन में कभी गा नहीं सकूँगा।"
-०-
पता - 
ज्योत्स्ना ' कपिल' 
गाजियाबाद (उत्तरप्रदेश)

-०-

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कितनी उमरें (ग़ज़ल) - अमित खरे

कितनी उमरें
(ग़ज़ल)
कितनी उमरें गुजारी खुशी के लिए
ये सजा है मिरी जिंदगी के लिए

सजदा करने की हमको है फुर्सत कहाँ
चुन लिया है बस तुम्हें बंदगी के लिए

क्या जरूरी है कि जाम हो सामने
एक नजर ही बहुत है तिश्नगी के लिए

हम तो भटका किए बस इधर से उधर
कुछ ना कुछ चाहिए दिल्लगी के लिए

महफिलों में चमकना अलग बात है
मैं तो टूटा बहुत शायरी के लिए
-०-
अमित खरे 
दतिया (मध्य प्रदेश)
-०-




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