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Tuesday, 4 February 2020

कितनी उमरें (ग़ज़ल) - अमित खरे

कितनी उमरें
(ग़ज़ल)
कितनी उमरें गुजारी खुशी के लिए
ये सजा है मिरी जिंदगी के लिए

सजदा करने की हमको है फुर्सत कहाँ
चुन लिया है बस तुम्हें बंदगी के लिए

क्या जरूरी है कि जाम हो सामने
एक नजर ही बहुत है तिश्नगी के लिए

हम तो भटका किए बस इधर से उधर
कुछ ना कुछ चाहिए दिल्लगी के लिए

महफिलों में चमकना अलग बात है
मैं तो टूटा बहुत शायरी के लिए
-०-
अमित खरे 
दतिया (मध्य प्रदेश)
-०-




***
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