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Tuesday, 4 February 2020

बसंत ऋतु पर दो कविताएँ (कविता) - एस के कपूर 'श्रीहंस'

शरद ऋतु का अंत ...बसंत
(कविता)
शरद ऋतु को करके प्रणाम
अब खुमारी सी छाने लगी है।

लगता है ऋतु राज़ बसंत की
रुत अब कहीं आने लगी है।।

माँ सरस्वती का आशीर्वाद तो
अब पाना है हम सबको।

मन की पतंग भी अब खुशियों
के हिलोरे खाने लगी है।।
-०-
ऋतुराज बसंत
(कविता)
पत्ता पत्ता बूटा बूटा अब
खिला खिला सा तकता है।

धवल रश्मि किरणों सा अब
सूरज जैसे जगता है।।

मौसम चक्र में मन भावन सा
परिवर्तन अब आया जैसे।

ऋतु राज बसन्त का अवसर
अब आया सा लगता है।।
-०-
पता:
एस के कपूर 'श्रीहंस'
बरेली (उत्तरप्रदेश) 

-०-

***
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