घर
(कविता)
घर ही एक काशी है
मन ही एक मंदिर है ।
घर मे रहनेवाले सारे
भगवान के समान है ।
घर आगंन की तुलसी
घर की बेटी होती है ।
घर का चमकता दिपक
घर का बेटा होता है ।
घर मे आनेवाले अतिथि
भगवान समान होते है ।
घर के माता-पिता
शक्ति स्वरूप होते है ।
घर की शांति ही
घर की शोभा होती है ।
घर की हर एक स्री
माँ के समान होती है ।
घर की हर बहू
माँ लक्ष्मी समान होती है ।
जिस घर में स्त्री होती गुणी
होता है घर में हर कोई सुखी ।
प्रेमभाव से बंधा
घर , घर कहलाता है ।
-०-
पता :
मन ही एक मंदिर है ।
घर मे रहनेवाले सारे
भगवान के समान है ।
घर आगंन की तुलसी
घर की बेटी होती है ।
घर का चमकता दिपक
घर का बेटा होता है ।
घर मे आनेवाले अतिथि
भगवान समान होते है ।
घर के माता-पिता
शक्ति स्वरूप होते है ।
घर की शांति ही
घर की शोभा होती है ।
घर की हर एक स्री
माँ के समान होती है ।
घर की हर बहू
माँ लक्ष्मी समान होती है ।
जिस घर में स्त्री होती गुणी
होता है घर में हर कोई सुखी ।
प्रेमभाव से बंधा
घर , घर कहलाता है ।
-०-
पता :
डा. वसुधा पु. कामत (गिंडे)
बेलगाव (कर्नाटक)
बेलगाव (कर्नाटक)