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Wednesday, 8 January 2020

घर (कविता) - डा. वसुधा पु. कामत (गिंडे)

घर
(कविता)
घर ही एक काशी है
मन ही एक मंदिर है ।

घर मे रहनेवाले सारे
भगवान के समान है ।

घर आगंन की तुलसी
घर की बेटी होती है ।

घर का चमकता दिपक
घर का बेटा होता है ।

घर मे आनेवाले अतिथि
भगवान समान होते है ।

घर के माता-पिता
शक्ति स्वरूप होते है ।

घर की शांति ही
घर की शोभा होती है ।

घर की हर एक स्री
माँ के समान होती है ।

घर की हर बहू
माँ लक्ष्मी समान होती है ।

जिस घर में स्त्री होती गुणी
होता है घर में हर कोई सुखी ।

प्रेमभाव से बंधा
घर , घर कहलाता है ।
-०-
पता :
डा. वसुधा पु. कामत (गिंडे)
बेलगाव (कर्नाटक)  


-०-

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अपना दायित्व पूरा करें (कविता) - संगीता ठाकुर (नेपाल)


अपना दायित्व पूरा करें
(कविता)
बच्चे हमारे
भविष्य है
वे ही सृष्टि के
नीव है ।
मानव जीवन के
स्तम्भ है
वे नवयुग के
कर्णधार है ।
कल के इस धरातल पे
आज अंकुरित
बीज है ।
भविष्य में सुन्दर मीठे फल के
आज के होनहार
रिष्ट पुष्ट स्वच्छ वृक्ष है ।
चलो आओ हम
आज उन्हे
अपने सुन्दर कर्मो के छाव तले
शितल ममता और संस्कारों से
भेद–भाव रहित निर्मल
मन के धारो से
दिनरात उन्हे हम
खूब सिंचे
शिक्षा, दिक्षा और स्नेहो से
उनका जड़ मजबूत करे ।
भविष्य अपना उज्ज्वल करे
मानव जीवन
सुदृढ़ करे
नयावर्ष में नवसंकल्प करे
विश्व के नन्हे
सुरक्षित करे
अपना दायित्व पूरा करे ।।
-०-
संगीता ठाकुर
ललितपुर (काठमांडू - नेपाल)



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नववर्ष (गीत) - अशोक 'आनन'

नववर्ष
(गीत)
नवजात शिशु - सा 
चंचल - चपल 
सुकुमार 
नव - वर्ष !
शरद शशि - सा 
नवल - धवल 
तमहार
नव-वर्ष !
हृदय प्रिय मां - सा 
सरल - तरल 
मनुहार
नव - वर्ष !
राम - कृष्ण - सा
अजर - अमर 
अवतार
नव - वर्ष !
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (म.प्र.)

-०-




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लो आ गया नया ज़माना (कविता) - सहज सभरवाल

लो आ गया नया ज़माना
(कविता)
लो आ गया नया ज़माना,
स्वच्छ भारत बन गया है एक बहाना।

क्या भारत की स्वच्छता का इरादा ,
टूट रहा है यह स्वच्छ भारत का वादा।

सैलानी हैं आते यहाँ,
दिखती है गंदगी देखें जहाँ ।

क्या वैष्णो देवी की पवित्र पहाड़ियां,
लिपटी जो रहतीं हैं, बर्फीली साड़ियां ।

एवं मनुष्य की अपवित्रता का साथ,
दया करो हम पर तो भैरवनाथ ।

इसी गंदगी का करना है अंत,
तभी काम करेंगी भक्ति और मेलों में प्रभु या संत ।
-०-
पता:
सहज सभरवाल
जम्मू-कश्मीर

-०-

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वो हिंदुस्तानी था (कविता) - राजेश सिंह 'राज'

वो हिंदुस्तानी था
(कविता)
हुड़दंग देख कर , लगता है
तू भारत का इस्लाम नहीं
दुनियां जाने, उसके 'सर' पे
कोई भी, इल्जाम नही

चढ़ी कढ़ाई, छोड़ के दौड़ा
'गिरा' जो, रामू काका था
गोद मे लेके घर तक छोड़ा
वो अब्दुल था, कोई और नहीं

दीप दिवाली, पान दसहरा
होली का, रंग भी चढ़ता था
ढ़ोल ताजिये साथ बजाते
वो राजू था, कोई और नहीं

दुःख सुख दोनों मिलकर बांटे
बात बड़ी या छोटी हो
इल्जाम नही, दोनों ने सीखा
वो हिंदुस्तानी था कोई और नही
-०-
राजेश सिंह 'राज'
बाँदा (उत्तरप्रदेश)

-०-

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स्टाफ (लघुकथा) - श्याम मठपाल

स्टाफ
(लघुकथा)

ट्रैन बहुत तेजी से दौड़ रही थी . काफी भीड़ थी . लोग गैलरी,ऊपर सीटों पर ठूंस -ठूंस का बैठे हुवे थे. जनरल कोच का तो बहुत ही बुरा हाल था. यात्रियों के लिए चढ़ना -उतरना भी मुश्किल था. मुख्य स्टेशन आने में बामुशिकल दस मिनट का समय ही था . अचानक ट्रैन रुकने लगी. ज्यों ही ट्रैन रुकी जोर-जोर से आवाज आने लगी फ्लाइंग -फ्लाइंग . कुछ लोग इधर-उधर भागने लगे ,एक-दो लोग तो चली ट्रैन से कूद पड़े .गिरते-पड़ते दौड़ने लगे. कुछ लोगों के माथे पर पसीना आ गया. जिनके पास टिकट्स थे वो निश्चिन्त बैठे थे. देखते-देखते पूरी ट्रैन को रेलवे पुलिस फ़ोर्स ने घेर लिया . दोनों तरफ हर डिब्बे के गेट पर जवान तैनात हो गए. हर डिब्बे में चार-पांच लोग टिकट्स की जांच करने लगे. बिना टिकट्स वालों से पेनल्टी के साथ राशि वसूली गई. जो ना -नकुर कर रहे थे, उन्हें पुलिस वाले पकड़ कर ले जा रहे थे. बिना टिकट्स वालों में तथाकथित ऊँचे घर के लोग भी थे. ए.सी.कोच एक कम्पार्टमेंट में आठ-नौ लोग आराम से बैठे हुवे थे. फ्लाइंग टीम के दो सदस्य वहां तक पहुंचे और टिकट्स की मांग की . बैठे लोगों में से एक बोला ' स्टाफ' . जैसे जादू हो गया . दोनों टिकट चेकर बिना एक शब्द बोले आगे रवाना हो गए.
-०-
पता:
श्याम मठपाल
उदयपुर (राजस्थान)

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