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Wednesday, 8 January 2020

घर (कविता) - डा. वसुधा पु. कामत (गिंडे)

घर
(कविता)
घर ही एक काशी है
मन ही एक मंदिर है ।

घर मे रहनेवाले सारे
भगवान के समान है ।

घर आगंन की तुलसी
घर की बेटी होती है ।

घर का चमकता दिपक
घर का बेटा होता है ।

घर मे आनेवाले अतिथि
भगवान समान होते है ।

घर के माता-पिता
शक्ति स्वरूप होते है ।

घर की शांति ही
घर की शोभा होती है ।

घर की हर एक स्री
माँ के समान होती है ।

घर की हर बहू
माँ लक्ष्मी समान होती है ।

जिस घर में स्त्री होती गुणी
होता है घर में हर कोई सुखी ।

प्रेमभाव से बंधा
घर , घर कहलाता है ।
-०-
पता :
डा. वसुधा पु. कामत (गिंडे)
बेलगाव (कर्नाटक)  


-०-

***
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