स्टाफ
(लघुकथा)
ट्रैन बहुत तेजी से दौड़ रही थी . काफी भीड़ थी . लोग गैलरी,ऊपर सीटों पर ठूंस -ठूंस का बैठे हुवे थे. जनरल कोच का तो बहुत ही बुरा हाल था. यात्रियों के लिए चढ़ना -उतरना भी मुश्किल था. मुख्य स्टेशन आने में बामुशिकल दस मिनट का समय ही था . अचानक ट्रैन रुकने लगी. ज्यों ही ट्रैन रुकी जोर-जोर से आवाज आने लगी फ्लाइंग -फ्लाइंग . कुछ लोग इधर-उधर भागने लगे ,एक-दो लोग तो चली ट्रैन से कूद पड़े .गिरते-पड़ते दौड़ने लगे. कुछ लोगों के माथे पर पसीना आ गया. जिनके पास टिकट्स थे वो निश्चिन्त बैठे थे. देखते-देखते पूरी ट्रैन को रेलवे पुलिस फ़ोर्स ने घेर लिया . दोनों तरफ हर डिब्बे के गेट पर जवान तैनात हो गए. हर डिब्बे में चार-पांच लोग टिकट्स की जांच करने लगे. बिना टिकट्स वालों से पेनल्टी के साथ राशि वसूली गई. जो ना -नकुर कर रहे थे, उन्हें पुलिस वाले पकड़ कर ले जा रहे थे. बिना टिकट्स वालों में तथाकथित ऊँचे घर के लोग भी थे. ए.सी.कोच एक कम्पार्टमेंट में आठ-नौ लोग आराम से बैठे हुवे थे. फ्लाइंग टीम के दो सदस्य वहां तक पहुंचे और टिकट्स की मांग की . बैठे लोगों में से एक बोला ' स्टाफ' . जैसे जादू हो गया . दोनों टिकट चेकर बिना एक शब्द बोले आगे रवाना हो गए.
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पता:
श्याम मठपालउदयपुर (राजस्थान)
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Wonderful story. Nice one.
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