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Saturday, 28 December 2019

सेवा कर ले (गीत) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'

सेवा कर ले
(गीत )

सेवा करले सेवा करना ,
तो बेकार नहीं होता है ।
कभी दिखावा करने वाले ,
का उद्धार नहीं होता है।।

तड़क भड़क में खर्च किया जो,
काम बहुत आया है सच है ।
और जरूरत मंदों ने भी ,
सुकूं बहुत पाया है सच है ।।
मगर दिखावे की बू उसमें ,
पगपग पर नुकसान करेगी ।
फल पाने की उम्मीदें भी ,
देखेगा बेमौत मारेगी ।।
रब के साथ दिखावे का तो ,
सुन व्यापार नहीं होता है ।
कभी दिखावा करने वाले ,
का उद्धार नहीं होता है ।।

एक हाथ जब मदद करें तो ,
हाथ दूसरा जान न पाये ।
हमें सिखाया यही गया है ,
पास कभी ना शैतां आये।।
आत्म प्रशंसा दुर्गुण है हम ,
इसको जब तक नहीं छोड़ते ।
सिर्फ थकेंगे नहीं मिलेगा ,
कुछ भी चाहे रहें दौड़ते ।।
मनमानी अपनी करना क्या,
अत्याचार नहीं होता है ।
कभी दिखावा करने वाले ,
का उद्धार नहीं होता है ।।

कथनी और करनी के अंतर ,
से पर्दा जब उठ जाएगा ।
वसन विहीन बदन होगा तो ,
कोई पास नहीं आएगा ।।
बुरा लगे अभिमान खुदा को,
मत खरीद उसकी नाराजी।
विपदाओं में फंस ना जाए ,
हार न जाए जीती बाजी ।।
धनुष रहे कमजोर दूर तक ,
उसका वार नहीं होता है ।
कभी दिखावा करने वाले ,
का उद्धार नहीं होता है ।।

वो देता तब तू देता है ,
इसमें कहा बढ़ाई तेरी ।
उसकी ताकत पर्वत चढ़ती ,
इसमें कहाँ चढ़ाई तेरी ।।
शर्म तुझे क्या कभी न आई,
कोई जब दाता कहता है ।
तेरे एहसानों के बदले ,
कोई झुका झुका रहता है ।।
खुदा मानना खुद को रब से ,
सच्चा प्यार नहीं होता है ।
कभी दिखावा करने वाले ,
का उद्धार नहीं होता है ।।

"अनंत" उसकी ताकत को तू,
समझ न कम नादानी है ये ।
नहीं जानता क्या तू रब की,
पगले नाफरमानी है ये ।।
नेकी करें कुए में डालें ,
संतों का फरमान यही है ।
गुणीजनों से चलाआ रहा ,
हमने सीखा ज्ञान यही है ।।
महाजनों के पथ पर चलना ,
तो निस्सार नहीं होता है ।
कभी दिखावा करने वाले ,
का उद्धार नहीं होता है ।।-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
नीमच (मध्यप्रदेश)
-०-

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सार्थक पहल (लघुकथा) - जगदीश 'गुप्त'

सार्थक पहल
(लघुकथा)
सार्थक अपने किसान पिता का इकलौता होनहार बेटा था । वह पढाई के साथ - साथ खेती - किसानी में अपने पिता का बराबर सहयोग करता था । हाई स्कूल पास करने के पश्चात् पिता ने आगे की पढाई के लिए उसे शहर भेजा । अनेक रिश्तेदारों , मित्रों ने उसे इंजीनियरिंग में प्रवेश लेने की सलाह दी किंतु , खेतों से लगाव के कारण उसने कृषि महाविद्यालय में प्रवेश लिया । पढाई ख़त्म होने पर खेती करने के आधुनिक गुर उसे अपने पुस्तैनी धंधा में सहायक सिद्ध हुए । साथ ही उसने गांव के अन्य किसानों को भी उन्नत , वैज्ञानिक खेती करने के गुण सिखाने की ठानी । 
वह देखता कि , फसल कटने के पश्चात उच्च कोटि का अनाज मंडी में हाथों - हाथ बिक जाता परन्तु , वहां फैले भ्रष्टाचार , मंडी तक अनाज को ले जाने की कवायद और बिचौलियों के कारण किसानों को सही दाम नहीं मिल पाता था । सार्थक ने सारे किसानों का संगठन तैयार कर फैसला लिया कि अपनी फसल गाँव में ही बेचेंगे , वह भी बाजार मूल्य पर । अच्छी क़्वालिटी का अनाज और सार्थक की पहल के कारण अब दूर - दूर के व्यापारी स्वयं गांव आने लगे और इस तरह किसानों का शोषण बंद हो गया । 

-०-
जगदीश 'गुप्त'
कटनी (मध्यप्रदेश)

-०-


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दिन बिता जाए (कविता) - मनीषा सहाय 'सुमन'


दिन बिता जाए

(कविता)
सपनों के पंख लगा कर ,
मन आशाओं के आंगन में
देखो उड़ उड़ जाए रे,...
मंद मंद मुस्काता आए
दिन ये बीता जाए रे, ...
इच्छाओं का नया सवेरा,
देख हृदय मुस्काए रे,....
ठहर ठहर सोचुं पल पल,
जाने तुम कब आओगे,
क्षण क्षण बीता जाए रे....

नाचती दीप शिखाएं,
अँधियारा दूर भगाएं रे...
अाह्लादित है समय भी देखो,
जाने क्या समझाए ,
दिन ये बीता जाए रे...

सूर्य किरण के रथ पर चढ़,
नव प्रभात आ जाए रे,
चौखट से झांके अंदर,
खुशीयों को गलें लगाए ,
नववर्ष खड़ा हर्षाए रे...

सपनो के पंख लगा कर,
दिन बीता जाए रे...
-०-
पता:
मनीषा सहाय 'सुमन'
पटना (बिहार)
-०-


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राम पर कविता के बहाने (आलेख) - अमित खरे

राम पर कविता के बहाने
(आलेख)
आप मेरी बात को सबसे पहले पढ़ें , समझें ,
और फिर इस बात का परीक्षण करें कि मै सही हूँ या गलत । अगर सहमत हों तो इस को कहीं आगे बढ़ाएं ।
अन्यथा मै पहले भी खुश था अभी भी खुश हूँ ।
इन दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल है जिसमे अनामिका अम्बर प्रभु श्री राम पर एक कविता का वाचन कर रहीं हैं ।
प्रभु श्री राम ने जाने कितने कण्ठों को अपनी स्तुति गान करने के लिए चुना है । फिर चाहे महाऋषि बाल्मीकि हों , तुलसी दास जी हों, निराला जी हों , मैथली शरण गुप्त हों जाने कितने कितनों ने राम की महिमा गान करके खुद की श्री वृद्धिकी है । जिन जिन को प्रभु श्रीराम ने चुना है वे भाग्यवान हैं । उन्हें बधाई ।
राष्ट्रकवि मैथली शरण गुप्त जी कहते हैं
"राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है
कोई कवि हो जाए सहज सम्भाव्य है "।
राष्ट्र कवि मैथली शरण गुप्त जी के अनुसार
राम सबके हैं । हर कलम साधक को राम पर अधिकार है ।
एक तर्क यह भी है कि "प्रभु श्री राम पर कुछ भी लिखा जाए वह तुलसी दास जी का पुनर्वाचन ही होगा "। यह तर्क कहीं न कहीं राम पर लिखे में साम्य और रचनाकार पर लगने वाले चोरी के आरोप के बचाव में एक दलील मात्र है ।सबका अपना तेवर होता है जो रचनाकारों को एक दूसरे से पृथक करता है ।
लेकिन इस बात पर भी विमर्श होना चाहिए कि किसने क्या लिखा कैसा लिखा क्यों लिखा ।
मै कुछ कहना चाहता हूँ ।
पिछले दिनों जो वीडियो वायरल हुआ उससे मुख्य रूप से तीन किरदारों की चर्चा आई जिसमे डॉ हरीओम पँवार मेरठ , श्री कमलेश शर्मा इटावा , एवं अनामिका अम्बर मेरठ ।
मै तीनों के विषय में बात रखने की कोशिश करूँगा ।
सबसे पहले डॉ हरीओम पँवार की कविता की बात डॉ पँवार की कविता एक लंबी कविता है । जिसे वो चीख चीख कर पढ़ते हैं ।
इसमे उन्होंने रामकथा से जुड़े प्रसंग लिए हैं , राम कथा से जुड़ीं घटनाएं लीं है । किरदार वही रहेंगे । घटनाएं वही रहेंगी । सबका कहने का अपना तरीका होता है । सबका अपना शिल्प होता है जो रचना में झलकता है ।
अब कमलेश शर्मा जी के गीत पर बात करते हैं । "राम हुए हैं कितने और प्रमाण दें " गीत मै ने कई बार समक्ष में सुना है । वो इसे गाकर पढ़ते हैं । चीखने में और गाने में फर्क होता है और यह गीत विशुद्ध कविता है ।
ह्रदय पटल पर अपने आप अंकित होने वाला गीत है ।
राम कथा के संदर्भ , पात्र , घटनाएं इसमें सबसे बेहतर तरीके से उल्लेखित की गईं हैं ।
ताजा मामले में कमलेश जी का गीत सर्वश्रेष्ठ है । यह मेरी निजी राय है । मुझे यह कहने में कोई संकोच नही है ।
अब अनामिका अम्बर - कविता के अवमूल्यन के सन्दर्भों में चर्चित वायरल वीडियो में राम प्रभु पर कविता हो रही है यह तो पता चल रहा है । किसकी कविता हो रही है पता नही चल रहा है ।
कहीं कहीं यह लगता है कि डॉ हरीओम पँवार के शब्दों को पर्यायवाची के रूप में रख दिया हो ।
कहीं कमलेश जी के गीत की मिट्टी उठा ली हो ।
चलो उठा भी लो तो आपका कोई साँचा भी नही है जिसमे आप पँवार जी या कमलेश जी की मिट्टी उठा कर सही आकृति दे पाएं । मै इसे कविता नही मानता हूँ। मुझे कोई संकोच नही है ।
मेरे विचार से तीनों रचनाओं को एक कागज पर लिखकर विश्लेषण होना चाहिए । पत्र पत्रिकाएं इस विषय पर छापकर चर्चा खड़ी करें । तो और सही होगा ।
और अंत में मै श्रोताओं से , पाठकों से , समीक्षकों से , आलोचकों से यह पश्न करता हूँ कि वे तय करें कि ये उचित है , अनुचित है , चोरी है , महाजनी है क्या है ।
तय हो ।
दिनकर जी की अदालत से
समर शेष है नही पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध ।
जय जय
-०-
अमित खरे 
दतिया (मध्य प्रदेश)
-०-




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थाम लो अब हाथ कान्हा (रूपमाला छन्द) - रीना गोयल

थाम लो अब हाथ कान्हा
(रूपमाला छन्द)
बाँसुरी के सुर पुकारे ,राधिका का नाम ।
मोहना बाँके बिहारी ,साँवरे घनश्याम ।
छेड़ना है गोपियों को ,बस तुम्हारा काम ।
ताकते हो राधिका के ,रूप को अविराम।।

नाम ले कान्हा पुकारे ,बावरी दिन रैन ।
नैन में मूरत तुम्हारी ,भूल बैठी चैन ।
क्यों भला कान्हा छुपे तुम ,थाम लो अब हाथ ।
प्रीत की पुरवाइयों में ,बह चलो तुम साथ।।
-०-
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)

-०-

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