सार्थक पहल
(लघुकथा)
सार्थक अपने किसान पिता का इकलौता होनहार बेटा था । वह पढाई के साथ - साथ खेती - किसानी में अपने पिता का बराबर सहयोग करता था । हाई स्कूल पास करने के पश्चात् पिता ने आगे की पढाई के लिए उसे शहर भेजा । अनेक रिश्तेदारों , मित्रों ने उसे इंजीनियरिंग में प्रवेश लेने की सलाह दी किंतु , खेतों से लगाव के कारण उसने कृषि महाविद्यालय में प्रवेश लिया । पढाई ख़त्म होने पर खेती करने के आधुनिक गुर उसे अपने पुस्तैनी धंधा में सहायक सिद्ध हुए । साथ ही उसने गांव के अन्य किसानों को भी उन्नत , वैज्ञानिक खेती करने के गुण सिखाने की ठानी ।
वह देखता कि , फसल कटने के पश्चात उच्च कोटि का अनाज मंडी में हाथों - हाथ बिक जाता परन्तु , वहां फैले भ्रष्टाचार , मंडी तक अनाज को ले जाने की कवायद और बिचौलियों के कारण किसानों को सही दाम नहीं मिल पाता था । सार्थक ने सारे किसानों का संगठन तैयार कर फैसला लिया कि अपनी फसल गाँव में ही बेचेंगे , वह भी बाजार मूल्य पर । अच्छी क़्वालिटी का अनाज और सार्थक की पहल के कारण अब दूर - दूर के व्यापारी स्वयं गांव आने लगे और इस तरह किसानों का शोषण बंद हो गया ।
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जगदीश 'गुप्त'
कटनी (मध्यप्रदेश)
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