*दुख दर्द की आवाज*
(कविता)
गांव की कच्ची गली से
जब निकलता हूँ
हर समय दुख दर्द की
आवाज सुनता हूं ।
यह शिकायत खेत की
फिर मेघ ने धोखा दिया
उग सके कुछ खेत में
यह हौसला कम कर दिया
मेढ से नजरें चुराकर
मैं खिसकता हूं
गांव की कच्ची गली से •••
चरमराती चारपाई
रात भर रोती रही
और टूटी जूतियां
कोने में चुप सोती रही
देख कर भूखा बुढ़ापा
मैं तड़पता हूं ।
गांव की कच्ची गली से •••••
हो गई है सांझ
बापू लौट कर कब आएंगे
दर्द की पीड़ा बहुत है
कब दवाई लाएंगे
इन दुखद अनुभूतियों से
मै नित गुजरता हूं
गांव की कच्ची गली से •••••
-०-