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Friday, 1 January 2021

नया साल (कविता) - राजीव डोगरा 'विमल'

 

नया साल
(कविता)
नई उम्मीद लेकर आया है।
छोड़ चुके हैं जो
उनका हिसाब लेने आया है।
नया साल मां रणचंडी को
साथ लाया है,
उठाए खड्ग खप्पर
शत्रु का संहार करने आये है।
बीते हुए वक्त में
जो बन गए थे पराये 
फिर से उनको
अपना बनाने आया है।
नया साल नई उम्मीद
नव उमंग नवीन उत्साह 
साथ लेकर आया है।
नया साल महामारी से उठकर
नवीन पुलकित जीवन
साथ लेकर आया है।

राजीव डोगरा 'विमल'
-०-
राजीव डोगरा 'विमल'
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
-०-



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बीत गया जो (ग़ज़ल) - रूपेश कुमार

  

बीत गया जो
(ग़ज़ल)
बीत गया जो पल उसे भूल जाते है ,
आने वाले कल का जश्न मनाते है ,

अरमान है दिल मे पुड़ी और मीठाई का ,
पर सुखी रोटी पर संतोष कीए जाते है ,

मिले खुशबू बेली और चमेली का ,
पर रजनीगंधा की ओर बढे जाते है ,

हम जानते है प्रेम एक मर्ज हुआ करता है ,
फिर देवदास की तरह शराब पिये जाते है ,

कुछ गलतिया हम जानकर ही करते है ,
फिर भी गलतियो पे पश्चाप कीये जाते है ,

हम आशा और उम्मीद पर समाज बदलते है ,
पर देखते ही सबकुछ बदल जाते है ,

कल रो रहे थे 'रूपेश' गुजरे हूए ज़माने पर ,
आज नववर्ष पर उल्लास मनाये जाते है !
-०-
पता:
रूपेश कुमार
चैनपुर,सीवान बिहार
-०-


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नया साल (कविता) - अतुल पाठक 'धैर्य'

  

नया साल
(कविता)
नया साल हो नया राग हो,
स्नेह खुशी और अनुराग हो।

सारी परेशानी रहें दूर अब,
कोरोना का काम तमाम हो।

हे ईश्वर सबको अच्छी सौगात दो,
नववर्ष पर खुशियों का प्रभात हो।

सबका जीवन में विकास हो,
नया जोश नया उल्लास हो।

नैतिकता का सदा साथ हो,
सबके सिर पर बड़ों का हाथ हो।

ऊँच नींच भेदभाव के अंतर को मिटा दो,
नई सोच रखकर जीवन में सबको गले लगा लो।

द्वेष ग्लानि और क्रोध को इस 2020 में त्याग दो,
इक्कीस हो सबसे इक्कीस अपनत्व भाव प्यार हो।
-०-
पता: 
अतुल पाठक  'धैर्य'
जनपद हाथरस (उत्तरप्रदेश)

-०-

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ओ नये बर्ष (कविता) - अंकित शर्मा 'इषुप्रिय'


ओ नये बर्ष
(कविता)

ओ नये बर्ष के प्रथम दिवस! 
स्वागत है अभिनंदन है। 

ले उषाकाल में रश्मि कलश। 
आ नूतनता लेकर वापस।
फिर जोड़ नया अध्याय कोई। 
इस सृष्टि चक्र के आवर्तन में, 
ओ नये बर्ष के प्रथम दिवस! 
स्वागत है अभिनंदन है। 

विगत हुआ धुँधला- धुँधला। 
आ नूतन मारुत से सहला।
है नीरस- सा ठहराव कोई। 
सुख छुपा सदा परिवर्तन में। 
ओ नये बर्ष के प्रथम दिवस! 
स्वागत है अभिनंदन है। 

नवता का लोलुप मानव मन। 
कुछ सँवरा दे प्रकृति का तन। 
हो रुष्ट नहीं गत बर्ष कोई, 
उन्नति आगत के संवर्तन में।
ओ नये बर्ष के प्रथम दिवस! 
स्वागत है अभिनंदन है। 
-०-
पता: 
अंकित शर्मा 'इषुप्रिय'
मुरैना(म.प्र.)

-०-

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*कामयाब* (कविता) - दिनेंद्र दास

   

*कामयाब* 
(लघुकथा)

       एक युवक ने मुझसे कहा, " साहेब जी! आप मुझे कामयाबी होने का रहस्य बताइए?"    

        वह मेरा पूर्व परिचित था। मैंने उनके ऊपर दृष्टि डाली और एक मिनट चिंतन किया, फिर बोला, " आपको एक छोटी सी कुर्बानी देनी होगी। यदि आप यह कुर्बानी दे सकते हैं तो निश्चित रूप से आप शिखर पर पहुंच जाएंगे ।"

      युवक ने कहा, " बताइए महाराज जी! मैं कौन सी कुर्बानी दूं? आपकी आज्ञा शिरोधार्य है ।"

      उस व्यक्ति को सबसे ज्यादा अपनी मूंछ प्यारी थी। यह बात मैं जानता था। वह हमेशा मूंछ पर ताव देते हुए कहता रहता कि मेरी मूंछ में इतनी शक्ति है कि कोई मुझे पछाड़ नहीं सकता। अपने मूंछ पर मुझे बड़ा गर्व है। वह अपनी मूंछ को दिलों जान से चाहता था । उसकी मूंछ की कोई बढ़ाई करें तो वह फूला नहीं समाता था। वह कहता था, "बिना मूंछ का मर्द ,जैसे बाना बर्द । अर्थात बिना मूंछ का पुरुष बिना पूंछ के बैल के समान है।"

       मैंने उससे कहा, "आपको छोटी सी कुर्बानी देनी होगी। मूंछ कटवाना होगा। जैसे ही युवक ने मूंछ कटाने की बात सुनी तो वह आग बबूला हो गया और क्रोधित होकर मुझसे कहा, " आपने क्या मांग दिया साहेब! यह मेरा श्रृंगार है। मैं सब कुछ दे सकता हूं पर ...अपनी मूंछ नहीं दे सकता। दुनिया में मेरी सबसे पसंदीदा वस्तु कोई है... तो वह है मेरी मूंछ ! मैंने इसे बहुत वर्षों से संवारा है, संभाला है । मैं इसे कतई कटवा नहीं सकता।"

         मैंने कहा, " आप जीवन में कामयाबी हासिल करना चाहते हैं, शिखर पर पहुंचना चाहते हैं ,जिंदगी में सफल होना चाहते हैं। परंतु छोटी सी मूंछ की कुर्बानी नहीं दे सकते ?जो मूंछ आज कटने के बाद कल पुनः वापस आ सकती है। जिंदगी में बड़ा काम करना है, सफलता प्राप्त करना है तो छोटी चीजों का त्याग करना होगा । वह है आपका अहंकार! अहंकार को त्यागे बिना आप आगे नहीं बढ़ सकते। मुझे आपके मूंछ से कोई लेना- देना नहीं है।मैं तो आपके उज्जवल भविष्य की शुभ कामना करता हूं।"

      युवक को मेरी बातें उनके दिलों दिमाग में बैठ गई और अपनी लंबी मूंछ कटवा ली । गलत लड़कों की संगति गुंडागर्दी, दादागिरी छोड़ दी शराब, मांस एवं अन्य नशीली वस्तुओं का त्याग किया और साधु संतों एवं सज्जनों की संगति की। विनम्र होकर मन से डटकर पढ़ाई की और पी.एस.सी. उत्तीर्ण कर अपने शिखर तक पहुंचा। अपने जीवन में कामयाब होकर पी.एस.सी. अधिकारी कलेक्टर बने। 

-०- 
पता 
दिनेंद्र दास
बालोद (छत्तीसगढ़)

-०-



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नव वर्ष अभिनन्दन2021 (कविता) - डॉ. रमेश आनन्द

नव वर्ष अभिनन्दन2021

(कविता)
 आंसू आंसू रहा वर्ष ये
आशा है नव वर्ष हर्ष हो
रोते-रोते ‌बीस गया
डरते डरते शीत गया
रोजी और रोजगार गया
अब तो कुछ नूतन विमर्श हो
आशा है नव वर्ष हर्ष हो
हाट हुए सारे रीते
उदघाटन सब बिन फीते
सन्नाटे ही थे जीते
अब जो हो वो सब सहर्ष हो
आशा है नव वर्ष हर्ष हो
समय जैसे थम सा गया
लहू जैसे जम सा गया
लगता है दुःख कम सा गया
जन जन में जैसे अमर्श हो 
आशा है नव वर्ष हर्ष हो
-०-
पता:
डॉ. रमेश आनन्द
आगरा (दिल्ली)

-०-


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नव वर्ष हमारा पर्व नहीं (कविता) -रोशन कुमार झा

 नव वर्ष हमारा पर्व नहीं 

(कविता)
मैं रोशन मुझे अपने घर गर्व नहीं ,
मनाने की सब्र नहीं !
नव वर्ष पर मेरा कोई संदर्भ नहीं ,
क्योंकि ये अपना पर्व नहीं !!

चल रही है ठंडी-ठंडी है गर्म हवा नहीं ,
सूर्य बिना खिली हुई फूल सूर्यमुखी जवा नहीं !
मानव तो मानव जीव-जंतु भी दबे हैं , ठंड से
बचने के लिए कोई दवा नहीं ,
तब कैसे मनाऊं नव वर्ष, नया साल मनाने के लिए लगी
हुई कहीं सभा नहीं !!

पुरानी पत्ती ,अभी खिला सा वन नहीं ,
पौष माघ अभी बसंत और सावन नहीं !
आग नहीं तो बिस्तर, उसके बाहर मां बहन नहीं ,
क्यों मनाऊं, मनाने की मन नहीं ,
क्योंकि ये नव वर्ष अपना पावन नहीं !!

घर से निकलने वाली शाम नहीं ,
घर के अंदर कोई काम नहीं !
पेट के लिए निकलना ही होगा , ठंड से विश्राम नहीं ,
सच में नव वर्ष को मेरी ओर से प्रणाम नहीं !!

अभी जाने दो समय की गति ,
नव वर्ष मनाएंगे अभी नहीं , खिलने दो नव पत्ती !
आने दो बसंत , लेकर आ रही है मां सरस्वती ,
तब मनाएंगे नव वर्ष जलाकर दिया और मोमबत्ती !!

नव वर्ष मनाएंगे पहले चलें ,तो जाये ठंड की 
पकवान चौखा लिट्टी !!
केक नहीं बनाएंगे जलेबी वह भी मीठी-मीठी ,
है अपना ये हिन्दुस्तान ,विद्यापति, कबीर,दिनकर की मिट्टी,
उस पर नव वर्ष मनाएंगे, अभी नहीं, आने दो अपना तिथि !!

अभी काफी ठंड है , ठंड की कोई दण्ड नहीं ,
पूजा पाठ करने के लिए कैसे नहाऊ ,गर्म जल की प्रबंध नहीं !
बढ़ते ही जाते ठंड, ठंड की गति मंद नहीं ,
कैसे मनाऊं नव वर्ष, नव वर्ष मनाने की कोई सुगंध नहीं !!

ठंड में यानि आज नहीं ,
कोयल की मीठी आवाज नहीं !
शीत के कारण समय कैसे बीती अंदाज नहीं ,
तब कैसे मनाऊं नव वर्ष,ये हमारा रीति रिवाज नहीं !!

कुहासा में नया साल मनाना ,अपनी कर्त्तव्य नहीं ,
वह भी अब नहीं !
नव वर्ष पर हमें गर्व नहीं ,
है अपना ये पर्व नहीं !!
-०-
रोशन कुमार झा
कोलकाता (पश्चिम बंगाल)

-०-



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नया साल (कविता) - मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'

नया साल
(कविता)
आओ जशन मनाओ नया साल आ रहा है ।
ईमान की दौलत लेकर नया साल आ रहा है ।।

मुबारक हो वतन के हर खाश-ओ-आम को ।
ढेर सारी खुशियाँ लेकर नया साल आ रहा है ।।

मुल्क की तरक्की के लिए हम सब दुआ करें ।
अमन का पैग़ाम लेकर नया साल आ रहा है ।।

ज़लज़ले-हादसों से हो वतन की हिफाजत।
भाईचारे का पैकर बनकर नया सालआ रहा है।।

हुक्मरानो जरा सोचो ये मुल्क हम सब का है ।
नफरत के बादल छांटने नया साल आ रहा है।।

जन-जन को खुशहाली की ढेरों सौगात मिले।
आवाम की आवाज़ बन नया साल आ रहा है ।।

जमाने भर की बुराइयाँ मुल्क से हो रफा दफ़ा ।
इंसानियत का तौफा बन नया सालआ रहा है।।

मुल्क में जय-जयकार की सदाएं बुलन्द हो।
नूर का उजाला लेकर नया साल आ रहा है ।।

जन-जन नैतिक मूल्यों व् कर्तव्य का पालन करें।
"नाचीज़"हसीन जज्बात ले नया सालआ रहा है।।
-०-
मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'
मोहल्ला कोहरियांन, बीकानेर

-०-

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गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

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सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

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