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Monday 17 August 2020

आराम फरमाना (कविता) - डॉ.राजेश्वर बुंदेले 'प्रयास'

आराम फरमाना
(कविता)
उनकों,
दिन रात जाग के,
भूख प्यास को त्याग के,
जिम्मेदारियों को निभाना होता है
हम को सिर्फ घर में ही रुक कर,
आराम फरमाना होता है ।

एक को ढूंढना,
एक-एक कर अनेकों को पूछना,
अनेकों से लेकर अनगिनत को जाँचना ।
उनका यह,नित कार्य होता है ।
हम को सिर्फ घर में ही रुक कर,
आराम फरमाना होता है

बूढी माँ, थके पिता, नन्ही- सी मुस्काती गुडिया ।
सबका चिंतन करते हुए,
अपना कर्तव्य निभाना होता है ।
हम को सिर्फ घर में ही रुक कर,
आराम फरमाना होता है ।

अन कहीं आवाजें उनकीं,
कुछ कहती हैं हम सब को,
अनकहे उन शब्दों का अर्थ समझना,
मानवता का स्वरुप होता है ।
हम को सिर्फ घर में ही रुक कर,
आराम फरमाना होता है ।
-०-
डॉ.राजेश्वर बुंदेले 'प्रयास'
अकोला (महाराष्ट्र)
-०-

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वीरांगना के जज्बात (कविता) - श्रीमती कमलेश शर्मा

वीरांगना के जज्बात
(कविता)
मेरे दिल की धड़कन थे तुम,
तेरे दिल मैं धड़क रही थी।
जीवन वहाँ थमा था मेरा,
मेरी दुनिया पलट गई थी।
ओढ़ तिरंगा जब तुम आए,
लिपट गई मैं,सिसक पड़ी थी।
देह तुम्हारी बिछड़ गई पर,
अंदर इक आवाज़ सुनी थी।
आँसू पोंछ लिए फिर मैंने,
दर्द को अंदर जज़्ब लिया।
दुख के बादल को समेट कर,
आसमान में दफ़्न कर दिया।
साथ तुम्हारा छूट गया पर,
क़िस्मत मेरी रूठ गई पर।
रूठा भाग्य मनाने निकली,
सपने साथ तुम्हारे लेकर।
यादों का इक सिरा थाम कर,
नए सिरे से खड़ी हुई हूँ।
याद तेरी बन गई सहारा,
नई राह पर निकल रही हूँ।
धैर्य नहीं खोया है मैंने,
समझा नहीं अभागन हूँ मैं,
मेरा सिंधूर है भारत माता,
रहूँगी सदा सुहागिन ही मैं।
जब भी कोई सपना टूटा,
मेरी आँखे भी बरसी है।
मैं भी ऐसे ही तड़पी ज्यों ,
बिन पानी मछली तड़पी है।
अंदर ग़म है, आँखे नम हैं,
पर रुकने की बात नहीं है,
राष्ट्र पर्व पर बहने वाला,
ये कोरा जज़्बात नहीं है।
वायू सेना का बन हिस्सा,
सपनो को पूरा कर लूँगी,
रही अधूरी कथा हमारी,
उसको लिख पूरा कर दूँगी।
-०-
पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)
-0-


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जाड़े की धूप (कविता) - रीना गोयल

जाड़े की धूप
(कविता)
कँपकपाती सर्दियों में ,धूप जाड़े की लुभाई ।
रौशनी बिखरी हवा में ,रश्मियां रवि की सुहाई ।

थरथराता था बदन जब ,शीत झोंके चल रहे थे ।
शूल सी उनकी चुभन में ,रात दिन बस ढल रहे थे ।

वो दिसम्बर का महीना ,ओस में अवनी नहाई ।
रौशनी बिखरी हवा में ,रश्मियां रवि की सुहाई ।

किन्तु बर्फीले दिनों में ,पीर हृद की सह रहा मन ।
सर्दियां मुझको सताएं ,क्यों अकेले रह रहा मन ।

शर्म से तब लजलजाती इक दुल्हन सी धूप आयी ।
रौशनी बिखरी हवा में ,रश्मियां रवि की सुहाई ।
-०-
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)

-०-

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उनके सँग जीना (ग़ज़ल) - रेणू अग्रवाल


उनके सँग जीना
(ग़ज़ल)
उनके सँग जीना मर जाना अच्छा लगता है।
दुनिया में आये कुछ कर जाना अच्छा लगता है।

वहशत सी हुई है शोहरत पाने की
नगमा गीत ग़ज़ल सुनाना अच्छा लगता है।

महफ़िल सज गई है अब चले आओ सनम
तुम्हे देखकर गुनगुनाना अच्छा लगता है।

नज़रों में आपके जो शरारत नज़र आती है
उसे देख देख मेरा शरमाना अच्छा लगता है।

बज़्म में होकर भी जब ख़ुदको तन्हा पाती हूँ
तड़पकर मेरा गीत गाना अच्छा लगता है।

रेणू को आदत हो चुकी है तन्हा रहने की
तुम्हारा बार बार आना अच्छा लगता है।
-०-
पता:
रेणू अग्रवाल
हैदराबाद (तेलंगाना)

-०-



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