जनवरी की धूप
(कविता)
कलियों को छुई
फूलों को सहलाई
जनवरी की धूप
सबके मन भाई
दरवाजे का सांकल
हौले से बजाई
कुछ पास आकर
कानों में फुसफुसाई
हुआ बिहान है
अब छोड़ो रजाई
घर के बाहर
सब को बुलाई
ठंड से सहमी
बुढ़िया काकी
कमरे से बाहर
दौड़ी चली आई
दुम दबाके यूं
भागे कुहासे
जनवरी की धूप
सबके मन भाई।
-०-
पता:
मीरा सिंह 'मीरा'
बक्सर (बिहार)
बक्सर (बिहार)
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