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Sunday, 3 January 2021

जनवरी की धूप (कविता) - मीरा सिंह 'मीरा'

जनवरी की धूप
(कविता)
कलियों को छुई
फूलों को सहलाई
जनवरी की धूप
सबके मन भाई
दरवाजे का सांकल
हौले से बजाई
कुछ पास आकर
कानों में फुसफुसाई
हुआ बिहान है
अब छोड़ो रजाई
घर के बाहर
सब को बुलाई
ठंड से सहमी
बुढ़िया काकी
कमरे से बाहर
दौड़ी चली आई
दुम दबाके यूं
भागे कुहासे
जनवरी की धूप
सबके मन भाई।
-०-
पता: 
मीरा सिंह 'मीरा'
बक्सर (बिहार)


***
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माँ मुझे ना मार (कविता) -मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'


माँ मुझे ना मार
(कविता)
माँ, मैं भी कुल का मान बढाऊँगी ।
माँ ,मैं भी रिश्तों के बाग सजाऊंगी।।
माँ,मुझे कोख में हरगिज न मारना।
माँ, मैं भी तेरी परछाई बन जाऊँगी ।।

माँ, क्या मैं कोख में अपनी मर्जी से आई ।
तुमसे जुदा करने वालों से तो जरा पूछ ।।
घनघोर- घटा बिन, कब बिजली चमके।
ये कोख से जुदा करने वालों से पूछ।।

माँ, मैं जब तेरी कोख में समायी ।
क्या दोष है मेरा,ये तो बता माँ।।
सूरज निकले बिन कब होता है सवेरा।
रात होने पर ही अंधेरा होता है, माँ।।

माँ, मेरी किस्मत तो मैं साथ लेकर आई।
मैं जग में तेरी परछाई बन जी लुंगी।।
ना करना कभी मुझे तूँ मारने का पाप।
आने दे जग में ,तेरा दूध ना लजाउंगी।।

बेटे-बेटी में ना करो तुम अब अन्तर।
भैया के राखी मैं ही आकर बांधूंगी।।
माँ,ये बात दादा-दादी को तुम बतलाना।
माँ, मैं राष्ट्र-समाज को दिशा दिखाउंगी ।।
-०-
मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'
मोहल्ला कोहरियांन, बीकानेर

-०-

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