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Saturday, 24 October 2020

हत्या (कहानी) - डॉ. दलजीत कौर

 

हत्या
(कहानी) 
लगभग एक महीने से वह बिस्तर पर पड़ी थी |कमर दर्द के कारण डॉक्टर ने उसे एक महीना और 15 दिन बैड रेस्ट के लिए कहा था |शरीर बेशक स्थिर पड़ा था पर मन उतना ही अस्थिर |जाने यादें उसे कहाँ -कहाँ ले जाती |दवाई के कारण बीच -बीच में नींद आ जाती तो वह समझ भी न पाती कि यह सपना है या सच में घटित हो रहा है |
अक्सर माँ बचपन में एक किस्सा सुनती कि उसके जन्म के समय घर में कितनी ख़ुशी मनाई गई |उस समय में जब लड़कियों को पत्थर कहा जाता था ,उसके जन्म की ख़बर सुन कर उसके पिता ने नर्स को ख़ुशी से पैसे दिए थे |नर्स ने हैरान हो कर पूछा भी -"आपको पता है आपके यहाँ बेटी पैदा हुई है बेटा नहीं |"
माँ गदगद होकर कहती कि तब तेरे पिता ने नर्स से कहा -"हमें बेटी होने की ख़ुशी है |"
बड़ा भाई भी उसके जन्म पर बेहद प्रसन्न हुआ था क्योंकि उसके मित्र के घर कुछ समय पहले एक छोटी बहन आई थी |वह अपने माता -पिता के प्रति नतमस्तक हो जाती जब-जब कन्याभ्रूण हत्या के बारे में सुनती या पढ़ती |बार -बार मन में विचार आता कि कितना कष्टकारी होता होगा टुकड़े -टुकड़े हो कर मरना |
बाहर एक तेज़ रफ़्तार मोटरकार निकली तो आवाज़ से उसका दिमाग जैसे सचेत हो गया |उसे याद आया कि होश संभालते -संभालते कैसे उसके नाज़ुक कंधों पर घर की जिम्मेदारी भी सवार होती चली गई |माँ अकसर बीमार रहती थी और काम करना तो लड़कियों का काम है |घर में यही धारणा थी |इसलिए भाई को कोई काम करने को नहीं कहा जाता था |वह तो लड़का है |मगर उसे अहसास दिलाया जाता कि वह सेवा करने के लिए ही पैदा हुई है |माता -पिता ,दादी -दादा और भाई की सेवा |उनकी सेवा को तत्पर हर समय हाज़िर |बचपन में कभी समझ ही नहीं पाई कि हमेशा भाई -बहन की आपसी लड़ाई में वही कसूरवार क्यों होती थी |क्यों भाई को माँ अपने आँचल में छिपा लेती थी |अगर वह भाई को कुछ भला -बुरा कहती तो माँ पंजाबी में जो कहती वह आज भी उसे ज्यों का त्यों याद है -"इहदे बिना तू फूकनी आं मैं ?"अर्थात इसके बिना क्या तुझे जलाना हैमैंने |क्यों भाई को बाहर घूमने की छूट थी और उसे बस घर में ही रहना था |क्यों इज़ाज़त नहीं थी उसे किसी सखी -सहेली के घर जाने की ?क्यों मनाही थी उसे खुलकर बात करने की ,हंसने की ?इस क्यों का उसे कहीं कोई उत्तर नहीं मिलता था |
अतीत एक दृश्य बन सामने खड़ा हो गया और ले गया 20-25 साल पीछे पिता भाई को इंजिनियर बनाना चाहते थे |परन्तु भरसक प्रयत्न के बाद भी जब भाई एक -एक कक्षा में दो -दो साल लगा रहा था तब उसने अच्छे अंकों में बी .ए .पास कर एम .ए .करने की इच्छा ज़ाहिर की |पिता का वह वाक्य खंजर -सा जिगर में उतर गया |जब उन्होंने कहा -कितने पैसे लगेंगे ?कल को तेरी शादी भी करनी है |वह सकते में आ गई |उस दिन वह थोड़ा -सा मर गई |
पिता सोचते थे कि लड़की का ग्रेजुएट होना बहुत है |अब उसकी शादी कर दी जाए |परन्तु माँ की बीमारी के कारण कोई घर सँभालने वाला चाहिए |इसलिए भाई की शादी से पहले उसकी शादी नहीं कर सकते |इसलिए उसने पहले एम .ए .की फिर एम .फिल भी |मगर अब उसकी शादी ही सबसे बड़ी समस्या हो गई |पिता चाहते थे कि कहीं भी किसी तरह भी उसकी शादी हो जाए |उनकी नाक का सवाल था |समाज क्या कहेगा ?पिता अपने मित्र के अनपढ़ लड़के से शादी करने को राज़ी हो गए |उसके ज़रा से विरोध पर पिता ने घर का सामान तोड़ डाला और ज़ोर -ज़ोर से चिल्लाने लगे -"अब मैं इसका क्या करूं ?मरती भी तो नहीं |"उसदिन वह थोड़ा-सा और मर गई |
पंखे में टक -टक की आवाज़ हुई |वह स्वयं से ही बात करते हुए बड़बड़ाने लगी -"शादी ही जीवन का लक्ष्य नहीं है |काश !मुझे नौकरी करने दी होती |"
वह चाहती थी नौकरी करना |परन्तु घर की ऐसी परम्परा नहीं थी |पहले खानदान में किसी लड़की ने नौकरी नहीं की थी |माँ ने कहा -"जो करना है अपने घर जा कर करना |हमारे घर नहीं |"
उसदिन वह बेघर हो गई |उसे नहीं पता था कि उसका घर कहाँ है ?वह ख़ुशी जो उसके पैदा होने पर समाज को दिखाई गई थी |वह कहीं खो गई थी|उसदिन उसे समझ आया कि जन्म पर ख़ुशी इसलिए थी क्योंकि घर में पहले से बेटा था |इसका स्पष्टीकरण तब हुआ जब भाई के घर में दूसरी बेटी पैदा होने पर मातम और उसके बाद कन्या भ्रूण हत्या हुई |उसदिन वह थोड़ा -सा और मर गई |
घंटी बजी और कामवाली बाई अंदर आ गई |उसकी 12-13 वर्ष की बेटी को देखकर उसने पूछा - "यह आज स्कूल नहीं गई ?"
उत्तर मिला -"बस अब नहीं जाएगी |हमारे में 15-16 बरस में शादी कर देते हैं |"
उसे समझने के लहज़े में कहा -"तो अभी दो -तीन साल और पढ़ने दे |दसवीं तो कर लेने दे |"
फिर सधा -सा जवाब -"अब मेरे साथ काम सीखेगी |"
मन में सोचा -"क्या अपने जीवन पर इसका कोई हक़ नहीं |महाभारत में कृष्ण ने तो कहा है कि सभी को अपना जीवन अपने अनुसार जीने का हक़ है यदि आप दूसरों को जीने नहीं देते तो यह पाप है |"
दूसरे ही पल मन ने कहा -"तुम्हें कब था ?"
गाय के गले में पड़ी रस्सी अपनी मर्ज़ी से पिता ने किसी और के हाथ में पकड़ा दी |जांचा -परखा कि उसका वर भाई से ज्यादा पढ़ा -लिखा या धन -सम्पत्ति में उनसे बढ़ कर न हो |भाई और मायके का महत्त्व सदा उसकी ज़िंदगी में बढ़ कर रहे |यह उसके मन का भ्रम नहीं था |यह तब पता चला जब उसके पति ने बड़ी कार ली |माँ ने झिड़कते हुए कहा -"पहले भाई को कार लेने देती |"
उसे समझ नहीं आया कि पति से क्या कहे ?कैसे कहे ?जब तक मेरा भाई कोई चीज़ नहीं खरीद लेता तब तक तुम कुछ नहीं खरीद सकते |
पास ही मेज़ पर उसकी डायरी पड़ी थी |उसे उठा कर लेटे -लेटे ही वह लिखने लगी |"समानता कुछ नहीं |एक मखौटा है जो समाज में स्वयं को आदर्श दिखने के लिए पहना जाता है |कानून ने बेशक समानता का अधिकार दिया है लड़की -लड़के को |परन्तु समाज कब इस समानता को अपनाएगा इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल है |”
वह सोचने लगी -"समानता का अधिकार देकर कानून ने लड़कियों के साथ अच्छा किया या नहीं ?इससे भावनात्मक रूप में तो उनका बुरा ही हुआ है |अपने ही माता -पिता ,भाई -भाभी उन्हें शक की नज़र से देखने लगे हैं |उन्हें यही चिंता सताती रहती है कि कहीं लड़की अपना हक़ न मांग ले |"
लिखते -लिखते उसकी आँखे नम हो गई |उसदिन वह पूरी तरह मर गई जब भाई ने उसे हिदायत दी कि वह मायके कम आया करे |पिता ने अपनी शंका ज़ाहिर करते हुए कहा -"न जाने तेरे पति के मन में क्या है ?शायद उसकी नज़र हमारी संपत्ति पर है |"
माँ ने तो धमकाते हुए कहा -"तू जबरदस्ती लेना चाहेगी तो हम कुछ नहीं देंगे |"
कामवाली बाई ने कमरे की लाइट जलाई तो साथ ही टी .वी .भी चल पड़ा |उसमें कन्या पढ़ाओ -कन्या बचाओ का विज्ञापन आ रहा था |एंकर बोल रही थी -"कन्या भ्रूण हत्या पाप है |"
मगर आज पहली बार उसे कन्या भ्रूण हत्या पाप नहीं लगा |उसे लगा कि तिल -तिल मारने से अच्छा है |एक बार में हत्या कर दी जाए |अपनों द्वारा इस तरह मारना हत्या से कम नहीं |
हत्या !हत्या !हत्या ! देर तक यह शब्द उसके दिल और दिमाग में गूंजता रहा |
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संपर्क 
डॉ दलजीत कौर 
चंडीगढ़


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दिनेंद्र दास (लघुकथा) - दिनेंद्र दास

 

तोहफा
(लघुकथा)

"मैं उसे बैठे-बैठे नहीं खिला सकती...! कह दो बुढ़िया कहीं चली जाए।"
" कैसी बातें करती हो क्रांति ! मां कहीं चली जाएगी तो लोग क्या सोचेंगे? जयदेव ने कहा।"
" आप नहीं कह सकते तो मैं ही कह देती हूं ।" कहती हुई क्रांति अपनी सास के कमरे में गई और बोली-" कल शाम को हम लोग हरिद्वार कुंभ मेला जा रहे हैं, तब तक आपको कल जयदेव शांति दीदी के घर छोड़ देगा। हमें आने में विलम्ब हो सकता है ,जब तक आपको लेने नहीं आएंगे तब तक वहीं रहिए। आखिर शांति भी तो तुम्हारी संतान है उसे भी सेवा का अवसर मिलना चाहिए।"
मां ने अपने बेटे- बहू के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाई और बोली-" मेरी तबीयत ठीक नहीं है बेटा ,चल फिर नहीं पाती हूं। इस उम्र में कहीं नहीं जाऊंगी। मैं तो यहीं मरूंगी।"
क्रांति ने जयदेव का नाकोदम कर दिया।अंतत: बूढ़ी मां को जयदेव उनकी बेटी शांति के यहां छोड़ आये। शांति तो गदगद हो गई मानो उन्हें तो देवी मां मिल गई ।वह मां की अंतिम सेवा समझ कर तन मन धन से करने लगी । बस , दो दिन ही हुए थे। सरकार की तरफ से नोटिस आई वृद्धों के लिए वृद्धा पेंशन दिया जाएगा और कमरा एवं शौचालय का निर्माण किया जाएगा। इसके लिए वृद्धों को आवेदन देना है।
क्रांति बोली- "पता नहीं बुढ़िया कब मर जाएगी! उन्हें तुरंत ही बुला लाइए नहीं तो ,कमरा और शौचालय नहीं बन पाएगा । वृद्धा पेंशन भी हाथ से निकल जायेगा।"
जयदेव ने फौरन अपनी मां को लिवा लाया।वृद्धा मां की साइन से कुछ ही दिनों में कमरा एवं शौचालय तैयार हो गया। निर्मित कमरा का उद्घाटन भी कर नहीं पाई थी, बीच में ही बुढ़ी मां चल बसी।
बहू के मुख से आवाज निकली "अच्छा हुआ बुढ़िया अब मरी । दो माह पहले मर जाती तो कमरा भी नहीं नसीब होता।"
अंतिम संस्कार में ले जाने के लिए मां की अर्थी उठाई तो मां के सिरहाने पर एक पत्र मिला। जिसमें लिखा था... प्रिय बेटा जयदेव! तुम्हारे बाप के नाम की कुल संपत्ति उनके परलोक सिधारने के बाद वह सम्पत्ति तुम्हें स्वत:मिल गई ,पर मेरे नाम पर कुछ भी नहीं था ,जो तुम्हें दे सकूं इस दुनिया से विदा लेते समय मैं तुम्हें एक तोहफा कमरा एवं शौचालय दे रही हूं। पर हां,ध्यान रखना कि भगवान ऐसा ना चाहे कि तुम्हारे बेटे बहू तुमसे भी ऐसी धारणा रखें जैसे कि तुम मेरे लिए रखे थे... कमरा एवं शौचालय। पत्र पढ़कर जयदेव एवं क्रांति फफककर रो पड़े ।

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पता
दिनेंद्र दास
बालोद (छत्तीसगढ़)

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तू जीत जायेगा (कविता) - गजानन पाण्डेय


तू जीत जायेगा
(कविता)

आग में तपकर, सोना कुंदन का रूप लेता है
संघर्ष के बल पर ही सफलता हाथ लगती है।
दीवा - स्वप्न है बेकार
पुरुषार्थ को बनाए हथियार
लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर,
अपने  सपनों को हकीकत का रूप दे
न रुको, न थको , बस आगे बढ़ो
राह की विपत्तियों से न डरो
मन में दृढ़ संकल्प हो
ईश्वर पर भरोसा
व खुद  पर विश्वास
तू जंग जीत  जायेगा
आज की कोशिशों से,
तू कल को बनायेगा ।

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पता
गजानन पाण्डेय
हैदराबाद (तेलंगाना)

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