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Thursday 30 July 2020

तेरे मन में क्या है मौला (कविता) - ज्ञानवती सक्सेना

तेरे मन में क्या है मौला
(कविता)
नेत्र तीसरा तूने खोला
तेरे मन में क्या है मौला

तेरी इनायत समझ न पाया
औंधा रहा खुमार में मौला

तूफ़ान में फंसी कश्ती मेरी
नहीं किनारा दिखता मौला

खुद को खुदा समझ बैठा था
नादान समझ बक्क्ष दे मौला

मंदिर मस्जिद तुझको ढूंढा
झांक न पाया मन में मौला
ज्ञानवती सक्सेना

बेरहम हुआ था ज़ालिम जमाना
अब कैसे कहूँ रहम की मौला
-०-
पता : 
ज्ञानवती सक्सेना 
जयपुर (राजस्थान)
-०-

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सफलता की कुंजी (लघुकथा) - माधुरी शुक्ला

सफलता की कुंजी
(लघुकथा)
स्कूल में गणित की क्लास में मिश्रा सर पढा रहे हैं,सभी बच्चों बड़े ही ध्यान से उनकी बातों को सुन रहे हैं दरवाजे के पास बैठे हुए राज का ध्यान बार बार बाहर की और जा रहा है मिश्रा सर भी उसे ही देख रहे कि उसका ध्यान ब्लैकबोर्ड की और नही है।अचानक से सर राज से प्रशन पूछने लगते जिससे राज हड़बड़ा जाता है । राज आखिर बाहर ऐसा क्या है ?जो बार बार तुम बाहर देख रहे हो !!

सर जी जमीन पर बाहर एक इल्ली पड़ी है।वो किसी के भी पैरों के नीचे आ सकती है। क्यो ना हम उसे उठा ले ? मिश्रा जी के साथ साथ बाकी बच्चे भी उस इल्ली के पास जाकर देखने लगे जाते है । कुछ बच्चे उसेहाथ लगाने वाले ही होते की तभी मिश्रा सर उन्हें रोक देते है "अरे नही '" कोई भीइसे हाथ नही लगाएगा । यह तितली की इल्ली है । यह अपने खोल से आपही बाहर आएगी । क्यो सर ?? इसे तो बहुत ही तजलिफ़ हो रही होगी ,अगर हमने नही निकाला तो यह बाहर ही नही आ सकेगी। बाहर आनेमें तो इसे कितनी मुश्किल होगी। क्यो ना हम इसकी मदद कर दे राज बोला !! तुम्हारा कहना सही है ,लेकिन अगर इल्ली ने खुद बाहर आने में संघर्ष नही किया और बाहर आ गयी तो यह मर जाएगी और इसके विपरीत यदि यह बिना किसी की सहायता से बाहर आती है तो यह जी जाएगी।अपने खोल सेबाहर आने के लिए जो संघर्ष करती है उसकी वजह से तितली के पंखों को मजबूती मिलती है। इसके बाद मिश्रा सर बच्चो से बोलते है इसी तरह तुम सभी को भी जीवन मे स्वयं संघर्ष करना चाहिए,यह संघर्ष ही जीवन की सफलता की कुंजी है ।
-०-
पता:
माधुरी शुक्ला 
कोटा (राजस्थान)


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वो माँ हिन्दी भाषा है (कविता) -शिवलाल गोयल 'शिवा'

वो माँ हिन्दी भाषा है
(कविता)
बहुत कवियों ने गुणगान किया है,
इसका इतिहास और गाथाएँ बहुत पुरानी है।
जिसके शब्दों की मिठास और ताकत किनसे  अनजानी है।
जिसको सुनते ही हर इक मानुष का हृदय तृप्त हो जाता है।।
वो माँ हिन्दी भाषा है, वो माँ हिन्दी भाषा है।
सहज,सरल,सुन्दर अक्षरों का मेल है हिन्दी,
पढने, पढाने और लिखने में अनमोल है     हिन्दी,
सहानुभूति व्यवहार, नैतिक आचरण है हिन्दी,
साहित्य की मुस्कान है,... (2)

शीत है हिन्दी, ग्रीष्म है हिन्दी।
वर्षा है हिन्दी, हर इक ॠतु है हिन्दी।।
उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम
भारतवर्ष की हर इक दिशा है हिन्दी।
भारत की भाग्य रेखा है हिन्दी।
वो माँ हिन्दी भाषा है,.... (2)

नदियों की कल्ल-कल्ल सी आवाज है हिन्दी।  
समन्दर की गहराई है हिन्दी।
हिन्द हिमालय से निकलती हुई रस धार है हिन्दी।
खेतों के खलिहानों में,
केसर के फसलों में है हिन्दी।
बाग-बगीचों की हरियाली है हिन्दी।
वो माँ हिन्दी भाषा है,.....(2)

सुबह की लालिमा है हिन्दी,
रात्रि की सितारों की सिम-सिमाती चांदनी है हिन्दी,
दुपहरी की तेज धुप है हिन्दी,
शाम-संवेरा है हिन्दी।
दीपक की जग-मग जलती ज्योति है हिन्दी।
अलग-अलग वर्ग, पंथ और जाति की एकजुटता बनाए रखती है हिन्दी,
वीरों के पराक्रम, अदम्य साहस और शौर्य है हिन्दी।
हर इक भारतवासी की आन-बान-शान है हिन्दी,
वो माँ हिन्दी भाषा है,....... (2)

पुष्प की सुगंध है हिन्दी।
हिन्दुस्तान की अंगराज है हिन्दी,
ज्ञान के मुकुट की ताज है हिन्दी।
शब्दों और संस्कृति का सिगार है हिन्दी।
भारत माता के आत्म-गौरव है हिन्दी।
संस्कृत से उदय हुई ये हिन्दी,
देवनागरी लिपि में
भारत की मान-सम्मान है हिन्दी।
मेरी कलम है हिन्दी, मेरा साहित्य है हिन्दी।
मेरा गुमान है हिन्दी, मेरी पहचान है हिन्दी।।
वो माँ हिन्दी भाषा है,....... (2)

बढते तकनिकी युग के दौर में,
क्युं है ये दुर्दशा हिन्दी भाषा की,
लोग आ रहें हैं अंग्रेजी के लुभाने में।
भारतीयों की जुबां पर होतें हुए भी हिन्दी,
क्यों अपना रहें हैं अंग्रेजी को।
मुझे है शिकवा ये,.....
हिन्दी राजभाषा है, राष्ट्रभाषा क्यों नहीं।
हम सब मिलकर के करेंगे हिन्दी का उत्थान...।।
-०-
शिवलाल गोयल 'शिवा'
बाड़मेर (राजस्थान)

-०-



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युग-वेदना का उपचार (कविता) - अशोक गोयल

अशोक गोयल
(कविता)
रोग -ग्रसित मानवता को है  आज जरुरत प्यार की, 
तन से  ज्यादा  आवश्यकता    है मन के उपचार की l
          तन -मन दोनों स्वच्छ -स्वस्थ हों
          तभी    बात   बन    सकती   है,
          अंतर   की   प्रफुल्ल्ता   ही   तो
          अधरों   पर  आ   खिलती     है,

मुख -मुद्रा   कैसे प्रसन्न   होगी, मन  के बीमार की l  
रोग- ग्रसित मानवता को है आज जरूरत प्यार की l

          ज्ञान  और  विज्ञान   साथ   चल
          समाधान        दे     सकते     हैं,
          तन -मन  दोनों  स्वस्थ रह सकें,
          वह     विधान    दे    सकते   हैं,

आवश्यकता आज मनुज को दोनों को आधार की l
रोग- ग्रसित मानवता को है आज जरूरत प्यार की l

          विकृत   चिंतन   के  तनाव  से
          आज   मनुजता      पीड़ित  है
          अंदर   से, बाहर     से    सारा
          वातावरण        प्रदूषित      है,

लानी होगी क्रांति आचरण की, व्यवहार -विचार की l
रोग- ग्रसित मानवता को है आज जरूरत प्यार की l

          आज   आस्थाहीन  मनुज  को
          रस       संजीवन         चाहिए,
          ज्ञान   और   विज्ञान    साधकों
          का           संवेदन       चाहिए,

दोनों मिलकर करें साधना मानव के उद्धार   की l
रोग -ग्रसित मानवता को है आज जरूरत प्यार की l
          सदविचार  -सत्क्रम     विश्व   में
          स्वर्ग -सृष्टि     कर    सकते    हैं,
          सद्भावना    के बादल    जग में,
          स्नेह -वृष्टि     कर   सकते     हैं ,

बुद्धि-भावना मिलकर करते सृष्टि, सुखी संसार की l
रोग -ग्रसित मानवता को है आज जरूरत प्यार की l
-०-
अशोक गोयल
हापुड़ (उत्तर प्रदेश)

-०-



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