तेरे मन में क्या है मौला
(कविता)नेत्र तीसरा तूने खोला
तेरे मन में क्या है मौला
तेरी इनायत समझ न पाया
औंधा रहा खुमार में मौला
तूफ़ान में फंसी कश्ती मेरी
नहीं किनारा दिखता मौला
खुद को खुदा समझ बैठा था
नादान समझ बक्क्ष दे मौला
मंदिर मस्जिद तुझको ढूंढा
झांक न पाया मन में मौला
ज्ञानवती सक्सेना
बेरहम हुआ था ज़ालिम जमाना
अब कैसे कहूँ रहम की मौला
बाह! हार्दिक बधाई है मैम सुन्दर रचना के लिये।
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