(कविता)
रोग -ग्रसित मानवता को है आज जरुरत प्यार की,
तन से ज्यादा आवश्यकता है मन के उपचार की lतन -मन दोनों स्वच्छ -स्वस्थ हों
तभी बात बन सकती है,
अंतर की प्रफुल्ल्ता ही तो
अधरों पर आ खिलती है,
मुख -मुद्रा कैसे प्रसन्न होगी, मन के बीमार की l
रोग- ग्रसित मानवता को है आज जरूरत प्यार की l
ज्ञान और विज्ञान साथ चल
समाधान दे सकते हैं,
तन -मन दोनों स्वस्थ रह सकें,
वह विधान दे सकते हैं,
आवश्यकता आज मनुज को दोनों को आधार की l
रोग- ग्रसित मानवता को है आज जरूरत प्यार की l
विकृत चिंतन के तनाव से
आज मनुजता पीड़ित है
अंदर से, बाहर से सारा
वातावरण प्रदूषित है,
लानी होगी क्रांति आचरण की, व्यवहार -विचार की l
रोग- ग्रसित मानवता को है आज जरूरत प्यार की l
आज आस्थाहीन मनुज को
रस संजीवन चाहिए,
ज्ञान और विज्ञान साधकों
का संवेदन चाहिए,
दोनों मिलकर करें साधना मानव के उद्धार की l
रोग -ग्रसित मानवता को है आज जरूरत प्यार की l
सदविचार -सत्क्रम विश्व में
स्वर्ग -सृष्टि कर सकते हैं,
सद्भावना के बादल जग में,
स्नेह -वृष्टि कर सकते हैं ,
बुद्धि-भावना मिलकर करते सृष्टि, सुखी संसार की l
रोग -ग्रसित मानवता को है आज जरूरत प्यार की l
-०-
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