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Saturday 18 April 2020

देश की बेटी निर्भया और प्रियंका (कविता) - दीपिका कटरे

देश की बेटी निर्भया और प्रियंका
(कविता)
काश ! अगर मैं
तेरे इंसानियत के पीछे छिपेे,
हैवान को पहचान पाती।
तो शायद ,
मैं आज तेरी हैवानियत का
शिकार न हो पाती।

काश ! अगर मैं
तेरे दिल में छिपी हुई ,
दरिंदगी को पहचान पाती।
तो शायद,
मैं तुझ जैसे दरिंदे से ,
अपनी लाज को बचा पाती।

काश ! अगर मैं
तेरे दिलों-दिमाग में चल रहे,
षड़्यंत्र को पहचान पाती।
तो शायद ,
मैं तेरे घिनोने षड़्यंत्र के खेल का
मुहरा न बन पाती।

काश ! अगर मैं
तेरे चेहरे के पीछे,
छिपे नकाब को पहचान पाती।
तो शायद ,
मैं अपने चेहरे के नकाब को
बेनकाब न होने देती।

काश ! अगर मैं
तेरी असलियत को पहचान पाती।
तो यूँ ,अकेले में बैठकर आँखों से
अनगिनत आँसू न बहा रही होती।

काश ! अगर खुदा तुने,
देश की बहन - बेटियों की,
दर्द भरी रोने की, चिल्लाने की,
सिसकने की, आवाज सुनी होती।
तो शायद आज निर्भया,प्रियंका,
जैसी देश की बेटियाँ,
धरती माता को लिपटकर रोते हुए,
अपनी मृत्यु को न अपनाती।
-०-
पता:
दीपिका कटरे 
पुणे (महाराष्ट्र)

-०-

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आओ, ऐसे दीप जलाएँ (कविता) - अशोक 'आनन'


आओ, ऐसे दीप जलाएँ 
(कविता)
आओ , ऐसे दीप जलाएं -
पी जो जाएं उर का तम ।

माटी के दीयों के बदले -
उर में प्रेम के दीप जलाएं ।
तम को गले लगाकर हम -
आओ , दीप - पर्व मनाएं ।

दर पर उनके दीप जलाएं -
छाया हो जहां गहरा तम ।

सड़कों पर ही बुझ न जाएं -
टिमटिमाकर जीवन - दीप ।
पानी जैसे इस जीवन को -
अमूल्य बना दें बनकर सीप ।

अपनी रोटी उन्हें खिलाएं -
भूख़ से तोड़ रहे जो दम ।

कैद करके रखी जिन्होंने -
रोशनी अपने महलों में ।
कुचल रहे हैं जो पैरों से -
नाज़ुक कलियां चकलों में ।

तनिक तरस न उन पर खाएं -
बनें दरिंदे जो पीकर रम ।
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (म.प्र.)

-०-




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प्रकृति कुछ कहती है (कविता) - शाहाना परवीन


प्रकृति कुछ कहती है
(कविता)
हरे - भरे वृक्षों से आवाज़ यह आती है,
हम में भी है जीवन याद यह दिलाती है।
चिड़िया चहकती बागों मे मीठा गीत सुनाती हैं,
पेड़ो पर रहती ये सब सुंदर सुर मिलाती हैं।
प्रकृति है बहुत अनमोल हम को यह बताती है,
इसकी रक्षा हमे ही करनी सीख हमे दे जाती है।
हरे - भरे वृक्षों से आवाज़ यह आती है,
हम में भी है जीवन याद यह दिलाती है।
उगता सूरज हम सबको आगे बढ़ने की प्रेरणा देता,
कठिनाइयों से ना घबराना तुम आगे ही बढ़ते रहना,
जीवन है चलने का नाम सुबह शाम चलते रहो,
हार के बाद मिलेगी जीत कहावत चरितार्थ हो जाती है।
हरे - भरे वृक्षों से आवाज़ यह आती है,
हम में भी है जीवन याद यह दिलाती है।।
पता -
शाहाना परवीन
मुज़फ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)
-०-

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