(कविता)
आओ , ऐसे दीप जलाएं -
पी जो जाएं उर का तम ।
माटी के दीयों के बदले -
उर में प्रेम के दीप जलाएं ।
तम को गले लगाकर हम -
आओ , दीप - पर्व मनाएं ।
दर पर उनके दीप जलाएं -
छाया हो जहां गहरा तम ।
सड़कों पर ही बुझ न जाएं -
टिमटिमाकर जीवन - दीप ।
पानी जैसे इस जीवन को -
अमूल्य बना दें बनकर सीप ।
अपनी रोटी उन्हें खिलाएं -
भूख़ से तोड़ रहे जो दम ।
कैद करके रखी जिन्होंने -
रोशनी अपने महलों में ।
कुचल रहे हैं जो पैरों से -
नाज़ुक कलियां चकलों में ।
तनिक तरस न उन पर खाएं -
बनें दरिंदे जो पीकर रम ।
-०-
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