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Saturday, 18 April 2020

आओ, ऐसे दीप जलाएँ (कविता) - अशोक 'आनन'


आओ, ऐसे दीप जलाएँ 
(कविता)
आओ , ऐसे दीप जलाएं -
पी जो जाएं उर का तम ।

माटी के दीयों के बदले -
उर में प्रेम के दीप जलाएं ।
तम को गले लगाकर हम -
आओ , दीप - पर्व मनाएं ।

दर पर उनके दीप जलाएं -
छाया हो जहां गहरा तम ।

सड़कों पर ही बुझ न जाएं -
टिमटिमाकर जीवन - दीप ।
पानी जैसे इस जीवन को -
अमूल्य बना दें बनकर सीप ।

अपनी रोटी उन्हें खिलाएं -
भूख़ से तोड़ रहे जो दम ।

कैद करके रखी जिन्होंने -
रोशनी अपने महलों में ।
कुचल रहे हैं जो पैरों से -
नाज़ुक कलियां चकलों में ।

तनिक तरस न उन पर खाएं -
बनें दरिंदे जो पीकर रम ।
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (म.प्र.)

-०-




***
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