घंटी ने प्यास बुझाई
(लघुकथा)
सुबह के समय संन्नाटा इतना गहरा था केवल चिड़ियों का कलरव सुनाई दे रहा था । लेकिन घर की खिड़की पर खड़ी सोच रही थी कि चिड़ियों कि मधुर आवाज भी अब मन को शांत नहीं कर पा रही है । पंद्रह दिन से खिड़कियों से झांकते मासूम चेहरे अब शोर नहीं कर रहे ना ही खाने की फरमाइश । संन्नाटे को चीरती घर में न्यूज की आवाज दिल को रह रह कर दहला जाती है । इधर घर में बूँद पानी नहीं बाहर वायरस का खतरा अभी टला नहीं है।बाहर निकल नहीं सकते ।
प्यास से व्याकुल बच्चों के चेहरे लटक चुके थे ।
कल्पना ! पानी तो बिल्कुल खत्म हो गया अब क्या करें ?
जीजी ! जान बचानी हैं तो घर में ही रहो लेकिन कल्पना दूध के बगैर तो बन जायेगी लेकिन पानी के बगैर कैसे......... पानी वाला भी तो नहीं आ रहा पानी के सारे बर्तन खाली हो गये है ।
नल से तो खारी पानी आता है क्या पीये ?
आस पास के मकानों में कोरोना वायरस के चलते सब लोग अपने गांव चले गए हैं ?
जीजी घर के पीछे सड़क के किनारे एक झोपड़ी बनी उसके साथ एक छोटा सा खेत है मुझे लगता है वाहां पीनें का पानी मिल सकता है
चल छत पर चलते हैं यह घंटी ले चलते है बजाने के लिए , कल्पना सुमन जीजी के साथ ऊपर आ गई देखा झोपड़ी के नजदीक एक आदमी बैठा है । कल्पना ने जोर जोर से पीतल की घंटी को बजाना शुरू कर दिया एक कैन को रस्सी की सहायता से छत से नीचे लटका दिया । आदमी ने घंटी की आवाज़ की दिशा में देखा तो कैन को लटका देख समझने में देर नहीं कि और थोड़ा नजदीक पहुंच गया । आदमी को आता देख कल्पना ने पूछा पीने का पानी मिल सकता है । हमारे पास पानी नहीं है आदमी ने सुना तो कुएं की बोरिंग से एक बाल्टी पानी ले आया कल्पना ने एक केन लटका दी थी उसमें आदमी ने पानी भर दिया ।
बहन जी जब जरुरत हो केन लटका कर इसी घंटी को बजा देना इस से वातावरण भी शुद्ध होगा और मैं आवाज सुनकर पानी भर दुंगा । ईश्वर करे यह आपदा की घड़ी जल्द समाप्त हो जाये। वर्ना स्थति भयावह हो सकती है।
-०-
पता:
अर्विना
-०-
No comments:
Post a Comment