(लघुकथा)
अपराध बोध की भावना के साथ जज साहब अपनी मां को वृद्धाश्रम छोड़ने गए। एडमिशन फॉर्म के साथ जरूरी फीस भी जमा कर दी। जज साहब ने कुछ रुपये देकर वृद्धाश्रम के मैनेजर के साथ दोस्ती कर ली और मां की अच्छी तरह से देखभाल करने के लिए सिफारिश कर दी। मैनेजर ने कहा-" साहब, चिंता मत कीजिए ।आपकी मां हमारी मां है। हम उनका पूरा ख्याल रखेंगे। समय-समय पर खाना और दवाई भी देते रहेंगे। अब आपको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।"
मैनेजर ने जज साहब से पूछा-" साहब,मां को वृद्धाश्रम में छोड़ने का कोई खास कारण ?"जज साहब ने आंखों में आंसू के साथ अपने दिल की बात करते हुए कहा -"मेरे घर में पत्नी और एक जवान बेटा और एक बेटी है। घर भी बहुत बड़ा है। लेकिन मेरी पत्नी का मां के साथ व्यवहार बहुत बुरा है। ना समय पर खाना देती है और ना दवाई। अब तो पत्नी के इशारे पर बच्चों ने भी मां के साथ बोलना बंद कर दिया है।यह सब कुछ देखकर मुझे बड़ा आघात लगता है। मां दिन भर रोती रहती है। मां की हालत मुझसे देखी और सही नहीं जाती। आखिर थककर मैंने मां को वृद्धाश्रम में छोड़ने का फैसला किया है। मैं अपराध बोध की भावना महसूस कर रहा हूं।"
जज साहब इतना बोलते ही रो पड़े। मैनेजर ने कहा -"आप तो विद्वान और न्यायाधीश है। कोर्ट में सत्य और तथ्य आधारित न्याय करते है। सबूत के आधार पर फैसला सुनाते है।न्यायाधीश होते हुए भी आप अपनी मां को न्याय दिलाने में असफल रहे है। आपके पास सारे सबूत हैं। आपने सब कुछ अपनी आंखों से देखा है। यदि आप अपनी मां को न्याय नहीं दिला सकते तो दूसरों को क्या न्याय देंगे?"
मैनेजर के इन शब्दों ने जज साहब को भीतर से झकझोर दिया। वह वापस घर लौटे।रात भर जागते रहे। अपना कमरा बंद करके दो दिन तक लेटे रहे। ना कुछ खाया और ना कुछ पिया। कोर्ट भी नहीं गए।
तीसरे दिन जज साहब कमरे से बाहर निकले। पत्नी और बच्चे तो घबराए हुए थे। पत्नी ने उन्हें खाने के लिए बुलाया। बच्चे भी उनका इंतजार करते रहे। जज साहब ने पत्नी को बुलाकर एक कागज उसके हाथ में थमा दिया। कागज की एक लाइन पढ़ते ही पत्नी के हाथों से थाली नीचे गिर गई। कागज में लिखा था कि मैं तुम्हें तलाक दे रहा हूं। बच्चों को बुलाकर कह दिया कि आज से मेरी सारी जायदाद और बैंक बैलेंस सब कुछ आपका है। मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।
बच्चों ने जबरदस्ती करके उन्हें कुर्सी पर बैठाया। हाथ जोड़कर इसका कारण पूछा तब जब साहब आंखों में अश्रुधारा के साथ बोले -"मेरी 70 साल की वृद्ध मां को वृद्धाश्रम छोड़ कर आया हूं। अजनबी लोगों के बीच छोड़ कर आया हूं। मां का क्या होगा इसका विचार करते ही शरीर कांपने लगता है। मां को खाना कौन देगा ?समय-समय पर दवाई कौन देगा ?मैं कुछ सोच ही नहीं सकता और आप सब मुझे कारण पूछ रहे हैं ?शर्म नहीं आती आपको ?आप सब संवेदनाहीन बन गए हैं।आप में से किसी ने भी मां के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया।इतना ही नहीं बात करना भी छोड़ दिया। आप सब यह भूल गए कि पूरा शहर इस जज को सलाम करता है। इस जज को बनाने में मां ने कितनी मेहनत की होगी ।पिताजी की मौत के बाद भी मां ने हीमत नहीं हारी ।उसने दिन-रात ट्यूशन किए।अपने अरमानों को दबाकर मुझे पढ़ाया ।भगवान जैसी मां को मैं संभाल नहीं सका और उसे वृद्धाश्रम छोड़ आया।"
अपने आप को कोसते हुए जज साहब बोले -"दूसरों को न्याय देने वाला जज आज अन्याय करके हार गया।मैं जज नहीं बल्कि एक बहुत बड़ा गुनहगार हूं। मैंने गुनाह किया है । मुझे शायद कानून तो माफ कर देगा किंतु ईश्वर के न्यायालय में मुझे माफी नहीं मिलेगी ।अब मैं अपने गुनाह का प्रायश्चित करने जा रहा हूं ।मेरा सर्वस्व आपको सौप रहा हूं ।अब मैं मां के साथ आश्रम में रहूंगा और आश्रम में रहने वाले वृद्धों की सेवा करूंगा।"
जज साहब ने अपनी पत्नी से कहा -"तूने मेरी मां को वृद्धाश्रम भेजा है।तू भी एक मां है। कल तुम्हारे बच्चे भी तुम्हें वृद्धाश्रम भेजेंगे तब तुम्हें मेरे इन शब्दों का अर्थ समझ में आएगा।" इतना कहकर जज साहब वृद्धाश्रम जाने के लिए घर से निकल पड़े।
आधी रात को जज साहब को वृद्धाश्रम में देखकर सब चौक गए ।मां के कमरे में जाकर देखा तो मां सोई हुई थी। नजदीक जाकर देखा तो मां पूरे परिवार की तसवीर को अपनी छाती से लगा कर रोती रोती सो गई थी। आश्रम के सभी लोग भी जाग गए क्योंकि पीछे जज साहब की पत्नी और उनके बच्चे भी आ रहे थे। उन लोगों को भी महसूस हो रहा था कि उन्होंने बहुत बड़ा पाप किया है और मां को विनती कर रहे थे कि हमें माफ कर दे। हमसे बहुत बड़ा पाप हो गया है। हमें माफ कर दे और वापस घर लौटे।
तब आश्रम का एक कर्मचारी बोला-"आपने मां को बहुत दुख दिया है ।क्या पता घर जाकर आप फिर से उनके साथ बुरा बर्ताव शुरू कर दे !यह सुनकर जज साहब की पत्नी के दिल को गहरी चोट लगी ।वह बोली-"बहन जी ,हम कबूल करते हैं कि हमने बहुत बड़ा पाप किया है लेकिन अब हम मां को मारने नहीं नया जीवन देने के लिए आए हैं ।आश्रम के सभी बुजुर्गों और वृद्धों की आंखों में आंसू थे। सभी रो पड़े ।खुशी के आंसू के साथ सभी ने जज साहब को प्रणाम करके वृद्धाश्रम से विदा किया।
"मां!तुम्हारे ऋण को मैं कैसे चूका पाउंगा? यदि तू मुझसे नाराज़ है तो भगवान भी मुझ पर कैसे प्रसन्न होगा?"
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