Thursday, 14 May 2020
जिंदगी तेरा कोई पता नहीं (कविता) - राजीव डोगरा
जिंदगी तेरा कोई पता नहीं
(कविता)
ज़िंदगी तेरा कोई पता नहीं
कब आती हो और
कब चली जाती हो,
लोग सोचते हैं शायद
किसी का कसूर होगा,
मगर आती हो तो
हज़ारो बेकसूरों को भी
अपने साथ ले जाती हो।
कोई तड़फता है
अपनों लिए
कोई रोता है,
औरों के लिए
पर तुम छोड़ती नहीं
किसी को भी
अपने साथ ले जाने को।
जब मरता है कोई एक
तो अफ़सोस-ऐ-आलम
कहते है सब
पर जब मरते है हज़ारों
तो ख़ौफ़-ऐ- क़यामत
कहते हैं सब।
तू भी कभी
तड़फती रूहों को
अपने गले लगाए,
ज़रा रोए कर
मरते हुए किसी चेहरें को
खिल-खिला कर
ज़रा हँसाए कर।
मानता हूँ की ख़ौफ़
तेरे रोम-रोम में बसा हैं
फिर भी किसी मरते हुए
इंसा के माथे को चूम
ज़रा-ज़रा सा मुस्काया कर।
ज़िंदगी तेरा कोई पता नहीं
कब आती हो और
कब चली जाती हो।
प्रेषित कर्ता : राजकुमार जैन राजन, मच्छिंद्र भिसे
सृजन महोत्सव
at
Thursday, May 14, 2020
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कविता के बाजार में (कविता) - अमित खरे
कविता के बाजार में
(कविता)
आओ संयोजक संयोजक खेलें कविता के बाजार में
जुमले और चुटकुल्ले खेलें कविता के बाजार में
आओ अपना गैंग बनाएं कविता के बाजार में
मिलकर पैसा खूब बनाएं कविता के बाजार में
आओ नई दुकान लगाएं कविता के बाजार में
कवियत्री को ढाल बनाएं कविता के बाजार में
दो अर्थी संवाद करेंगे कविता के बाजार में
घर अपना आवाद करेंगे कविता के बाजार में
दिल्ली वाला गैंग चलेगा कविता के बाजार में
कोई ढिंन चिक ढैंग चलेगा कविता के बाजार में
कविता को नीलाम करेंगे कविता के बाजार में
हर दिन नया जाम करेंगेकविता के बाजार में
जी भर चिल्ला चोंट करेंगे कविता के बाजार में
नव अंकुर का घोंट करेंगे कविता के बाजार में
पाक पे झण्डा गाड़ेंगे कविता के बाजार में
जड़ से उसे उखाड़ेंगे कविता के बाजार में
कविता चोरी की पढ़ते हैं कविता के बाजार में
खेल कमीशन का करते हैं कविता के बाजार में
गज़ल नही है, गीत नही है कविता के बाजार में
कोई किसी का मीत नही है कविता के बाजार में
सम्मानों के ठेके होते कविता के बाजार में
कुछ लेके कुछ देके होते कविता के बाजार में
कविता के दुर्दिन हैं जारी कविता के बाजार में
मंचों पर हैं खड़े मदारी कविता के बाजार में
गुर्गे पालनहार खड़े हैं कविता के बाजार में
उल्लू लिये सितार खड़े हैं कविता के बाजार में
झूठों के सरदार खड़े हैं कविता के बाजार में
कितने नटवरलाल खड़े हैं कविता के बाजार में
सरकारी आयोजन हथियाना कविता के बाजार में
सबको बांटो दाना दाना कविता के बाजार में
केवल सत्ता के चारण हैं कविता के बाजार में
चाटुकारी उच्चारण है कविता के बाजार में
घूम रहे हैं बने प्रवक्ता कविता के बाजार में
अपने अपने दल के वक्ता कविता के बाजार में
चैनल पर ताली पिटवाते कविता के बाजार में
हिन्दी की हिन्दी करवाते कविता के बाजार में
कोई विधि विधान नही है कविता के बाजार में
कोई संत महान नही है कविता के बाजार में
प्रेषित कर्ता : राजकुमार जैन राजन, मच्छिंद्र भिसे
सृजन महोत्सव
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Thursday, May 14, 2020
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