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Thursday, 5 December 2019

यादों में बस जाएगा (कविता) - लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

यादों में बस जाएगा
(कविता)
इस तन पर क्यूँ! इतराता है,
जो मिट्टी में मिल जाएगा।
कुछ ऐसे सद्कर्म करें हम,
जो यादों में रह आएगा।।

जीवन में जो अर्जित संपत्ति,
सब धरा यहीं रह जायेगा।
जो बोले सबसे मीठे बोल,
बस! यादों में बस जाएगा।।

अपनों पर सदैव विश्वास करें,
प्रगति पथ बनता जाएगा।
सत्य का सदा अनुसरण करें,
जीवन में निखार आएगा।।

मात पिता की सेवा कर लें,
सारा दुःख मिट जाएगा।
अच्छे संस्कार बच्चों को दें,
उनका जीवन बन जाएगा।।

माँ के चरणों में विराजे जन्नत,
पिता ने हमको योग्य बनाया।
भाई को प्यार दें लक्ष्मण जैसा,
घर मंदिर जैसा बन जाएगा।।

पत्नी जीवन भर साथ निभाए,
मुझसे उसको न दुःख पहुँचे।
मन से उसका सम्मान करें,
जीवन सुखमय हो जाएगा।।

मेरे जीवन में जो सच्चा मित्र,
वह सुख दुःख साथ निभाएगा।
हम भटक रहे फ़र्ज से अपने,
वह सत्पथ को दिखलाएगा।

सुंदर सा जीवन हमें मिला,
मुझसे न किसी को दुःख पहुँचे।
वर्षों तलक मुझे याद रखें,
जो मुझको अमर कर जाएगा।।
-०-
लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
स्थायी पताबस्ती (उत्तर प्रदेश)



-०-
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'होली' (हास्य व्यंग्य कविता) - राम नारायण साहू 'राज'


'होली'
(हास्य व्यंग्य कविता)
मैंने पत्नी से बोला - इस बार होली को धूमधाम से मनाएंगे।
पहले होलिका को जलाकर, फिर रंग गुलाल लगाएंगे।।
पत्नी तपाक से बोली - अपने बातो का पिटारा खोली।
छज्जे में रखी लकड़ी को हाथ मत लगाना।
नही बरसात में आपको , बनाना पड़ेगा खाना।
मैंने कहाँ सुन गुड्डा और गुड्डी की अम्मा।
मैंने पहले से जुगाड़ कर लिया है कचरा और खम्बा।
इस बार शहर में फैले कचरे की होली हम जलाएंगे।
गंदगी के साथ साथ , अंदर छुपे शैतान को भी भगायेंगे।
पत्नी की सहमति मिलने पर , होली जलाई गई।
और पत्नी द्वारा मिठाई भी मगाई गई।
दूसरे दिन जब मैं , रंग गुलाल लेकर घर से निकला।
मैं पत्थर दिल आदमी, बर्फ की तरह पिघला।
जब आपने दोस्त को, सलवार सूट में पाया।
थोड़ी देर के लिए मैं भी चकराया।
मैंने उससे एक सवाल पूछ डाला।
अरे तूने अपना शर्ट और पेंट क्यो निकाला।
दोस्त बोला ये मेरे यार मेरी बातों को ध्यान से सुन।
तू भी कोई रंग बिरंगी साड़ी को चुन।
तू मेरी भाभी, मैं तेरी देवरानी।
तभी तो रंग खेलने आएगी पड़ोसी सयानी।
बात उसकी जम गई और बात मैंने मान ली।
ये बात पड़ोसी वाली जान ली।
छत के ऊपर से ही ऐसा कर दी कमाल।
इसके बाद मत पूछो भाई, कपड़े भी लाल और बदन भी लाल।
अच्छे से शुरू हुई, रंग हुड़दंग की शुरुआत।
ये होली हमेशा रहेगी याद।
पूरे गांव में खूब होली खेली गई।
लेकिन कही कही दरूहो की गाली भी झेली गई।
शाम को मैंने दोस्त से पूछा और अब क्या करबानी है।
उसने कहा चल मेरे घर बम्फर और बिरयानी है।
साथ में पियेंगे और बिरयानी खाएंगे।
रातभर होली के फाग सबसे गवाएंगे और गाएंगे।
और फिर एक बार फिर से होली का रंग जमाया गया।
फाग भी सुनाया और रंग भी लगाया गया।-०-
राम नारायण साहू 'राज'
रायपुर (छत्तीसगढ़)

-०-



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शूरवीर महाराणा प्रताप सिंह (आलेख) - डॉ गुलाब चंद पटेल

शूरवीर महाराणा प्रताप सिंह
(आलेख)
महाराणा प्रताप सिंह उदयपुर मेवाड़ के सिसोदिया राजपूत वंश के राजा थे, उनका नाम इतिहास में वीरता और द्रढ़ प्रण के लिए अमर हे, उन्होने कई सालो तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया था, उन्होने मुगलॉ को कई बार युद्ध में भी हराया था, उनका जन्म 9 मे 1540 मे ई. स. को हुआ था, राजस्थान के कुंभलगढ़ मे महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जसवंत कंवर के घर हुआ था,
महाराणा प्रताप सिंह का जन्म लेखक विजय नेहरा के अनुसार उनका जन्म ननिहाल में मारवाड़ मे हुआ था, हल्दी घाटी युद्ध 1576 मे हुआ था, इस युद्ध में 20,000 राजपूतों को साथ लेकर महाराणा प्रताप सिंह ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के 80,000 की सेना का सामना किया गया था, शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप सिंह को राजा मानसिंह ने अपने प्राण देकर बचाया था, और महाराणा प्रताप सिंह को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला था, शक्ति सिंह ने अपने अश्व देकर महाराणा प्रताप सिंह को बचाया था, अश्व चेतक की अंत में मृत्यु हो गई थी, हल्दी घाटी का युद्ध केवल एक दिन चला था परंतु इस मे 17000 लोग मारे गए थे, मेवाड़ को जीतने के लिए अकबर ने सभी प्रयास किए थे, महाराणा प्रताप की हालत दिन प्रति दिन चिंताजनक होती चली जा रही थी, 25000 राजपूतों को बारह साल तक चले उतना अनुदान वीर भामा शाह ने दिया था और अमर बन गए,
महाराणा प्रताप सिंह ने 1572 से 1597 तक शासन किया था, उन्हे 28 फ़रवरी 1572 मे राज तिलक किया गया था, उनका पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था, उनके उतरा धिकारी महाराणा अमरसिंह थे, उनकी 11 पत्नियाँ थी, संतान मे अमर सिंह 17 पुत्र थे, वो सनातन धर्म का पालन करते थे,
अकबर महाराणा प्रताप सिंह का सबसे बड़ा शत्रु था, यह लड़ाई कोई व्यक्तिगत लड़ाई नहीं थी हालाकि अपने सीधाँत और मूल्यों की लड़ाई थी, महाराणा प्रताप सिंह ने हल्दी घाटी के युद्ध में सम्राट अकबर से पराजित नहीं हुए थे, हल्दी घाटी का युद्ध 18 जून 1576 को मेवाड़ महाराणा प्रताप सिंह का समर्थन करने घुड़ सवारी और धनुर्धरियओ औरमुगल सम्राट अकबर की सेना के बीच लड़ा गया था, महाराणा प्रताप सिंह को पकड़ने मे मुगल विफल रहे थे,
स्वाधीनता की लड़ाई लड़ ने वाले वीर महाराणा प्रताप सिंह को कोटि कोटि वंदन.....
-०-
डॉ गुलाब चंद पटेल
गाँधी नगर (गुजरात)
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चाँटे (लघुकथा) - डॉ. सुधा गुप्ता 'अमृता'


चाँटे  
(लघुकथा)

सामाजिक कार्यकर्त्ता बड़ी लगन से सबकी आवभगत कर रहे थे । सामाजिक संगोष्ठी में गरीब तबके के उत्थान एवं बालश्रम से जुड़े बच्चों के भविष्य , भूख , महंगाई की बातें प्रमुखता से कही जा रही थीं । इस राष्ट्रीय आयोजन में चल रहे कवि सम्मलेन में कवियों ने भी बच्चों पर खूब कवितायेँ पढ़ीं । अंत में सभी आगंतुकों के लिए सुरुचि भोज का आयोजन भी था । 

चुन्नू - मुन्नू दिन भर के भूखे थे , वे भी भोज - भीड़ में चुपके से पहुँच गये और डिस्पोजल थालियों में भोजन लेकर शीघ्रता से उदर पूर्ति कर ही रहे थे तभी आयोजक की निगाहें इन दो भूखे , दरिद्र चिथड़ों में लिपटे बालकों पर पड़ी । बस फिर क्या था , क्रोध के अंगार चुन्नू - मुन्नू की पीठ पर , कभी गाल पर तड़ातड़ बरसने लगे । चुन्नू - मुन्नू के हाथ का निवाला और थाली दूर जा गिरी । ढुलके हुए आंसू को पीकर दोनों बाहर निकल आये ।

ठंड जोरों पर थी । वही सामाजिक कार्यकर्त्ता आयोजक फुटपाथियों को कंबल बाँटने और फोटो खिंचाने निकले । चुन्नू - मुन्नू के साथ कंबल देते हुए आयोजक ने फोटो खिंचवाये । दूसरे दिन चुन्नू - मुन्नू की बड़ी बड़ी तस्वीर आयोजक के साथ अखबार में छपी । चुन्नू - मुन्नू को अखबार पड़ा मिल गया । वे अपनी फोटो चाँटा मारने वाले आयोजक के साथ देखकर मुस्कुराये । वे अखबार लेकर आयोजक की दुकान पर पहुँचे और उसे अपनी फोटो दिखाते हुए जोर से हँस पड़े । आयोजक को बीती घटना याद हो आई । उसे लगा जैसे उसके गाल पर चाँटे पड़ गये हों ।
-०-
डॉ. सुधा गुप्ता 'अमृता'
(राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित)
दुबे कालोनी , कटनी 483501 (म. प्र.)
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वक़्त अकेला कुछ नहीं होता (कविता) - ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'

वक़्त अकेला कुछ नहीं होता 
(कविता)
वक़्त गुजर जाता
वसन्त में महकता हुआ
पता भी नहीं चलता।

वक़्त गुजर जाता
पतझर में झरते पात-सा
पता भी नहीं चलता।

पता चलता है तब
जब वसन्त-सी
महकती तुम
होती हो मेरे पास

या बिछुड़ जाती
झरते पात-सी
छोड़ जाती
सूनेपन का अहसास।
-०-
पता-
ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'
सिरसा (हरियाणा)
-०-

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